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शरणार्थियों पर बढ़ते हमले

८ मार्च २०१४

जर्मनी में शरणार्थियों पर बढ़ते हमलों ने सरकार की नाक में दम कर दिया है. पिछले साल 2012 की तुलना में दोगुने हमले दर्ज किए गए. उग्र दक्षिणपंथियों से निपटना मुश्किल होता जा रहा है.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

जनवरी की एक सर्द रात, जर्मनी के दक्षिणी राज्य बवेरिया के शरणार्थी शिविर में सोते लोगों की नींद चीखने चिल्लाने के शोर से खुलती है. काले कपड़े पहने नकाबपोश जर्मन में जोर जोर से कुछ कह रहे हैं. हाल ही में बवेरिया आए शरणार्थियों को कुछ समझ नहीं आ रहा कि वे क्यों चिल्ला रहे हैं. इससे पहले कि पुलिस वहां पहुंचती नकाबपोश अपना गुस्सा दिखाकर चले गए.

शरणार्थी कॉलोनी में पथराव करना, घरों की खिड़कियां तोड़ देना, दीवारों पर अभद्र भाषा में कुछ लिख जाना और नुकसान पहुंचाने के लिए आग लगा देना, जर्मनी में आम होता जा रहा है. दूसरे देशों से यहां पनाह लेने वाले लोगों को उग्र दक्षिणपंथियों के गुस्से का शिकार होना पड़ रहा है.

मानवाधिकार संगठन प्रो असायलम के निदेशक गुंटर बुर्खार्ट का कहना है कि मौजूदा हालात उन्हें नब्बे के दशक की याद दिलाते हैं जब विदेशियों और शरणार्थियों पर हुए हमलों में कई लोगों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी. हालांकि उनका कहना है कि आधिकारिक तौर पर ताजा हमलों को उनसे जोड़कर नहीं देखा जा रहा है. वे बताते हैं कि कई राजनीतिक दल लोगों में विदेशियों के प्रति नफरत फैलाने के लिए जिम्मेदार हैं. इनमें नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी (एनडीपी), प्रो डॉयचलांड और ऑल्टरनेटिव फॉर जर्मनी (एएफडी) जैसे दल शामिल हैं जिनके एजेंडा में ही राष्ट्रवाद है.

मेल जोल की जरूरत

उग्र दक्षिणपंथियों पर शोध कर रहे हायो फुंके का कहना है कि जर्मनी के एकीकरण के बाद देश में बुरा माहौल पैदा हो गया था लेकिन सरकार उसे नियंत्रित करने में कामयाब रही. हालांकि 1992 में इस तरह के हमलों में 27 लोगों की मौत हुई थी. ताजा स्थिति को भी वह चिंताजनक बताते हैं, "सबसे बड़ा खतरा यह है कि आगजनी के मामले बढ़ रहे हैं और इस कारण मरने वालों और घायलों की संख्या में भी वृद्धि हुई है."

तस्वीर: picture-alliance/dpa

जर्मनी में पिछले साल शरणार्थियों की संख्या में काफी बढ़ोत्तरी देखी गई. सीरिया, अफगानिस्तान और अन्य देशों से 1,27,000 से ज्यादा लोग जर्मनी पहुंचे हैं. 1999 के बाद से यह जर्मनी आए शरणार्थियों की सबसे बड़ी संख्या है. इन लोगों को आश्रय देने के लिए कई शहरों में स्कूलों और सेना के बैरक को शिविरों में तब्दील किया गया है. लेकिन कई इलाकों में लोगों को सुरक्षा की चिंता सता रही है. बर्लिन के एक शिविर में हालात इतने नाजुक हो गए कि लोगों को पुलिस की निगरानी में रहना पड़ा.

फुंके का कहना है कि राजनीतिक दल समाज के मध्य वर्ग को कुछ इस तरह प्रभावित कर रहे हैं कि जर्मनी की आधी आबादी को लगने लगा है कि देश में जरूरत से ज्यादा शरणार्थी आ गए हैं और यह गलत है. प्रो असायलम के बुर्खार्ट ने भी नेताओं से अपील की है कि इस मामले को संजीदगी से लिया जाए और शरणार्थियों को जर्मन समाज में सम्मिलित कराने के लिए जरूरी कदम उठाने होंगे. उनका कहना है, "हमें इन लोगों के लिए घर ढूंढने हैं, शिविर नहीं, क्योंकि वहां तो वे आसानी से उग्र दक्षिणपंथियों का निशाना बन सकते हैं." साथ ही उनकी यह भी मांग है कि इन लोगों के लिए देश में रोजगार के अवसर भी खोजने होंगे ताकि वे जर्मनी में सामान्य लोगों की तरह जीवन बिता सकें.

रिपोर्ट: आना पीटर्स/आईबी

संपादन: ओंकार सिंह जनौटी

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