शराब माफिया पर रिपोर्ट करने के बाद मारा गया पत्रकार
१४ जून २०२१सुलभ श्रीवास्तव उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में एक राष्ट्रीय टीवी चैनल के लिए काम करते थे. उन्होंने 12 जून को ही पुलिस विभाग को एक चिट्ठी लिख कर कहा था कि उन्हें शराब माफिया द्वारा उन पर और उनके परिवार के सदस्यों पर हमले का अंदेशा है. उन्होंने प्रयागराज जोन के अपर पुलिस महानिदेशक से उनके और उनके परिवार की सुरक्षा के लिए आदेश देने की अपील भी की थी.
लेकिन अगले ही दिन एक हादसे में उनकी मौत हो गई. पुलिस के बयान के मुताबिक सुलभ मोटरसाइकिल से गिर कर घायल हो गए थे और जब तक उन्हें अस्पताल पहुंचाया गया तब तक उनकी मृत्यु हो चुकी थी. हालांकि कुछ मीडिया रिपोर्टों में दावा किया जा रहा है कि उनकी पत्नी की शिकायत और विपक्षी पार्टियों की आलोचना के बाद प्रतापगढ़ पुलिस ने अब जा कर मामले में अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किया है.
उत्तर प्रदेश में अवैध शराब का व्यापार काफी बड़ा है. हाल ही में अलीगढ़ में अवैध देशी शराब पीने के बाद 35 लोगों की मौत हो गई थी. पुलिस को संदेह है कि इलाके में हुई कम से कम 71 और मौतों की वजह भी अवैध शराब ही है, लेकिन इन मौतों की अभी छानबीन चल ही रही है. इसके पहले जनवरी 2021 से ही बुलंदशहर, महोबा, प्रयागराज, फतेहपुर, चित्रकूट, प्रतापगढ़, अयोध्या, हाथरस, आजमगढ़, अंबेडकरनगर आदि जैसे इलाकों से भी अवैध शराब पीकर कई लोगों के मारे जाने की खबरें आ रही थीं.
पत्रकारों पर खतरे
प्रतापगढ़ में इन मौतों के सामने आने के बाद स्थानीय पुलिस और प्रशासन ने शराब माफिया के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी थी और सुलभ पुलिस के इसी अभियान पर रिपोर्ट कर रहे थे. गौर करने लायक बात है कि सुलभ ने अपनी रिपोर्टों में यह भी कहा था कि पुलिस भी शराब माफिया की जांच ठीक से नहीं कर रही है और किसी को बचाने की कोशिश कर रही है.
सुलभ की हत्या के बाद एक बार फिर भारत में, और विशेष रूप से उत्तर प्रदेश में, पत्रकारों के रास्ते में आने वाले बढ़ते जोखिमों को लेकर चर्चा शुरू हो गई है. पिछले छह महीनों में उत्तर प्रदेश में कई पत्रकारों की हत्या हो चुकी है. पत्रकार एक तरफ अपराधियों के हमलों का शिकार हो रहे हैं तो दूसरी तरफ प्रशासन द्वारा लगाए जा रहे तरह तरह के अंकुशों का भी सामना कर रहे हैं.
पिछले साल हाथरस में हुए सामूहिक बलात्कार के मामले पर रिपोर्ट करने जा रहे एक मलयालम पत्रिका के पत्रकार सिद्दीक कप्पन को उत्तर प्रदेश पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था और बाद में उनके खिलाफ यूएपीए के तहत आरोप लगा दिए गए थे. वो अभी भी जेल में ही हैं और उनकी पत्नी का दावा है कि उनकी जान को खतरा है. इस तरह कई पत्रकार उत्तर प्रदेश और कई राज्यों में सरकार के हाथों यातना झेल रहे हैं.
इंटरनेट पर भी मीडिया पर अंकुश
इंटरनेट और सोशल मीडिया पर भी पत्रकारों की आवाज को दबाने की कोशिश चल रही है. हाल ही में ट्विटर ने कार्टूनिस्ट मंजुल और कई पत्रकारों को पत्र लिख कर बताया कि कंपनी को उनके खिलाफ सरकार से शिकायतें मिली हैं और उनके खातों के खिलाफ कदम उठाने को कहा गया है. इसके बाद मंजुल के कार्टून जिस वेबसाइट पर छप रहे थे उसने उनके साथ अपना अनुबंध खत्म कर लिया. मुंबई प्रेस क्लब जैसे मीडिया संगठनों ने इसकी निंदा की है.
इसके बावजूद पत्रकारों पर दबाव कम नहीं हो रहे हैं. अंतर्राष्ट्रीय संस्था रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने अपने 2021 के विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत को उन देशों की सूची में रखा जो पत्रकारिता के लिए "बुरे" हैं और पत्रकारों के लिए दुनिया में सबसे खतरनाक स्थानों में से हैं. 180 देशों के इस सूचकांक में भारत को लगातार दूसरे साल 142वें स्थान पर रखा गया. पड़ोसी देशों में से नेपाल का स्थान था 106 और श्रीलंका का 127.