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शरणार्थी संकट में अमीर अरब पीछे क्यों

७ सितम्बर २०१५

अगस्त के अंत तक 40 लाख से भी अधिक सीरियाई अपना देश छोड़ कर भाग चुके हैं. सवाल यह है कि खाड़ी सहयोग परिषद के छह देशों में इनमें से कितनों को शरण मिली है.

तस्वीर: Reuters/L. Balogh

बहरीन, कुवैत, ओमान, कतर, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) ने शरणार्थियों की मदद के लिए अरबों की राशि दान में दी है. लेकिन प्रवासियों को अपने यहां स्वीकार करने में उनकी कथित अनिच्छा को लेकर प्रश्न उठ रहे हैं.

तस्वीर: Reuters/L. Balogh

विश्व के सामने खड़े इस अभूतपूर्व मानवीय संकट की घड़ी में यूरोप के मुकाबले खुद से कहीं ज्यादा मिलते जुलते सांस्कृतिक और धार्मिक मूल्यों वाले सीरिया जैसे देश के लोगों को पुर्नस्थापित करने में खाड़ी देश पीछे क्यों दिख रहे हैं?

तस्वीर: Reuters/Y. Behrakis

यह सवाल केवल पश्चिम में ही नहीं, बल्कि खुद खाड़ी देशों में भी उठाया जा रहा है. हाल के दिनों में खाड़ी के कई सोशल मीडिया यूजरों ने इस हैशटैग "#Welcoming_Syria's_refugees_is_a_Gulf_duty" के साथ अपने असंतोष को व्यक्त किया है.

जॉर्डन में शरण लेने वाले सीरियाई शरणार्थी 30-वर्षीय अबु मोहम्मद कहते हैं, "खाड़ी देशों को यह देखकर शर्म आनी चाहिए कि कैसे यूरोप ने शरणार्थियों के लिए अपने द्वार खोल दिए हैं, जबकि हमारे लिए उनके दरवाजे बंद हैं." इन गर्मियों में यूरोप में सीरियाई शरणार्थियों की बाढ़ आई हुई है. केवल जर्मनी ही इस साल 8,00,000 नए शरणार्थी आवेदन स्वीकार करने वाला है.

तस्वीर: Fayez Nureldine/AFP/Getty Images

कतर के एक प्रमुख अखबार गल्फ टाइम्स ने अपने एक हालिया संपादकीय में लिखा है, "दुखद है कि अमीर खाड़ी देशों की ओर से अब तक इस संकट पर कोई बयान भी जारी नहीं हुआ है. उन शरणार्थियों की मदद के लिए रणनीति तैयार करना तो दूर की बात है, जिनमें ज्यादातर मुसलमान हैं."

एक विशिष्ट अमीराती ब्लॉगर सुल्तान अल कासेमी ने लिखा है कि खाड़ी देशों के सामने अपनी शरणार्थी नीतियों को बदलने का एक "आदर्श, नीतिपरक और जिम्मेदारी दिखाने का" मौका था. तुर्की के तट पर बह कर पहुंचे तीन साल के सीरियाई बच्चे आयलान कुर्दी के शव के अंतिम संस्कार के समय भी उसके पिता ने कहा, "मैं चाहूंगा कि यूरोपीय देश ही नहीं, बल्कि अरब सरकारें देखें कि मेरे बच्चों का क्या हुआ. उन्हें देखते हुए वे दूसरों की मदद करें."

विश्लेषकों का मानना है कि इन आलोचनाओं से खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) देशों पर कोई तेज असर दिखना मुश्किल है. इन्होंने संयुक्त राष्ट्र के शरणार्थी कन्वेंशन पर भी हस्ताक्षर नहीं किए हैं. हालांकि इन देशों ने लेबनान, जॉर्डन और तुर्की में शरणार्थियों के लिए अच्छी खासी आर्थिक मदद भेजी है. लेकिन साथ ही सीरिया में राष्ट्रपति बशर अल असद के विरोधियों की मदद के लिए भी धन दिया है. विरोध करने वाले मुख्यतया सुन्नी विद्रोही हैं जो असद को सत्ता से हटाना चाहते हैं. असद के समर्थन में शिया बहुल ईरान है.

सीरिया से आने वाले ज्यादातक शरणार्थी भी खाड़ी के अधिकतर लोगों की ही तरह सुन्नी संप्रदाय से हैं, लेकिन फिर भी शरण देने की तैयारी नहीं है. यूएई, कतर जैसे कुछ छोटे खाड़ी देशों में पहले से ही लाखों विदेशी कामगार रहते हैं जिनकी संख्या स्थानीय लोगों से भी अधिक है. खाड़ी देशों में आईएस जैसे संगठनों से सुरक्षा खतरों और विदेशियों की अधिकता से देश का संतुलन बिगड़ने का भी डर जताया जा रहा है.

आरआर/आईबी (एएफपी)

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