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'शिक्षा में समान अवसर' पर बहस

३० मई २०१२

हाल ही में हमारी वेबसाइट पर शिक्षा पर कुछ लेख डाले गए थे जिन पर पाठकों ने हमें अपनी प्रतिक्रियाएं, सुझाव, राय भेजी हैं, आइए जाने क्या कहती है हमारे पाठक.

Bildung für alle: Best Practice Inklusion an pakistanischer Schule Schulkinder mit Behinderungen im Schulunterricht Copyright: DW / Rachel Y. Baig Eingereicht von Claudia Unseld am 18.5.2012
तस्वीर: DW

आज मैंने आपकी साइट पर कई लेख पढ़े, 'सपना है शिक्षा में समान अवसर', 'भारत: शिक्षा सिर्फ पैसे वालों के लिए' और 'गवार से अमीर होते भारतीय किसान' तीनों काफी सूचनाप्रद लगे. शिक्षा में सामान अवसर मिल पाना मुश्किल है क्योंकि लोगों के पास टैलेंट तो है पर पैसा नहीं है. शिक्षा मिल पाना ही मुश्किल है. उच्च और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तो असंभव है चाहे वह भारत है या कोई दूसरा देश. अच्छी शिक्षा सिर्फ और सिर्फ पैसे वालों को ही मिल पाती है. पैसा नहीं तो केवल काम चलाऊ शिक्षा ही आपको मिलेगी. यही बिडम्बना है हमारे यहां भारत में शिक्षा स्टेटस सिंबल है. माता-पिता अपने बच्चे को अच्छी शिक्षा देने के लिए प्राइवेट स्कूल में अपने बच्चे को पढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ते. भले ही उनकी अपनी आय कम क्यों न हो, भले ही उन्होंने खुद कोई शिक्षा न पाई हो. इसके लिए लोग कर्ज लेकर भी बच्चों को पढ़ाते हैं. कुछ लोगों को इसका रिजल्ट भी मिलता है पर कुछ का जीवन दलदल बन जाता है. लड़कियों की शिक्षा पर आपने काफी बढ़िया बातें आपने लेख में कही है जो इस प्रकार है, "यदि आप एक लड़के को पढ़ाते हैं तो एक व्यक्ति में निवेश करते हैं. यदि आप लड़की को स्कूल भेजते हैं तो आप एक परिवार में निवेश करते हैं और अक्सर एक पूरे गांव में." सब मिला कर सभी टॉपिक अच्छे हैं और अच्छे लगे.

एस बी शर्मा, जमशेदपुर झारखण्ड

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बहुत सच्ची और सटीक तस्वीर प्रस्तुत की है भारतीय शिक्षा के बारे में. न तो स्तरीय शिक्षक हैं और न ही साधन.

प्रमोद महेश्वरी, शेखावाटी, राजस्थान

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तस्वीर: AP

'सपना है शिक्षा में समान अवसर' देश में बेटियों की संख्या निरंतर गिरती जा रही है लेकिन फिर भी बेटियों पर किए जा रहे अत्याचारों में कोई कमी नहीं आई है. बेटियों को बचाने के लिए बनाए गए कानून भी धरे के धरे रह गए हैं. हालांकि आज बेटियों ने आसमान छूकर दिखा दिया है. महिलाएं आज जिस स्तर पर हैं वो मुकाम उन्होंने खुद के दम पर हासिल किया है. आज के दौर में औरतें घर और बाहर दोनों की जिम्मेदारियां बखूबी निभा रही हैं. कहने के लिए तो हमारा देश आधुनिकता के दौर में पैर पसार चुका है. बेशक उसके खान-पान से लेकर पहनावे तक में आधुनिकता झलकती है लेकिन अपनी सोच को वे आधुनिक नहीं बना सके. बेटियों के मामले में उनके दिमाग में आज भी वही रुढ़िवादिता व दकियानूसी बातें उभरती हैं जो सदियों पहले थी. मसलन, बेटियां बोझ होती हैं, उनके विवाह के दौरान दहेज देना पड़ता है, वंश नहीं होती, बुढ़ापे का सहारा नहीं होतीं. अपनी इसी नकारात्मक विचारधार व संकीर्ण मानसिकता के कारण वे वास्तव में आज भी पिछड़े हुए हैं. इस आधुनिक दौर में आज भी ऐसे लोगों की कमी नहीं हैं जो महिलाओं का सिर्फ चार दीवारी तक ही सीमित रहना उचित मानते हैं. हम सोचते हैं कि शिक्षित और धनी लोगों की सोच का दायरा बड़ा होता है लेकिन नहीं. चाहे कोई भी वर्ग हो, शिक्षित हो या अशिक्षित, धनी हो या निर्धन, बेटियों के लिए सबकी मानसिकता एक जैसी ही होती है. वे धन के बलबूते बेशक ऊपर उठ जाएं लेकिन असल मायने में उनकी नकारात्मक सोच उन्हें कभी ऊपर नहीं उठने दे सकती.

बबिता नेगी, ईमेल द्वारा

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आपका "सवाल का निशान" का पुरस्कार मुझे मिला इस बात को खैर दो हफ्ते बीत चुके हैं लेकिन आपका धन्यवाद दिए बिना मैं कैसे रह सकता हूं. सो तो आज लिखने का मन किया. मेरे घर मैं आज तक टीवी नहीं है और हमारे घर मैं किसी को भी उसकी कमी महसूस नहीं होती, रेडियो ही हम सबका सच्चा मित्र है. डॉयचे वेले के साथ मैं श्रोता के तौर पर लगभग 10 सालों से जुडा हूं किन्तु कभी आपसे बातचीत करने का मौका नहीं आया था. फेसबुक और ट्विटर के माध्यम से आप से जुड़ पाने का मौका मिलता है. आपके इनाम का मैं अनपेक्षित लाभार्थी हो गया इसी से मुझे खुशी हुई. मैं आप सभी का तहे दिल से धन्यवाद अदा करना चाहता हूं.

मनोज कामत, लवासा सिटी, पुणे

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एक अच्छा समय बीत गया जब हम रेडियो पर आपका कार्यक्रम सुनते थे सोते समय,खाना खाते समय. लगता है वह समय फिर नहीं आयेगा. क्या समय का दुबारा चक्र फिर से चालू नहीं हो सकता?

राम मौर्या, ईमेल द्वारा

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'सिगरेट पीने पर माफी मांगने को तैयार शाहरुख' शाहरुख खान एक समझदार इंसान हैं उनको ऐसा नहीं कहना चाहिए था. देश के सामने सिर झुकाना पड़े, कानून के आगे जाकर माफी मांगनी पड़ी, जुर्माना भी देने को तैयार है तो इन बादशाह को कोई ऐसा काम ही नहीं करना चाहिए जिससे की शर्मिंदा भी होना पडे. सिगरेट तो सही मायनों में मौत का बुलावा है.

ब्रिजकिशोर खंडेलवाल, ईमेल द्वारा

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संकलनः विनोद चड्ढा

संपादनः ओंकार सिंह जनौटी

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