शरणार्थी संकट का शिकार हुए फायमन
१० मई २०१६पार्टी प्रमुख और देश के सरकार प्रमुख पद से इस्तीफे की वजह फायमन ने अपनी सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी में समर्थन का अभाव बताया है. उन्होंने कहा, "देश को ऐसे चांसलर की जरूरत है जिसे पार्टी का पूरा समर्थन हो." फायमन शरणार्थी नीति पर विरोध का सामना कर ही रहे थे, लेकिन राष्ट्रपति चुनावों के पहले चरण में सत्ताधारी पार्टी के उम्मीदवार के यूरो विरोधी फ्रीडम पार्टी के उम्मीदवार के हाथों बुरी तरह हारने के बाद उनपर इस्तीफे का दबाव बढ़ता जा रहा था. इसके बावजूद आठ साल से शासन कर रहे फायमन का इस्तीफा अप्रत्याशित था.
फायमन का इस्तीफा उनकी सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी की उलझन तो दिखाता ही है, यह ऑस्ट्रिया की परंपरागत राजनीतिक परिदृश्य में आ रहे परिवर्तन को भी दिखाता है. कभी बहुमत पाकर सरकार बनाने वाली पार्टी की लोकप्रियता पिछले सात सालों में लगातार घटती गई है और राष्ट्रपति चुनावों में तो उसके उम्मीदवार को सिर्फ 11 प्रतिशत वोट मिले. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ऑस्ट्रिया में मजबूत राजनीतिक ताकत रही पीपुल्स पार्टी ने भी पिछले साल शरणार्थी संकट शुरू होने के पहले पिछले सालों में समर्थन में ऐसा ही ह्रास देखा है. इस सालों में परंपरागत पार्टियों को मिल रहा समर्थन उग्र दक्षिणपंथी फ्रीडम पार्टी को चला गया है.
शरणार्थी विरोध की राजनीति
फ्रीडम पार्टी का तुरूप का पत्ता पहले विदेशियों का और पिछले साल से शरणार्थियों का विरोध रहा है. लेकिन उन्हें इसा बात का फायदा भी मिला है कि लोग सोचते हैं कि बेरोजगारी और आतंकवाद जैसे मुद्दों पर स्थापित पार्टियां लोगों की चिंताओं पर ध्यान नहीं दे रही हैं. हाल के सर्वेक्षण दिखाते हैं कि फ्रीडम पार्टी के लिए मतदाताओं का समर्थन बढ़कर 32 प्रतिशत हो गया है जबकि सत्ताधारी मोर्चे का सिर्फ 20 प्रतिशत लोग समर्थन कर रहे हैं. शरणार्थी संकट शुरू होने से पहले ही टैक्स, पेंशन और शिक्षा सुधारों पर स्थापित पार्टियों के झगड़ों ने राजनीतिक ठहराव का माहौल पैदा किया है.
राजनीतिक बदलाव के इसी माहौल में 24 अप्रैल को हुए राष्ट्रपति चुनावों में फ्रीडम पार्टी के उम्मीदवार नॉर्बरॉ होफर को 35 प्रतिशत वोट मिले जबकि सत्ताधारी मोर्चे की दोनों पार्टियों के उम्मीदवारों को दस-दस प्रतिशत मत मिले. अब 22 मई को हेने वाले चुनाव के निर्णायक चरण में फ्रीडम पार्टी के होफर का मुकाबला ग्रीन पार्टी के उम्मीदवार से होगा जो स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं. युवा होने के कारण होफर के जीतने की उम्मीद जताई जा रही है.
घट रहा है ईयू के लिए समर्थन
यूरोपीय एकता की कट्टर विरोधी पार्टी की ओर ऑस्ट्रिया के मतदाताओं का झुकाव अत्यंत अहम है क्योंकि ऑस्ट्रिया हमेशा से यूरो समर्थक कैंप में रहा है. देश के यूरोप समर्थक राजनीतिज्ञ इसे चिंता के साथ देख रहे हैं कि अगर हालात नहीं बदले तो दो साल में क्या होगा जब अगले संसदीय चुनाव होंगे. इतना ही नहीं यूरोप के दूसरे देशों में भी यूरोप विरोधी ताकतें लगतार मजबूत होती जा रही हैं. यूरोपीय संघ के संस्थापक सदस्य फ्रांस में मारी ले पेन की नेशनल फ्रंट ने यूरोपीय चुनाव जीते थे और अब 80 प्रतिशत मतदाताओं का मानना है कि वे 2017 में होने वाले अगले राष्ट्रपति चुनावों में दूसरे चक्र में पहुंचेंगी.
हंगरी और पोलैंड में यूरो विरोधी पार्टियां जीत चुकी हैं और शासन कर रही हैं, जबकि चेक गणतंत्र के राष्ट्रपति नियमित रूप से यूरोपीय संघ की आलोचना करते नजर आते हैं. इसी तरह स्कैंडिनेविया के देशों और फिनलैंड में पॉपुलिस्ट पार्टियां या तो सत्ता में हैं या संसद में उनका मजबूत प्रतिनिधित्व है. जर्मनी में ईयू विरोधी एएफडी ने आठ विधान सभाओं में मौजूद है और पिछले दिनों तीन प्रदेशों में हुए चुनाव में उसे दस से 25 प्रतिशत तक वोट मिले हैं. राजनीतिशास्त्री पेटर फिल्त्समायर का कहना है कि पॉपुलिस्ट पार्टियों के समर्थन में वृद्धि यूरोपीय संघ के साथ बढ़ते असंतोष और 2008 के वित्तीय संकट के साथ जुड़ी रही है.
एमजे/वीके (एपी)