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समाज

शरणार्थियों के सामने कोरोना से ज्यादा भूख से मौत का डर

डायना होदाली
७ मई २०२०

लेबनान में रह रहे सीरियाई शरणार्थियों के कैंपों में सोशल डिस्टैंसिंग रखना असंभव है. अगर यहां कोरोना वायरस का संक्रमण फैला तो इसके नतीजे बेहद खतरनाक हो सकते हैं. लेकिन यहां रह रहे लोगों के मन में दूसरा डर है.

Libanon Flüchtlingslager Bar Elias
तस्वीर: M. al-Ahmed

लेबनान की बेका घाटी से गुजरते हुए आप सैकड़ों सीरियाई शरणार्थियों के कैंप देखते हैं. ये कैंप खेतों और झाड़ियों के बीच बने हुए हैं. इन कैंपों में रह रहे लोगों के ठिकाने प्लास्टिक से ढके हुए हैं. बार इलियास में भी यही हाल है. ये जगह गृह युद्ध से प्रभावित सीरिया से बहुत दूर नहीं है. बार इलियास सीरियाई सीमा से सिर्फ 15 किलोमीटर की दूरी पर है. वहां मेदयान शरणार्थी शिविर है. इस शरणार्थी शिविर को मेदयान अल अहमद ने बसाया था. ये कैंप अनधिकृत रूप से 2013 से चल रहा है. यहां नौ परिवार आठ टेंटों में रह रहे हैं. ये सभी परिवार पश्चिमी सीरिया के अल कौसायर शहर से आए हैं.

इन सभी शरणार्थियों के घर बने हुए ये टेंट जमीन पर बने हुए हैं. इनमें रहने वाले सभी लोग जमीन पर ही रहते हैं जो सर्दियों में बहुत ठंडी हो जाती है और गर्मियों में बेहद गर्म. मेदयान अल अहमद का नौ लोगों का परिवार एक टेंट में रहता है. उनकी पत्नी और बच्चों के अलावा उनकी बहन और उनके बच्चे भी इस टेंट में रहते हैं. मेदयान की बहन के पति सीरियाई युद्ध में मारे जा चुके हैं.

लॉकडाउन भी ज्यादा सख्त

टेलिफोन पर बात करते हुए मेदयान ने बताया कि वहां रह रहे सभी सीरियाई शरणार्थियों ने कोरोना वायरस को रोकने के लिए लागू किए गए लॉकडाउन का अच्छे से पालन किया. उन्होंने कहा कि उन सबने लेबनानी सरकार के आदेश माने पर टेंट में सोशल डिस्टैंसिंग कर पाना मुमकिन नहीं है. लेबनान में सीरियाई शरणार्थियों के लिए नियंत्रित आवाजाही का अधिकार है. इन शरणार्थियों को सामान्य दिनों में भी कर्फ्यू जैसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है.

कोरोना के चलते लगाए गए लॉकडाउन में ये नियंत्रण और भी बढ़ गया है. लेबनानी सरकार का आदेश है कि पूरे कैंप का राशन लाने सिर्फ एक व्यक्ति जा सकता है. इस कैंप में राशन लाने का काम मेदयान के पास है. इसलिए वो थोड़े परेशान भी हैं. 43 वर्षीय मेदयान कहते हैं कि यहां जीवन पहले ही मुश्किल थी लेकिन अब परिस्थितियां बदतर हो गई हैं. वो बताते हैं कि उनकी नौकरी पहले ही जा चुकी है और अब सारी चीजें चार गुना तक महंगी हो चुकी हैं.

मेदयान अल अहमदतस्वीर: M. al-Ahmed

स्कूल बंद तो काम बंद

मेदयान सीरिया में अपना बिजनेस चलाते थे लेकिन युद्ध ने सब बर्बाद कर दिया. उन्हें जान बचाकर लेबनान आना पड़ा. अपना घर चलाने के लिए उन्होंने सीरियाई शरणार्थियों के लिए काम कर रहे सहायता समूहों की वर्कशॉप में जाना शुरू कर दिया. उन्हें एक छोटे से जर्मन समूह शम्स से वित्तीय सहायता मिली. उन्होंने इससे कैंप में एक स्कूल खोला और बच्चों को पढ़ाना शुरू किया. धीरे-धीरे ये स्कूल बड़ा होकर एक दो मंजिला इमारत में पहुंच गया. लेबनानी सरकार ने कहा कि वो इस स्कूल को मान्यता देगी और यहां से मिले डिप्लोमा भी मान्य होंगे.

मेदयान कहते हैं कि कोरोना वायरस की वजह से स्कूल बंद हो गया है. इसका असर युद्ध की वजह से पढ़ाई लिखाई ना कर पाए उन बच्चों पर पड़ रहा है जो मेदयान के स्कूल में फिर से पढ़ाई कर रहे थे. मेदयान फिलहाल कई संस्थानों से जूम और वॉट्सऐप वीडियो कॉल के जरिए ट्रेनिंग ले रहे हैं. लेकिन स्कूल बंद होने से उनकी कमाई बिल्कुल बंद हो गई है.

खस्ताहाल अर्थव्यवस्था

कोरोना वायरस के आने से पहले भी लेबनान की अर्थव्यवस्था खराब हालत में थी. लेबनानी पाउंड की कीमत लगातार गिरती जा रही थी. लॉकडाउन ने स्थिति बदतर कर दी. लेबनान में सीरियाई शरणार्थी कंस्ट्रक्शन, खेती और छोटी-मोटी मजदूरी के काम करते हैं. लेकिन कोरोना के चलते अब ये सब काम बंद हो गए हैं.

लेबनानी सरकार ने इस महामारी के पहले सीरियाई और फलीस्तीनी शरणार्थियों के लिए काम से पहले एक वैध वर्क परमिट होना जरूरी कर दिया. इसके चलते यहां रह रहे लोगों को काम से पहले अपने कागजात तैयार करने पड़े. इससे कई लोग अपने काम से बाहर हो गए. कोरोना के चलते अब वर्क परमिट हासिल करना असंभव हो गया है.

बच्चों की हालत खराबतस्वीर: M. al-Ahmed

लांछनों का सामना करते सीरियाई

बेका घाटी में सीरियाई शरणार्थियों के लिए काम कर रहे एनजीओ बी एंड जेड का कहना है कि सीरियाई शरणार्थियों से भेदभाव यहां आम है. इस संगठन के एक सामुदायिक केंद्र को चलाने वाले मोहम्मद तालेब कहते हैं,"सीरियाई लोगों को यहां कई तरह के लांछनों का सामना करना पड़ता है. लेबनानी लोगों के बीच ये आम गलतफहमी है कि सीरियाई लोगों के बीच कोरोना वायरस फैलने की आशंका ज्यादा है क्योंकि उनके कैंपों में ज्यादा साफ सफाई नहीं होती है." लेबनानी सरकार भी इस भेदभाव को बढ़ाने का काम करती है. पिछले सप्ताह लेबनानी राष्ट्रपति मेशेल आउन ने कहा कि लेबनान तीन परेशानियों का सामना कर रहा है. उनके मुताबिक कोरोना वायरस, खराब अर्थव्यवस्था और देश में मौजूद सीरियाई शरणार्थी देश की परेशानियों के लिए जिम्मेदार हैं. हालांकि राष्ट्रपति ने लेबनान में व्याप्त बड़े पैमाने के भ्रष्टाचार पर कुछ नहीं कहा.

लेबनान के सीरियाई शरणार्थी कैंपों में अभी तक कोरोना वायरस का एक भी मामला सामने नहीं आया है. लेबनान के फलीस्तीनी शरणार्थी शिविरों में कोरोना वायरस का एक मामला सामने आया है. लेबनान में अब तक कोरोना के 750 मामले आ चुके हैं और 25 लोगों की मौत हो गई है. हालांकि जानकारों का मानना है कि अगर सीरियाई शरणार्थी कैंपों में कोरोना फैला तो हालात मुश्किल हो सकते हैं क्योंकि यहां जनसंख्या का घनत्व ज्यादा है.

चिकित्सा सुविधाओं की चिंता

लेकिन अगर किसी सीरियाई शरणार्थी में कोरोना के लक्षण दिखाई देते हैं तो क्या होगा? डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने लेबनानी अस्पतालों में सीरियाई शरणार्थियों के लिए कैंप लगाए हैं. लेकिन यहां पर इन शिविरों से लोगों के आने की संभावना कम है. मोहम्मद तालेब का कहना है कि लेबनानी सरकार ने सीरियाई शरणार्थियों को लेकर नियम कड़े कर दिए हैं. ऐसे में अगर कोई शरणार्थी बिना वैध कागजातों के यहां मिलता है तो उसे वापस सीरिया भेजे जाने की संभावना भी है.

मोहम्मद तालेबतस्वीर: M. Taleb

पिछले साल लेबनानी सरकार ने कई सैकड़ों सीरियाई लोगों को सीरिया से डिपोर्ट कर दिया था. ऐसे में सीरियाई लोग डर में हैं कि अगर वो खुद सामने आते हैं तो उन्हें जबरन सीरिया भेज दिया जाएगा. इसको लेकर मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच ने लेबनानी सरकार से कई बार अपील की है. सीरियाई शरणार्थियों के लिए काम कर रहे कई संगठन सोशल मीडिया के जरिए इन शरणार्थियों तक कोरोना से बचाव को लेकर जानकारी पहुंचा जा रहे हैं.

भूखा मरने का डर

मेदयान का कहना है कि लेबनान में सीरियाई शरणार्थियों के बड़े कैंपों को आर्थिक मदद मिल जाती है लेकिन छोटे समूहों में रहने वाले लोगों को ऐसी मदद मुश्किल से मिलती है. वो कहते हैं कि पता नहीं कोरोना वायरस के बाद हमारा जीवन कैसा होने वाला है. हालांकि लेबनान ने अब पाबंदियों में ढील दी है. कर्फ्यू अब रात 9 से सुबह पांच बजे तक रहता है. कैफे और रेस्तरां अब खुल गए हैं लेकिन उनमें बस क्षमता के 33 प्रतिशत लोग आ सकते हैं. मेदयान का कहना है कि कैंपों में भी थोड़े सामान्य हालात हुए हैं लेकिन यहां के लोग अब ऐसी परिस्थितियों में नहीं रह सकते. वो कहते हैं कि यहां लोगों के पास पैसा नहीं है और उनके पास काम भी नहीं है. अगर ये ऐसा ही चलता रहा तो कोरोना से कुछ हो ना हो पर लोग यहां भूखे मर जाएंगे.

भारत में भी कई शरणार्थी शिविर हैं. दिल्ली के रोहिंग्या शरणार्थी शिविर और तमिलनाडु में लगे श्रीलंकाई तमिलों के शिविर इनमें से प्रमुख हैं. अभी इन शिविरों में कोरोना वायरस से संबंधित परेशानियों की खबरें नहीं आई हैं. फरवरी में दिल्ली में हुए दंगों के बाद प्रभावित लोगों के लिए भी राहत शिविर लगाए गए थे. लेकिन कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप के बीच यहां रह रहे लोगों को कैंप से उनके घरों में वापस भेजा गया है जिससे शिविरों में संक्रमण फैलने का खतरा कम हो.

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