प्रियंका चोपड़ा दुनिया की 100 प्रभावशाली महिलाओं में शुमार हैं. उन्हें यूथ आइकन भी माना जाता है. लेकिन हाल ही में उनकी और कुछ अमीर हस्तियों की शादियों में जैसा शोरशराबा हुआ, वह निराश करने वाला है.
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दीपिका पादुकोण-रणवीर सिंह, ईशा अंबानी- आनंद पीरामल और प्रियंका चोपड़ा- निक जोनस. भारत की इन तीन शादियों ने घरेलू से लेकर अंतरराष्ट्रीय मीडिया में सुर्खियां बटोरीं. पहले लगा कि दीपिका और रणवीर की शादी को लेकर गॉसिप जरूरत से ज्यादा थोपी जा रही है. फिर प्रिंयका-निक की शादी ने तौबा करा दी. उसके बाद अखबार और वेबसाइट अंबानी परिवार में हुई शादी की तस्वीरों और खबरों से भर गए.
भारतीय मीडिया के बड़े हिस्से ने इन शादियों का ऐसा महिमा मंडन किया कि झल्लाहट सी होने लगी. लगा कि ये शादियां अगर इतनी न होतीं तो दुनिया बड़ी बेरंग सी हो जाती. तस्वीरें पब्लिश करने के लिए होड़ सी छिड़ गई. जोड़ी यहां से लौटी, जोड़ी वहां पहुंची, देखिए इनका नया घर, फलां, फलां.
प्रियंका चोपड़ा की शादी की कवरेज ओवरडोज कर गई. टाइम मैग्जीन के मुताबिक प्रियंका दुनिया की 100 प्रभावशाली महिलाओं में से एक हैं. युवा पीढ़ी उन्हें ट्विटर और इंस्टाग्राम पर फॉलो करती है. वह यूएन की अंबेसडर हैं. रोहिंग्या कैंप में वह शरणार्थियों की तंगहाली का जायजा लेती हैं. सार्वजनिक मंच पर वह खुद को बेहद संवेदनशील इंसान के तौर पर पेश करती हैं. उन्हें दीवाली के दौरान पटाखों से होने वाला प्रदूषण दिखता है, लेकिन उम्मेद भवन में अपनी शादी के दौरान हुई आतिशबाजी का धुआं उन्हें नजर नहीं आता.
आम तौर पर समाज में निम्न आय वर्ग, उच्च आय वर्ग के तौर तरीकों का अनुसरण करता है. आज गांव गांव तक पहुंचे हुए टेंट हाउस इसी बात का सबूत हैं. शादियों में तमाम तरह के व्यंजन परोस देना, यही बीते दो-तीन दशकों का आविष्कार है.
आम भारतीय परिवार अच्छी शादी के चक्कर में कर्ज में डूब जाते हैं, लेकिन दबाव ऐसा है कि उधार ले लेकर चकाचौंध भरी शादी करनी पड़ती है. ऐसे समाज के सामने हाल की इन महंगी शादियों और उनकी अंधी मीडिया कवरेज ने बहुत अच्छा उदाहरण पेश नहीं किया है. शादी में पैसा खर्च करना कोई अपराध नहीं है. लेकिन यह सब उस देश में हो रहा है जहां के स्कूलों में आज भी "विद्या ददाति विनयम," जैसे श्लोक लिखे जाते हैं.
(एक शख्स, जिसने सैकड़ों निर्धन बेटियों की अच्छे से शादी की)
धूमधाम से की 969 बेटियों की शादी..
गुजरात के महेश सिवानी की कोई सगी बेटी नहीं थी, लिहाजा उन्होंने बाकी युवतियों को अपनी बेटी के तौर पर स्वीकार कर लिया. पिता का फर्ज निभाया और धूमधाम से उनका कन्यादान किया.
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बेटियों के बीच महेश
रियल स्टेट और हीरा व्यापारी महेश सवानी ने सूरत में इस बार 251 युवतियों की शादी करवाई. शादी का पूरा खर्च महेश ने ही उठाया.
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सारी जिम्मेदारी
महेश 2012 से ऐसी युवतियों की शादी करते हैं, जिनके पिता नहीं हैं और परिवार की आर्थिक हालत भी ठीक नहीं.
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कहीं कोई कमी नहीं
शादी के दौरान दुल्हन के श्रृंगार से लेकर हर तरह की रस्म हुई. कहीं कोई कमी नजर नहीं आई.
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सर्वधर्म सम्भाव
महेश ने पिता बनकर जिन बेटियों की शादी की, उनमें दूसरे धर्मों की युवतियां भी थी. क्रिसमस की पूर्वसंध्या पर कई मुस्लिम और ईसाई युवतियों को भी जीवनसाथी मिला.
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शादी अब भी बड़ी चिंता
भारत में बेटी की शादी अब भी मां बाप के लिए बड़ी चिंता होती है. अथाह खर्च, दहेज और मेहनमानवाजी के चक्कर में ज्यादातर लोग कर्ज के नीचे दब जाते हैं.
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मेरी बेटियां हैं
सवानी अब तक 969 युवतियों की शादी में मदद कर चुके हैं. वह कहते हैं कि "ये सारी मेरी बेटियां है. इन्हें खुश देखकर मुझे बहुत खुशी होती है."
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पवित्र पहल
महेश कहते हैं, "कन्यादान से ज्यादा पवित्र कोई चीज नहीं. इस साल मेरे एक कारोबारी दोस्त बटुकभाई मोवालिया ने भी मेरी मदद की."
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सुखी रहे घरबार
महेश सिर्फ शादी का ही खर्च नहीं उठाते, बल्कि वह बेटियों को सोने चांदी के गहने और घर का सामान और फर्नीचर भी देते हैं. शादी के बाद भी वह बेटियों का खर्च उठाते हैं. बेटियों के मां बनने का खर्च महेश उठाते हैं. बाद में बच्चों के पढ़ाई लिखाई में भी महेश मदद करते हैं.
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दिखावे से दूर
भारत में सामूहिक विवाह कोई नई बात नहीं है, लेकिन आम तौर पर ऐसे सामूहिक विवाह बेहद सादे होते हैं. दूल्हे और दुल्हन के मन में भी एक मलाल सा रह जाता है. लेकिन महेश ऐसा बिल्कुल नहीं होने देते.