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राजनीतिअफ्रीका

शांति का पुरस्कार जीत कर जंग छेड़ने वाला प्रधानमंत्री

३० नवम्बर २०२०

एक साल पहले नोबेल शांति पुरस्कार जीतने वाले प्रधानमंत्री ने अपने ही देश में एक विरोधी धड़े के खिलाफ जंग छेड़ दी है. जंग का नतीजा अफ्रीका की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाले देश को लंबे समय के लिए अस्थिर और अशांत कर सकता है.

Tigray-Konflikt | Militär Äthiopien
तस्वीर: Ethiopian News Agency/AP/picture alliance

आबी अहमद अलि लोकतंत्र, महिलाओं को आगे बढ़ाने और अपने विशाल देश में पेड़ लगाने के वादे के साथ इथियोपिया की सत्ता में आए थे. नोबेल पुरस्कार विजेता ने अपने ही देश के तिगराई में जंगी जहाज और सैनिकों को भेज कर जंग शुरू कर दी. विश्लेषकों का मानना है कि उनका यह कदम अफ्रीका की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाले देश में लंबा गृहयुद्ध छेड़ सकता है.

44 साल के आबीस ने 4 नवंबर को जब सैन्य अभियान का एलान किया तो उनका कहना था कि यह तिगराई की सत्ताधारी पार्टी की ओर से इथियोपिया के दो सैन्य ठिकानों पर किए गए हमलों का जवाब है. तिगराई की सत्ताधारी पार्टी पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट ने सैन्य ठिकानों पर हमले के आरोप से इनकार किया है.

इलाके में संचार पर फिलहाल पाबंदी है. ऐसे में दावों की स्वतंत्र पुष्टि भी संभव नहीं है. इसी बीच प्रधानमंत्री आबी ने फतह का भी एलान कर दिया है. अधिकारियों का कहना है कि सैकड़ों लोग मारे गए हैं. इतना ही नहीं हजारों लोग पड़ोसी देश सूडान की सीमा की तरफ पलायन कर गए हैं और संयुक्त राष्ट्र मानवीय संकट की चेतावनी दे रहा है.

नोबेल शांति और जंग

तस्वीर: Tiksa Negeri/REUTERS

दुनिया के नेता जंग को तुरंत रोकने और बातचीत शुरू करने की मांग कर रहे हैं. उधर आबी बार बार देश की "संप्रभुता और एकता" की रक्षा करने की जरूरत और "कानून व्यवस्था की फिर से बहाली" पर जोर दे रहे हैं. देश की रक्षा के लिए युद्ध को जरूरी बताने वाले आबी को एक साल पहले ही ओस्लो में नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा गया था. उन्हें पड़ोसी देश एरिट्रिया के साथ चली आ रही तनाव को खत्म करने के लिए नोबेल पुरस्कार मिला. 1998 से शुरू हुई इस खूनी जंग में 80 हजार से ज्यादा लोग मारे गए.

आबी ने पुरस्कार लेते वक्त अपने भाषण में कहा था, "जंग, उसमें शामिल सभी लोगों के लिए नारकीय स्थिति का चरम है." प्रधानमंत्री का दफ्तर आज भी यही कह रहा है कि वह अपने रुख पर अडिग हैं. उनके प्रेस सचिव ने तो यहां तक कहा कि वह तिगराई के विवाद को सुलझाने के लिए "दूसरे नोबेल पुरस्कार" के हकदार हैं. 

गरीबी में बीता बचपन

पश्चिमी शहर बेशाशा में एक मुस्लिम पिता और ईसाई मां के बेटे आबी का बचपन फर्श पर सोते हुए बीता और उनके घर में पानी की सप्लाई भी नहीं थी. पिछले साल एक रेडियो स्टेशन को उन्होंने बताया था, "हम नदी से पानी ढो कर लाते थे." आबी ने यह भी बताया कि 12-13 साल की उम्र होने के बाद उन्होंने पहली बार पक्की सड़क और बिजली देखी थी.

इथियोपिया में सत्ताधारी गठबंधन पीपुल्स रिवोॉल्यूशनरी डेमोक्रैटिक फंड के बनाए सत्ता ढांचे में आबी ने तेजी से कदम बढ़ाए. 1991 में यह गठबंधन सत्ता में आया.

तकनीक से अभिभूत अबीस किशोरावस्था में ही रेडियो ऑपरेटर के रूप में सेना से जुड़ गए. नोबेल पुरस्कार लेने के दौरान दिए भाषण में उन्होंने एरिट्रिया के साथ चली खूनी जंग के बारे में अपने अनुभव बांटे. उन्होंने बताया कि उनकी पूरी यूनिट तोप के हमले में मारी गई लेकिन जिस वक्त हमला हुआ वह बेहतर एंटीना रिसेप्शन खोजने के लिए अपनी यूनीट से थोड़ी दूर गए थे.

तस्वीर: picture alliance/AP Photo/NTB scanpix/H. M. Larsen

सत्ता का सफर

वह तरक्की हासिल कर सेना में लेफ्टिनेंट कर्नल बने और फिर उसके बाद सत्ता के गलियारे में इथियोपिया के साइबर गुप्तचर संस्था इंफॉर्मेसन नेटवर्क सिक्योरिटी एजेंसी के प्रमुख बन कर पहुंचे. 2010 में वो संसद के उपनेता बने और फिर 2015 में देश के विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री.

आबी के प्रधानमंत्री बनने के पीछे 2015 के आखिरी महीनों में हुई कुछ घटनाओं का योगदान था. सरकार ने राजधानी की प्रशासनिक सीमा के पास के ओरोमिया इलाके में विस्तार करने की योजना बनाई. इस कदम को जमीन हड़पने की कोशिश के बारे में देखा गया और इलाके के सबसे बड़े जातीय समूह ओरोमो और अमाहारा ने इसके खिलाफ प्रदर्शन शुरू कर दिए.

इसके बाद आपातकाल लगा और बड़ी संख्या में लोगों की गिरफ्तारी से प्रदर्शन तो बंद हो गए लेकिन लोगों के मन में इसकी तकलीफ बची रह गई. जब मौजूदा प्रधानमंत्री हाइलेमरियम डासालेग्न ने इस्तीफा दिया तो गठबंधन में शामिल पार्टियों ने आबी को ओरोमो समुदाय से पहला प्रधानमंत्री बनवा दिया. यह साल था 2018. आबी ने जेल में बंद लोगों को रिहा कर दिया, सरकार की क्रूरता के लिए माफी मांगी और निर्वासन में रह रहे गुटों की वतन वापसी का स्वागत किया.

हालांकि इसके बाद भी चुनौतियां खत्म नहीं हुईं. खासतौर से उनके गृहइलाके ओरोमिया में जातीय हिंसा चलती रही. इसी बीच तिगराई के नेता आबी के उभार से पहले देश की राजनीति में दबदबा रखते थे. वो आबी के किए सुधारों से खुश नहीं थे और खुद को अलग थलग महसूस कर रहे थे. देश के इस ताकतवर इलाके में तनाव कई महीनों से पल रहा था. यही तनाव आज जंग के रूप में सामने आया है.

तस्वीर: EDUARDO SOTERAS/AFP

आबी ने जीनाश तायाचेव से शादी की है, जिनसे उनकी मुलाकात सेना में हुई थी. इन दोनों की तीन बेटियां हैं और 2018 में उन्होंने एक बेटे को गोद भी लिया.

घरेलू संघर्षों और समस्याओं की बजाय राजधानी को खुबसूरत बनाने और अंतरराष्ट्रीय मामलों में मध्यस्थता पर ध्यान देने के लिए बेहद महत्वाकांक्षी आबी की आलोचना होती है. समय गुजरने के साथ उन पर उन्हीं निरंकुश तरीकों का इस्तेमाल करने के आरोप लग रहे हैं जिनकी उनसे मिटाने की उम्मीद की गई थी. बड़ी संख्या में गिरफ्तारी और सुरक्षाबलों के हाथों उत्पीड़न की घटनाएं बढ़ रही हैं.

तिगराई का विवाद आबी के लिए अब तक की सबसे बड़ी चुनौती है. विश्लेषक और राजनयिक चेतावनी दे रहे हैं कि यह पूरे इथियोपिया को अस्थिर कर सकता है. हालांकि आबी ने एक तुरंत और निर्णायक जीत का वादा किया है और अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपने सैन्य अभियान की जरूरत को समझने की अपील कर रहे हैं. उनका कहना है, "हम आश्वस्त हैं कि तुलनात्मक रूप से छोटे समय में अपने उद्देश्यों को पूरा कर लेंगे और तिगराई में हमारे नागरिकों के लिए सामान्य जिंदगी की वापसी के लिए सहायक वातावरण बनाने में सफल होंगे."

इस बीच संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियां इलाके में पहुंच कर मानवीय संकट की सही स्थिति का पता लगाने के इंतजार कर रही हैं.

एनआर/आईबी (एएफपी)

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