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शिंजो अबे के लिए आसान नहीं सख्त होना

२७ दिसम्बर २०१२

बुधवार को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर वापस लौटे शिंजो अबे दुनिया के बीच जापान की मौजूदगी पर अपने दमदार रुख और खरी जबान के लिए जाने जाते रहे हैं. पर इस बार शायद उनके लिए उतना सख्त होना मुमकिन न हो.

तस्वीर: Reuters

रुढ़िवादी विचारों वाले अबे ने 2006 में जब पहली बार देश की कमान संभाली थी तब वह देश के सबसे युवा प्रधानमंत्री थे. चुनावों में हार और मंत्रियों के विवादों में फंसने के बाद बीमारी के नाम पर अचानक सत्ता छोड़ने का एलान कर उन्होंने देश को हैरान कर दिया था. अब 58 साल के हो चुके लिबरल डेमोक्रैटिक पार्टी के मुखिया चीन और उत्तर कोरिया के हमलावर रुखों के खिलाफ सख्त कदम का वादा कर प्रधानमंत्री निवास में लौटे हैं.

अबे ने बैंक ऑफ जापान को मुद्रा आसान करने पर विवश करने के लिए कानूनों में संशोधन की भी बात कही है. ऐसे में देश ज्यादा मुद्रा की मौजूदगी और महंगाई को लक्ष्य बनाने के लिए बॉन्ड्स की ज्यादा खरीदारी की उम्मीद कर सकता है जिससे अर्थव्यवस्था में तेजी आ सकती है.

हालांकि ज्यादातर राजनीतिक जानकार मान रहे हैं कि अबे विवादित नीतियों को लागू करने का जोखिम तब तक नहीं उठाएंगे जब तक कि संसद के ऊपरी सदन के चुनाव नहीं हो जाते. अगले साल गर्मी में होने वाले इन चुनावों में जीत देश की सत्ता पर उनकी पकड़ को और मजबूत करेगी. इसी महीने हुए चुनावों में उनकी जबर्दस्त जीत के पीछे उनकी कामयाबी से ज्यादा उनके विरोधियों से जनता की नाराजगी ज्यादा बड़ी वजह रही है. डेमोक्रैटिक पार्टी ऑफ जापान को उसके नाकाम शासन की सजा मिली है.

सात साल में सात प्रधानमंत्री

2007 में जब अबे ने कुर्सी छोड़ी थी तब शायद वह नहीं जानते थे कि यह सत्ता के गलियारे में एक ऐसी कतार की शुरुआत है, जो सात साल से भी कम समय में देश को सात प्रधानमंत्री दिखाएगी. अबे के जाने और लौटने के बीच पांच और प्रधानमंत्री आ कर जा चुके हैं. पहली बार अबे को सत्ता विख्यात नेता जुनिशिरो कोइजुमी की विरासत के रूप में यूं ही मिल गई थी जिनके डेपुटी के रूप में उन्होंने एक उत्सुक और उत्साही भूमिका निभाई थी. उत्तर कोरिया ने जब यह मान लिया कि उसने 1970 और 1980 के दशक में अपने जासूसों को ट्रेनिंग देने के लिए जापानी आम नागरिकों का आपहरण किया था, अबे ने बड़े सख्त लहजे में उससे बात की और इसने वोटरों के बीच उन्हें लोकप्रिय बनाया.

राजनीतिक पीढ़ियों वाले रुढ़िवादी परिवार में शिंजो अबे बड़े हुए. उनके दादा नोबुसुके किशी दूसरे विश्व युद्ध के दौरान कैबिनेट सदस्य थे और युद्ध अपराधी के रूप में कुछ दिनों के लिए जेल भी गए. जंग के बाद वह प्रधानमंत्री बने और वामपंथियों के साथ टकराव का रास्ता अपना कर अमेरिका के साथ करीबी रिश्ता बनाया. शिंजो के पिता शिंतारो अबे देश के विदेश मंत्री तो रहे लेकिन प्रधानमंत्री बनने का लक्ष्य पूरा नहीं कर पाए. 1993 में उनकी मौत के बाद शिंजो अबे ने उनकी संसदीय सीट हासिल की.

तस्वीर: Reuters

चीन के साथ समझौता नहीं

एलडीपी में उनकी वापसी के बाद से ही अबे ने देश को दुनिया के मंच पर एक सख्त रुख अपनाने के लिए तैयार किया है और उनका साफ साफ कहना है कि चीन के साथ द्वीपों के विवाद पर किसी समझौते का सवाल ही नहीं है. 1947 में अमेरिका से हारने के बाद देश में लागू हुए शांतिवादी संविधान की समीक्षा भी उनके दिल के करीबी मुद्दों में है. बिंदास तरीके से अपनी बात रखने के लिए उनकी पूरी दुनिया में शोहरत है. भले ही कई बार उन्हें अपने रुख से पीछे हटना पड़ा हो, लेकिन वह बोलने से नहीं कतराते. जंग के दौरान सेक्स दासों के बारे में दिया उनका बयान ऐसा ही एक मामला था, जब अमेरिकी दखल के बाद वह पीछे हट गए.

दक्षिणपंथी भाषणबाजी के बावजूद वह अपने पहले कार्यकाल में उम्मीद से ज्यादा व्यवहारिक साबित हुए थे. उन्होंने चीन के साथ रिश्ते सुधारने पर काम किया, जो जापान का सबसे बड़ा कारोबारी साझीदार है, और साथ ही दक्षिण कोरिया के साथ भी. राजनीति के प्रोफेसर मकिताका मासुयामा का कहना है कि भारी जनमत उन्हें जरूरत से ज्यादा उग्र होने से रोकेगा. उनका कहना है, "ऐसा नहीं कि वोटरों ने उनकी जंगी एजेंडे पर भरोसा जता दिया है. वह जानते हैं कि अगर देश में आर्थिक खुशहाली के लक्ष्य को हासिल करना है और वोटरों का समर्थन बनाए रखना है तो उन्हें चीन के साथ अपने टकराव वाले रुख को नरम बनाना होगा."

उद्योगपति बाप की खूबसूरत बेटी अकी अबे की सौम्यता शिंजो अबे की कठोर छवि में नरमी के कुछ रंग जरूर उड़ेलती है, जो अपनी कोरियाई संस्कृति से प्रेम के लिए विख्यात हैं. दोनों की अब तक कोई संतान नहीं है.

एनआर/आईबी (एएफपी)

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