पत्रकारों के लिए भारत सबसे खतरनाक
२९ दिसम्बर २०१५![Beerdigung von Bernard Verlhac](https://static.dw.com/image/18195074_800.webp)
सैनिकों की ही तरह अपनी लाइन ऑफ ड्यूटी में इस साल 67 पत्रकारों ने अपनी जान गंवाई. पत्रकार संगठन का वार्षिक लेखाजोखा दिखाता है कि युद्ध से जूझ रहे इराक और सीरिया पत्रकारों के लिए भी सबसे खतरनाक ठिकाने रहे. इराक में 11 जबकि सीरिया में 10 जर्नलिस्ट मारे गए. इसके बाद फ्रांस का नंबर रहा जहां व्यंग्यात्मक पत्रिका शार्ली एब्दो के 8 पत्रकारों को जिहादी हमले में मार डाला गया.
इसके अलावा दुनिया भर में 43 ऐसे पत्रकार रहे जिनकी मौत के कारणों का ठीक से पता नहीं चल पाया. ऐसे 27 गैर-पेशेवर सिटिजन जर्नलिस्ट ने भी 2015 में जान गंवाई. पत्रकार संगठन बताता है कि इतनी बड़ी संख्या का कारण "मुख्यतया पत्रकारों के विरुद्ध जानबूझ कर छेड़ी गई हिंसा" और उन्हें बचा पाने में असमर्थता रही. इसके लिए संयुक्त राष्ट्र से कदम उठाने की अपील की गई है. खासतौर पर रिपोर्ट में "गैर राज्य समूहों" की बढ़ती भूमिका और आईएस जैसे जिहादी समूहों के पत्रकारों पर ढाए जुल्मों का भी जिक्र है.
साल 2014 में करीब दो तिहाई पत्रकारों की हत्या के पीछे युद्ध का हाथ था जबकि 2015 में इसका ठीक उल्टा यानि "दो तिहाई मौतें शांति वाले देशों" में दर्ज हुई हैं. आरएसएफ के महासचिव क्रिस्टोफ डेलॉइर ने कहा, "इस साल मारे गए 110 पत्रकारों की मौत पर आपातकाल जैसी प्रतिक्रिया आनी चाहिए. संयुक्त राष्ट्र के महासचिव को बिना किसी देरी के पत्रकारों की सुरक्षा के लिए एक विशेष प्रतिनिधि नियुक्त करना चाहिए."
आरएसएफ की रिपोर्ट में भारत का विशेष जिक्र है. यहां केवल 2015 में ही 9 पत्रकारों की हत्या हुई, जिनमें से कुछ संगठित अपराधिक गुटों और उनके राजनीतिक संबंधों पर रिपोर्टिंग कर रहे थे. वहीं इनमें से कुछ भारतीय पत्रकारों ने अवैध खनन के बारे में विस्तृत खबरें प्रकाशित की थीं. इसके अलावा 5 भारतीय पत्रकार अपनी ड्यूटी के दौरान मारे गए जबकि 4 की मौत का निश्चित कारण पता नहीं चल सका. यही कारण है कि मरने वालों की संख्या बराबर होने के बावजूद भारत को फ्रांस से नीचे रखा गया है जहां कारण ज्ञात था.
भारत सरकार से पत्रकारों की सुरक्षा की एक राष्ट्रीय योजना बनाने के आग्रह के साथ आरएसएफ ने लिखा है कि "यह मौतें मीडियाकर्मियों के लिए पूरे एशिया में भारत को सबसे खतरनाक ठिकाने के तौर पर दिखाती हैं, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से भी आगे." बांग्लादेश में भी इस साल चार सेकुलरिस्ट ब्लॉगरों की हत्या हुई जिसकी जिम्मेदारी स्थानीय जिहादियों ने ली.
आरआर/एमजे (एएफपी)