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शरणार्थी आप्रवासी बनें तो सबका फायदा

शबनम सुरिता
२८ अगस्त २०१५

यूरोप आ रहे शरणार्थियों की संख्या ने भारी चुनौती पैदा कर दी है. यह सिर्फ प्रशासनिक या वित्तीय चुनौती नहीं है. डॉयचे वेले के ग्रैहम लूकस का कहना है कि इस पर भी असर होगा कि यूरोपीय अपने इलाके को किस नजरिए से देखते हैं.

Deutschland Bundeswirtschaftsminister Sigmar Gabriel in Ingelheim
लोगों से बात करते उप चांसलर जिगमार गाब्रिएलतस्वीर: picture-alliance/dpa/C. Schmidt

यूरोपीय संघ दुनिया के सबसे स्थिर और समृद्ध इलाकों में शामिल है. सदस्य देशों का मानना है कि गृह युद्ध और राजनीतिक दमन के शिकार लोगों को शरण दिया जाना चाहिए. लेकिन इस समय यूरोप आ रहे शरणार्थियों की बड़ी तादाद यूरोपीय संघ के इस इरादे के लिए चुनौती पैदा कर रही है. ताजा अनुमान के अनुसार, इस साल 10 लाख से ज्यादा लोग शरण लेने के लिए यूरोप में दाखिल होंगे. यूरोप आ रहे शरणार्थियों का हर कोई स्वागत नहीं कर रहा. जर्मनी में आप्रवासन विरोधी गुटों ने शरणार्थी गृहों पर हमले और आगजनी जैसी कार्रवाईयां की हैं. जर्मन चांसलर अंगेला मैर्कल को भी उग्र दक्षिणपंथी प्रदर्शनकारियों के गुस्से का सामना करना पड़ा है. इसने दुनिया की नजरों में जर्मनी का सम्मान घटाया है.

ग्रैहम लूकस

शरणार्थियों के रूप में हिंसक इस्लामी कट्टरपंथियों के यूरोप आने के डर की वजह से जर्मनी में ही नहीं बल्कि पूरे यूरोप मेंआप्रवासन विरोधी पार्टियों के लिए समर्थन बढ़ा है. इस चिंताओं को दूर किया जाना चाहिए और हमारे तरह के समाज को अस्वीकार करने वाले इस्लामी कट्टरपंथियों के खिलाफ सख्त कदम उठाए जाने चाहिए. लेकिन यूरोपीय नेताओं को याद रखना चाहिए कि सच्चे शरणार्थियों को शरण देना यूरोप का कानूनी और नैतिक कर्तव्य है. इसके फायदे भी हैं. यूरोप की तेजी से घट रही आबादी भविष्य में आर्थिक स्थिरता के लिए खतरा है.

लेकिन शरणार्थियों की बड़ी संख्या को देखते हुए जल्द से जल्द फैसला करना होगा कि कौन सही मायने में शरण पाने लायक है. जो लोग सुरक्षित देशों से होकर आ रहे हैं उन्हें फौरन वहां वापस भेजा जाना चाहिए. और जो इराक, सीरिया या अफगानिस्तान जैसे गृहयुद्ध से प्रभावित देशों से आ रहे हैं उन्हें जल्द से जल्द समाज में घुलाया मिलाया जाना चाहिए. इन देशों में जल्द शांति आने वाली नहीं है कि वे आने वाले समय में अपने देश लौट सकें. सबसे बढ़कर उन्हें काम करने की अनुमति देनी होगी. आप्रवासियों पर हुए अध्ययन दिखाते हैं कि आप्रवासी बने शरणार्थी अपनी कमाई के जरिए न सिर्फ टैक्स देते हैं बल्कि स्वास्थ्य और पेंशन बीमा का भुगतान करते हैं और इस तरह मेजबान देशों को फायदा पहुंचाते हैं.

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