भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आठ देशों के शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए दो दिन की यात्रा पर बिश्केक में हैं. इस दौरान उनका चीन और रूस के राष्ट्रपति से मिलने का कार्यक्रम है.
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मध्य एशिया के देश किर्गिस्तान की राजधानी बिश्केक में अपनी दो दिवसीय यात्रा पर पहुंचे भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वहां चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शी के साथ बैठक उनके आगमन के बाद पहला आधिकारिक कार्यक्रम होगा. इसे बहुत महत्व के साथ देखा जा रहा है, और माना जा रहा है कि यह मोदी के दूसरे कार्यकाल में पदभार संभालने के बाद से यह उनकी पहली अनौपचारिक बातचीत होगी.
उम्मीद है कि इस वार्ता से दोनों के बीच अनुकूल माहौल तैयार होगा. चीन के राष्ट्रपति इस साल के अंत में भारत के दौरे पर होंगे. गुरुवार शाम उनकी वार्ता के दौरान द्विपक्षीय और अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ में व्यापार प्रमुख मुद्दा रहेगा. 23 मई को मोदी के फिर से प्रधानमंत्री चुने जाने के बाद शी दुनिया के पहले नेता थे जिन्होंने मोदी को बधाई दी थी. मोदी को भेजे गए एक पत्र में चीन के राष्ट्रपति ने कहा कि उन्होंने (मोदी ने) भारत के साथ द्विपक्षीय संबंधों को विकसित करने में काफी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है.
शी से मुलाकात के बाद मोदी रूसी राष्ट्रपति पुतिन के साथ वार्ता करेंगे. मोदी की दूसरे कार्यकाल के दौरान दोनों नेताओं से यह पहली मुलाकात होगी. रूस के राष्ट्रपति ने भी मोदी को फिर से चुने जाने पर बधाई संदेश भेजा था और दोनों देशों के बीच 'विशेष रणनीतिक साझेदारी' को व्यापक विकास के लिए तत्परता जाहिर की थी. इसके अलावा किर्गिस्तान के राष्ट्रपति सोरोनबे जीनबेकोव की मेजबानी में मोदी एक अनौपचारिक रात्रिभोज में हिस्सा लेंगे. इसके बाद वह अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी के साथ एक द्विपक्षीय वार्ता में भाग लेने वाले हैं.
क्या रूस, चीन और भारत आपसी मतभेद पाटकर जी-7 का विकल्प बन पाएंगे. ये सारे देश शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (एससीओ) के सदस्य हैं.
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स्थापना
यूरोप और एशिया, यानी यूरेशिया को राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा के मुद्दे पर जोड़ने के लिए 15 जून 2001 को चीन में शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन का एलान किया गया. 2002 में इसके चार्टर पर दस्तखत हुए और 19 सितंबर 2003 से यह संस्था काम करने लगी.
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शुरुआती सदस्य
शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन की नींव रखने वाले देशों में चीन, कजाखस्तान, किर्गिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान शामिल हैं. उज्बेकिस्तान के बिना इन पांच देशों का समूह पहले शंघाई-5 कहलाता था.
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भारत और पाकिस्तान की एंट्री
जुलाई 2005 में कजाखस्तान की राजधानी अस्ताना में हुए एससीओ सम्मेलन में भारत, ईरान, मंगोलिया और पाकिस्तान के राष्ट्र प्रमुख पहली बार शामिल हुए. भारत और पाकिस्तान पिछले साल संस्था के सदस्य बने. एससीओ के सदस्य देशों में दुनिया की आधी आबादी रहती है.
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बढ़ता कारवां
अफगानिस्तान, बेलारूस, ईरान और मंगोलिया शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन के ऑब्जर्वर देश बन चुके हैं. इन देशों पर नजर रखी जा रही है. जरूरी शर्तें पूरी होने के बाद इनकी सदस्यता पर विचार किया जाएगा.
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डॉयलॉग पार्टनर
अर्मेनिया, अजरबैजान, कंबोडिया, नेपाल, श्रीलंका और तुर्की को डॉयलॉग पार्टनर बनाया गया है. एससीओ के आर्टिकल-14 के तहत डॉयलॉग पार्टनर ऐसा देश या ऐसी संस्था होगी जो एससीओ के लक्ष्यों और सिद्धांतों को साझा करे, जिसका एससीओ से रिश्ता समान साझा हितों पर टिका हो.
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एससीओ की मुश्किलें
शंघाई कोऑपरेशन आर्गनाइजेशन के सदस्य देश आतंकवाद, कट्टरपंथ और अलगाववाद से मिलकर निपटने पर सहमत होते हैं. लेकिन जब बात भारत-पाकिस्तान संबंधों और भारत-चीन सीमा विवाद ही आती है तो पेंच फंस जाता है. सीमा विवाद सहयोग में बाधा बन जाता है.
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नाटो का जवाब
पश्चिम के मीडिया पर्यवेक्षकों को लगता है कि एससीओ की स्थापना का असली मकसद नाटो को जवाब देना है. रूस और चीन बिल्कुल नहीं चाहते कि अमेरिका उनकी सीमा से सटे इलाकों के करीब पहुंचे. 2005 में एससीओ देशों ने अमेरिका से यह भी कहा कि वह सदस्य देशों से अपनी सेना हटाए. उस वक्त उज्बेकिस्तान में अमेरिकी सेना तैनात थी.
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सैन्य साझेदारी
बीते कुछ बरसों में एससीओ देशों की बीच सैन्य सहयोग में तेजी आई है. 2014 के सम्मेलन में सामूहिक सुरक्षा संधि संस्था बनाने की मांग भी उठी. इस पर चर्चा जारी है.