भारतीय सिनेमा जगत में सर्वाधिक कामयाब संगीतकार जोड़ी शंकर जयकिशन के नाम की आज भी मिसाल दी जाती है. लेकिन एक वक्त ऐसा भी आया था जब दोनों के बीच अनबन हो गई थी.
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शंकर और जयकिशन ने एक दूसरे से वादा किया था कि वे कभी किसी को नहीं बताएंगे कि धुन किसने बनायी है लेकिन एक बार जयकिशन इस वादे को भूल गए और मशहूर सिने पत्रिका फिल्मफेयर के लेख में बता दिया कि फिल्म संगम के गीत 'ये मेरा प्रेम पत्र पढ़कर कि तुम नाराज न होना' की धुन उन्होंने बनाई थी.
इस बात से शंकर काफी नाराज हुए. उनकी नाराजगी पूरी तरह तो नहीं मिटी लेकिन बाद में पार्श्वगायक मोहम्मद रफी के प्रयासों से शंकर और जयकिशन के बीच हुए मतभेद को कुछ हद तक कम किया जा सका.
पृथ्वी थिएटर में
शंकर का पूरा नाम शंकर सिंह रघुवंशी था. उनका जन्म 15 अक्तूबर 1922 को अविभाजित पंजाब में हुआ था. बचपन के दिनों से ही शंकर संगीतकार बनना चाहते थे और उनकी रुचि तबला बजाने में थी. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा बाबा नासिर खान साहब से ली. इसके साथ उन्होंने हुस्नलाल भगतराम से भी संगीत की शिक्षा ली.
अपने शुरूआती दौर में शंकर ने सत्यनारायण और हेमावती द्वारा संचालित एक थिएटर ग्रुप में भी काम किया. इसके साथ ही वे पृथ्वीराज कपूर के पृथ्वी थिएटर के सदस्य बन गए, जहां वे तबला बजाने का काम किया करते थे. पृथ्वी थिएटर के नाटकों में वे छोटे मोटे रोल भी किया करते थे.
राज कपूर ने दिया मौका
उसी दौरान जयकिशन भी बतौर संगीतकार अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष कर रहे थे. शंकर की सिफारिश पर जयकिशन को पृथ्वी थिएटर में हारमोनियम बजाने के लिए नियुक्त कर लिया गया. 1948 में जब राज कपूर अपनी फिल्म बरसात के लिए संगीतकार की तलाश कर रहे थे तो उन्होंने शंकर जयकिशन को मिलने का न्योता भेजा.
बॉलीवुड को कहा अलविदा: तस्वीरों में
मशहूर हस्तियों, अभिनेताओं की मृत्यु पर हमारे कई पाठकों ने अपनी भावनाएं हम तक पहुंचाई. यहां आप पढ़ सकेंगे हमारे पाठकों के विचार.
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शमशाद बेगम (14.04.1919 - 23.04.2013)
बॉलीवुड के शुरुआती दिनों की कुछ ही आवाजें ऐसी रहीं जो आज भी सिने प्रेमियों के मन को छू जाती हैं उनमें से एक शमशाद बेगम भी थीं जिनके गाने पुरानी क्या नई पीढ़ी को भी वैसे के वैसे याद रहते हैं. रवि श्रीवास्तव, इण्टरनेशनल फ्रेण्डस क्लब, इलाहाबाद
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जसपाल भट्टी (03.03.1955 – 25.10.2012)
दुनिया को हंसाने वाले जसपाल भट्टी दुनिया को अलबिदा तो कह गए परंतु उनका गुदगुदाने वाला एहसास हमारे अंदर हमेशा ज़िंदा रहेगा. जसपाल भट्टी भले ही हमारे बीच नहीँ रहे लेकिन उनके रसीले व्यंग्य हमेशा ज़माने को हंसाते और गुदगुदाते रहेँगे. आबिद अली मंसूरी, ,बरेली, उत्तर प्रदेश
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राजेश खन्ना (29.12.1942 – 18.07.2012)
भारतीय सिनेमा को 2012 में सदाबहार रोमांटिक हीरो राजेश खन्ना की विदाई भी झेलनी पड़ी. दो रास्ते, आराधना, आनंद और अमर प्रेम जैसी उनकी फिल्मों को आज भी मन देखने को करता है. पाठक सुधांशु लिखते हैं "आज सितारों में शामिल होने से पहले, आप एक सुपरस्टार थे! "
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दारा सिंह (19.11.1928 – 12.07.2012)
दारा सिंह फ़िल्मी दुनिया के पहलवान थे. जब मैं स्कूल में था तब दारा सिंह बनाम किंग कांग कुश्ती वाली फिल्में देख कर मजा लेता था. ओलंपिक की कुश्ती में भी इंहोंने भाग लिया था यह पहलवान फिर वापिस नहीं आयेंगे. सुनीलबरन दास, आरबीआई श्रोता क्लब, नादिया, पश्चिम बंगाल
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रविशंकर (07.04.1920 – 11.12.2012)
रविशंकर को भारतीय संगीत को विश्व पटल पर लाने के लिए जाना जाता है. पंडित रविशंकर के निधन पर माधव शर्मा लिखते हैं "इस सितार के तार बजते रहेंगे" और विजय कुमार चौरसिया कहते हैं " कबीरा जब हम पैदा हुए जग हंसे हम रोए, ऐसी करनी कर चले कि हम हंसे जग रोए.. कोई शक नहीं कि पंडितजी ऐसा कर्म कर गये. "
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मेहदी हसन (18.07.1927 – 13.06.2012)
गजलों का राजा के बारे में शाहिद हुसैन कहते हैं, "मेहदी हसन तो चले गए लेकिन उनकी आवाज हमेशा रहेगी." वहीं दीपक कुमार के मुताबिक, "उनकी आवाज हम तक ताउम्र सकूं देती रहेगी!"
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ए.के. हंगल (01.02.1917 – 26.08.2012)
हिंदी सिनेमा के सबसे प्यारे बुजुर्ग ए.के. हंगल यानी अवतार किशन हंगल के बारे में पाठक अतुल कुमार लिखते हैं, "एक युग का अंत! ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दें." इन्होंने बड़ी सादगी से लोगों के दिल में अपनी जगह बना ली थी. इन्होंने 1966 - 2005 तक बावर्ची, अवतार, नौकरी, अमर दीप, बेवफाई जैसी कई हिंदी फिल्मों में काम किया.
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राज कपूर शंकर जयकिशन के संगीत बनाने के अंदाज से काफी प्रभावित हुए और उन्होंने उनसे अपनी फिल्म बरसात में संगीत देने की पेशकश की. फिल्म में उनकी जोड़ी ने 'जिया बेकरार है' और 'बरसात में हमसे मिले तुम सजन' जैसे गानों में सुपरहिट संगीत दिया. फिल्म बरसात की कामयाबी के बाद शंकर जयकिशन बतौर संगीतकार अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए.
नौ बार फिल्मफेयर
इसे महज एक संयोग ही कहा जाएगा कि फिल्म बरसात से ही गीतकार शैलेंद्र और हसरत जयपुरी ने भी अपने सिने करियर की शुरूआत की थी. बरसात की कामयाबी के बाद राज कपूर, हसरत जयपुरी और शंकर जयकिशन की जोड़ी ने कई फिल्मों में एक साथ काम किया.
उनकी जोड़ी को सर्वाधिक नौ बार सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया. शंकर और जयकिशन की यह जोड़ी 1971 तक कायम रही. बारह सितंबर 1971 को जयकिशन इस दुनिया को अलविदा कह गए. अपने मधुर संगीत से श्रोताओं को भावविभोर करने वाले संगीतकार शंकर का भी 26 अप्रैल 1987 को निधन हो गया.