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गरीब मजदूरों की भूख और कोरोना से जंग 

आमिर अंसारी
२६ मार्च २०२०

रोजी-रोटी के लिए अपने घरों से दूर रहने वाले हजारों मजदूर लॉकडाउन होने के बाद अपने-अपने घरों के लिए रवाना हो चुके हैं. हाथों में थैला है और आंखों में उम्मीद कि जिंदगी का यह इम्तिहान भी वे किसी तरह से निकाल ही लेंगे. 

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तस्वीर: Reuters/R. De Chowdhuri

महानगरों में काम करने वाले अप्रवासी मजदूर लॉकडाउन की वजह से इन बड़े शहरों में फंस गए हैं. 24 मार्च से देश में तीन हफ्तों के लिए लॉकडाउन लागू हो चुका है. लॉकडाउन की वजह से जो जहां है वहीं फंस गया है. कुछ ऐसे भी लोग हैं जो महानगरों में अच्छी जिंदगी और कुछ रुपये कमाने की उम्मीद से घर और गांव छोड़कर आए थे अब उनके पास ना तो छत है और ना ही कोई सहारा देने वाला. अब ऐसे लोग पैदल ही अपने गांव और घर की ओर बढ़ चले हैं, तो कोई रिक्शे से सफर कर रहा है. हाथों में थैला है और थैले में बिस्कुट है, पानी की बोतल और आंखों में यह उम्मीद की एक, दो या तीन दिन में ही सही वे अपने घरों को पहुंच जाएंगे. उन्हें भरोसा है कि वह इसी तरह से चलकर या रिक्शा चलाकर अपने गांव तक पहुंचने में कामयाब हो जाएंगे. 

अब जरा इन पैदल चलकर जाने वालों के बारे में भी जान लीजिए. यह कौन लोग हैं, कहां से आए थे और यहां क्या कर रहे थे. यह वही लोग हैं जो कारखानों में काम करते थे, कोई रिक्शा चलाता था, कोई कपड़ा फैक्ट्री में काम करता था, कोई ऊंची-ऊंची इमारतों के नीचे चाय की दुकान लगाता था लेकिन लॉकडाउन ने उन्हें मजबूरी के रास्ते पर धकेल दिया है. न कोई काम और न ही कोई कमाई. ऐसे में वे बस अपने घर वापस जाना चाहते हैं. 

चेहरे पर मास्क है, कंधे पर सामान लदा है और साथ में छोटे-छोटे बच्चे भी हैं. मजदूरों और अप्रवासियों का कारवां निकल पड़ा है, इनकी मंजिल बहुत दूर है. कोई गुजरात से चलकर राजस्थान जाना चाहता है तो कोई दिल्ली से रिक्शा चलाकर बिहार के मोतिहारी जा रहा है. नोएडा और गाजियाबाद में काम करने वाले मजदूर भी उत्तर प्रदेश के गांवों की ओर निकल पड़े हैं. लॉकडाउन की वजह से ना ट्रेनें चल रही हैं और ना ही बसें. पैदल जाने वाले लोगों का कहना है कि यह सभी लोग महानगरों में मजदूरी करते हैं, रोज कमाते हैं और खाते हैं. लॉकडाउन की वजह से उनके पास अपने घर लौटने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है. 

  

देश के कई राज्यों में गर्मी की शुरुआत हो चुकी है और यह लोग तपती धूप में भी मंजिल पाने की जिद पर अड़े हुए हैं. धूप के बावजूद इनके कदम नहीं रुक रहे हैं. ये दिहाड़ी मजदूर हैं और इन्हें डर सता रहा है कि कहीं यह इन शहरों में लॉकडाउन की वजह से भूखे ही ना मर जाए, इसलिए यह अपने घर लौटने को मजबूर हैं. लॉकडाउन की वजह से दिहाड़ी मजदूरों की कमर टूट चुकी है. फैक्ट्री, निर्माण कार्य, होटल और ढाबे बंद हैं. शहर में मजदूरों का रहना मुश्किल हो गया है.

ऐसा नहीं है कि इनकी सुधबुध कोई नहीं ले रहा. जब गुजरात से मजदूरों के राजस्थान जाने की खबर राज्य के डिप्टी सीएम नितिन पटेल को लगी तो उन्होंने ऐसे लोगों की मदद की और खाने का इंतजाम कराया और राजस्थान जाने वाले मजदूरों के लिए बसों के इंतजाम कराए. 

उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत भी विभिन्न शहरों में फंसे उत्तराखंड के छात्रों और मजदूरों को वापस लाने के प्रयासों में लगे हैं.

एक अनुमान के मुताबिक बिहार और यूपी के पांच करोड़ से अधिक लोग पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र, हरियाणा, केरल और कर्नाटक में काम करते हैं और उनके सामने अब सबसे बड़ी चुनौती किसी तरह से अपने-अपने घर पहुंचने की है. ऐसे में साधन मिला तो ठीक है नहीं तो वे पैदल ही सफर तय करेंगे.  

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