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शरीर की गर्मी से बिजली का निर्माण

संकलनः राम यादव१७ फ़रवरी २००९

पहली बार ऐसा हुआ है कि अंतरिक्ष में पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे दो उपग्रह आपस में टकरा कर ध्वस्त हो गये. उधर जर्मनी में किये गए एक नए शोध के मुताबिक बहुत कम बिजली से चलने वाले उपकरण हमारे शरीर की गर्मी से चल सकेंगे.

शरीर से बनेगी बिजलीतस्वीर: www.BilderBox.com

अंतरिक्ष में दो उपग्रहों की टक्कर

एक पुराने रूसी उपग्रह और एक अमेरिकी संचार उग्रह के बीच अंतरिक्ष में टक्कर हो गयी. दोनो पूरी तरह ध्वस्त हो गये. उनका मलबा अब लंबे समय तक अनियंत्रित ढंग से अंरिक्ष में पृथ्वी के चक्कर लगाता रहेगा. इससे अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन आईएसएस के लिए ख़तरा पैदा हो सकता है, हालाँकि अमेरिकी अंतरिक्ष अधिकरण नासा का कहना है कि यह ख़तरा स्वीकारणीय सीमाओं के भीतर ही रहेगा. दोनो उपग्रहों की टक्कर उससे कहीं अधिक ऊँचाई पर हुई है, जिस ऊँचाई पर अंतरराष्ट्रीय अंतिरक्ष स्टेशन पृथ्वी की परिक्रमा करता है. अंतरिक्ष यात्रा के इतिहास में दो उहग्रहों के बीच यह पहली टक्कर है.

शरीर की गर्मी से बिजली का निर्माण

बहुत कम बिजली पर चलने वाले उपकरण भविष्य में हमारे शरीर की गर्मी से चल सकेंगे. जर्मनी में एरलांगन के फ़्राउनहोफ़र संस्थान के शोधकों ने रेत के दाने दितना बड़ा एक ऐसा सूक्ष्म यंत्र बनाया है, जो गर्मी को बिजली में बदलने वाले मात्र डाक टिकट जितने बड़े एक थर्मो-जनरेटर की मदद से बहुत कम वोल्टेज की बिजली पैदा करता है. इस बिजली से, उदाहरण के लिए, ऊँचा सुनने वाले अपने कान में लगे श्रवणयंत्र को चला सकते हैं. इस मिनी जनरेटर के लिए बाहरी हवा और शरीर की गर्मी के बीच मात्र दो डिग्री अंतर होना भी पर्याप्त है.

कानों की मशीन चलेगी शरीर की गर्मी से!!!तस्वीर: AP

प्रोस्टेट कैंसर की पहचान का टेस्ट

अमेरिकी शोधकों ने पेशाब में सार्कोसिन नामका एक ऐसा अणु खोज निकाला है, जिस के बारे में कहा जा रहा है कि वह पुरुषों में अब तक की तुलना में कहीं अधिक भरोसे के साथ प्रोस्टेट ग्रंथि के कैंसर का सुराग दे सकता है. उन्होंने प्रोस्टेट कैंसर से पीडितों और स्वस्थ पुरुषों के पेशाबों की तुलना करने पर पाया कि सार्कोसिन केवल पीड़ितों के पेशाब में ही मिलता है. इससे एक ऐसा टेस्ट विकसित करने की संभावना बनती है कि मूत्र में उसकी मात्रा के आधार पर भरोसे के साथ कहा जा सके कि किसे प्रोस्टेट कैंसर है और किसे नहीं.

कैंसर का पहचान करने वाले नए अणु की खोजतस्वीर: picture-alliance/ dpa

अनुमान से अधिक स्तनपायी जीव

एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन से यह तथ्य सामने आया है कि हमारी पृथ्वी पर उससे अधिक स्तनपायी प्राणी रहते हैं, जितना पहले समझा जाता था. अकेले गत 15 वर्षों में 408 नये स्तनपायी प्राणियों की पहचान हुई है. उन में से कइयों को इससे

पहले ग़लती से नयी प्रजातियों के बदले पहले से ही ज्ञात प्रजातियों, प्रजाति परिवरों या वर्गों में गिना जा रहा था. यह बात कि वे बिल्कुल अलग प्रजातियाँ हैं, उनके जीनों के विश्लेषण से सामने आयी. डार्विन के विकासवाद की आनुवंशिक परिपुष्टि का यह एक और उदाहरण है. नयी स्तनपायी प्रजातियाँ मूलतः एशिया और दक्षिणी अमेरिका के ऐसे क्षेत्रों में पायी गयी हैं, जो बहुत दुर्गम और अछूते रहे हैं. स्तनपान करने वाले अब तक कुल मिला कर पाँच हज़ार से कुछ अधिक प्राणियों को सूचीबद्ध किया जा सका है. मनुष्य भी इसी तरह का एक स्तनपायी प्राणी है.

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