शिक्षिका पर भड़क कर क्या साबित कर रहे थे मुख्यमंत्री?
शिवप्रसाद जोशी
२ जुलाई २०१८
महिला पर आरोप लगाने वालों की कमी नहीं, लेकिन सवाल यहां मुख्यमंत्री के व्यवहार का है. आप क्यों बिदके?
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उत्तराखंड की एक शिक्षिका के साथ मुख्यमंत्री की बदसलूकी का मामला तूल पकड़ता जा रहा है. मुख्यमंत्री त्रिवेंद सिंह रावत के रवैये की चौतरफा तीखी आलोचना की जा रही है कि आखिर उन्होंने शिक्षिका के आक्रोश पर आपा क्यों खो दिया. इस बीच शिक्षकों के तबादले और प्रमोशन में भेदभाव के आरोप भी लग रहे हैं. कहा जा रहा है कि खुद मुख्यमंत्री और कई और मंत्रियों और नेताओं की पत्नियों को रियायत दी गई है.
खबरों के मुताबिक, उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में प्राथमिक स्कूल में प्रिंसिपल पद पर तैनात उत्तरा पंत बहुगुणा ने अब हाई कोर्ट की शरण में जाने की बात भी कही है. वो जल्द ही रिटायर होने वाली हैं और इसी आधार पर ट्रांसफर चाहती थीं. 2015 में उनके पति का निधन हो गया था. उनका कहना है कि वो कांग्रेस के शासनकाल में तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत और मौजूदा मुख्यमंत्री से भी पहले मिल चुकी थीं. जब उनका काम नहीं बना तो वो जनता दरबार में गुहार लगाने पहुंचीं. वहां मुख्यमंत्री से फरियाद करते हुए कहासुनी हो गई. घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल है.
इस विवाद ने नया मोड़ ले लिया जब खुद मुख्यमंत्री की पत्नी का मामला उठ गया जो टीचर हैं. एक आरटीआई सूचना से इसका पता चला कि 22 साल से उनका तबादला ही नहीं हुआ है. अन्य मंत्रियों और नेताओं की पत्नियों के नाम भी सामने आ रहे हैं. और सोशल मीडिया पर इस मुद्दे पर बहस उठ खड़ी हुई है कि तबादलों को लेकर सरकारों की नीतियों में खोट है और सिफारिशी या विशिष्ट लोगों को हर किस्म की रियायत मिल जाती है. हालांकि बीजेपी हल्कों में ताजा विवाद को राजनीति प्रेरित भी बताया जा रहा है. ये भी सच है कि मुख्यमंत्री का आपा खो देने का वीडियो वायरल होने के बाद पार्टी और सरकार डैमेज कंट्रोल की कोशिश में भी जुटी है.
दुनिया ने शिक्षा के तमाम लक्ष्य तय किए हैं लेकिन दुनिया के कई देश शिक्षकों की कमी से जूझ रहे हैं. हालांकि कुछ ऐसे देश भी हैं जहां ये टीचर-स्टूडेंट अनुपात सबसे अच्छा है. मतलब इन देशों में शिक्षकों की कोई कमी नहीं है.
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10. पोलैंड
साल 2015 में जारी यूनेस्को के आंकड़ें बताते हैं कि देश में साक्षरता दर तकरीबन 99.8 फीसदी है. प्राइमरी स्कूलों में हर 10 बच्चों पर यहां एक शिक्षक है. आंकड़ों के मुताबिक देश की शिक्षा प्रणाली काफी विकसित है और स्कूलों में बच्चों पर पूरा ध्यान दिया जाता है.
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9. आइसलैंड
मानवाधिकारों के मामले में अच्छा देश माने जाने वाला आइसलैंड शिक्षा और साक्षरता के स्तर में काफी आगे है. यहां भी हर 10 स्कूली बच्चों पर 1 शिक्षक मौजूद है. देश में 6 से 16 साल तक के बच्चों के लिए स्कूल जाना अनिवार्य है. आइसलैंड में हर बच्चे को पूरी तरह से मुफ्त और अच्छी शिक्षा का अधिकार प्राप्त है.
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8. स्वीडन
स्वीडन की शिक्षा प्रणाली बेहद उन्नत और विकसित मानी जाती है जिसकी बानगी देश के उच्च साक्षरता दर में साफ झलकती है. शिक्षा प्रणाली यह सुनिश्चित करती है कि हर बच्चे को ऐसी शिक्षा मिले जिससे उसका चहुंमुखी विकास हो. यही कारण है कि स्वीडन के स्कूलों में शिक्षकों की संख्या सबसे अधिक है. यहां भी तकरीबन हर 9-10 बच्चों पर एक शिक्षक होता है.
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7. एंडोरा
फ्रांस और स्पेन के पास बसे इस यूरोपीय देश की साक्षरता दर तकरीबन 100 फीसदी है. देश में 6-16 साल के बच्चों के लिए अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान है. स्थानीय भाषा एंडोरन के अलावा फ्रेंच और स्पेनिश भाषा भी यहां के स्कूलों में पढ़ाई जाती है. यहां के प्राइमरी स्कूलों में हर 9 छात्रों पर एक शिक्षक है.
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6. क्यूबा
साल 2015 में जारी यूनेस्को के आंकड़ें बताते हैं कि इस देश की साक्षरता दर 99.7 फीसदी है. यहां सरकार अपने बजट का 10 फीसदी हिस्सा देश की शिक्षा व्यवस्था के लिए आवंटित करती है. प्राइमरी स्तर तक की स्कूली शिक्षा अनिवार्य है. यहां भी हर 9 बच्चों पर एक शिक्षक है.
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5. लक्जमबर्ग
पश्चिमी यूरोप के इस छोटे से देश लक्जमबर्ग में शिक्षा प्रणाली बेहद संगठित है. यहां 4-16 साल के बच्चों के लिए स्कूल जाना अनिवार्य है. देश के अधिकतर स्कूलों में मुफ्त शिक्षा दी जाती है. यहां भी हर नौ छात्रों पर एक शिक्षक होता है.
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4. कुवैत
साल 2013 में जारी विश्व बैंक के आंकड़ें बताते हैं कि मध्य एशियाई देश कुवैत में साक्षरता दर 96 फीसदी है. यहां प्राइमरी और इंटरमीडिएट स्तर तक की शिक्षा कानूनी रूप से अनिवार्य है. देश की नागरिकता प्राप्त बच्चों के लिए सरकारी स्कूल में शिक्षा मुफ्त है. प्राइमरी स्तर के स्कूलों में यहां हर 9 बच्चों पर एक शिक्षक है.
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3. लिष्टेनश्टाइन
जर्मन भाषा बोलने वाले मध्य यूरोप के इस देश में वयस्क साक्षरता दर लगभग 100 फीसदी है. देश न केवल अपनी अच्छी स्कूली शिक्षा के लिए जाना जाता है बल्कि यहां शिक्षकों को अच्छा वेतन भी मिलता है. देश की कुल जनसंख्या साल 2013 के आंकड़ों मुताबिक महज 36 हजार के करीब है.
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2. बरमूडा
कैरेबियाई द्वीप बरमूडा भी साक्षरता के मामले में काफी आगे है. देश की वयस्क साक्षरता दर तकरीबन 98 फीसदी है. देश में 5-18 साल के बच्चों के लिए अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान है. साथ ही देश के 60 फीसदी बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं. देश के प्राइमरी स्कूलों में हर सात छात्र पर एक शिक्षक है.
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1. सैंट मैरिनो
चारों ओर इटली से घिरे इस छोटे से देश में वयस्क साक्षरता दर तकरीबन 98 फीसदी है. यहां हर छह छात्रों पर एक शिक्षक है. इस देश की शिक्षा व्यवस्था इटली की शिक्षा व्यवस्था पर आधारित है.
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जाहिर है ये मामला अब यहीं नहीं रुकेगा. उत्तराखंड में सुगम और दुर्गम स्थानों में नियुक्ति को लेकर कुछ पैमाने बनाए गए हैं. टीचरों को दुर्गम इलाकों में एक खास अवधि तक ड्यूटी करना अनिवार्य है. राज्य की स्कूली शिक्षा सचिव भूपेंदर कौर औलख ने कहा कि दूरस्थ या दुर्गम इलाकों में तैनात 58 और लोग भी हैं और उत्तरा पंत का नंबर 59वां हैं. सरकार ये तर्क भी दे रही है कि प्रिंसिपल पद पर प्रमोशन स्वीकार कर लेने से स्वतः ही उनका तबादला खारिज हो जाता है. इस बीच समाचार पत्रों में आई खबरों के मुताबिक 60 ऐसे सरकारी टीचर हैं जिन्होंने दिसंबर 2016 में प्रमोशन से इंकार कर अपनी जगह बने रहने का फैसला किया है. नियमानुसार प्रमोशन का अर्थ ये भी था कि पहाड़ी इलाकों में तबादला भी होगा. अकसर इससे बचने की प्रवृत्ति देखी गई है. ये एक दुखद पहलू है कि पहाड़ी इलाकों में नौकरी करने से कर्मचारी कतरा रहे हैं. दिसंबर 2016 में उत्तराखंड वार्षिक तबादला एक्ट पास किया गया था. एक्ट के मुताबिक चार साल से ज्यादा सुगम इलाकों में कार्यरत कर्मचारी को दूरस्थ या दुर्गम इलाकों में भी नौकरी के लिए जाना होगा.
शिक्षा व्यवस्था और तबादला नीति की पारदर्शिता पर ये सवाल पहली बार नहीं उठे हैं लेकिन इस मामले से सत्ता राजनीति के रवैये की पोल भी खुली है. एक पीड़िता से इस तरह के संवाद की अपेक्षा मुख्यमंत्री जैसे सर्वोच्च पद पर बैठे व्यक्ति से नहीं की जा सकती. महिला पर आरोप लगाने वालों की कमी नहीं, लेकिन सवाल यहां मुख्यमंत्री के व्यवहार का है. आप क्यों बिदके? लगता है, राजनीति की लंबी पारियां खेलने वाले हमारे नेतागण जैसे ही सत्ता पर विराजमान होते हैं, तो उनका धैर्य दरकने लगता है. ये राजनीतिक शुचिता और सार्वजनिक जीवन में आचरण का भी मामला है. अगर जागरूक लोगों को इस घटना में मर्दवादी वर्चस्व और श्रेष्ठता ग्रंथि से ग्रस्त हो जाने की बू भी आती है, तो वे कहां गलत हैं. उन्हें इसमें एक स्त्री को भरी सभा में डांटने फटकारने और उसे बंदी बना लेने का वैसा ही अहंकार दिखता है, जैसा एक हिंदू पौराणिक आख्यान और महाकाव्य के एक प्रसंग में जिक्र आया है. सोशल मीडिया पर एक वर्ग जिस तरह से शिक्षिका को अशिष्ट, असावधान, अनुशासनहीन, सिस्टम का लाभ उठाने वाली चतुर महिला करार देने पर तुला है, उससे भी चिंता होती है कि आखिर ये किस तरह से आक्षेप और अपमान का हिंसक नैरेटिव समाज में तैयार किया जा रहा है.
भारत में सबसे अमीर मुख्यमंत्री किस राज्य का है? टॉप10 अमीर मुख्यमंत्री कौन से हैं? उनके पास कितनी दौलत है? चलिए जानते हैं इन्हीं सब सवालों के जबाव..
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विजय रूपाणी, गुजरात (संपत्ति: 9.09 करोड़)
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लल थनहवला, मिजोरम (संपत्ति: 9.15 करोड़)
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वी नारायणसामी, पुद्दुचेरी (संपत्ति: 9.65 करोड़)
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पवन कुमार चामलिंग, सिक्किम (संपत्ति: 10.70 करोड़)
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नवीन पटनायक, ओडीशा (संपत्ति: 12.06 करोड़)
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सिद्धरमैया, कर्नाटक (संपत्ति: 13.61 करोड़)
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के चंद्रशेखर राव, तेलंगाना (संपत्ति: 15.51 करोड़)
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अमरिंदर सिंह, पंजाब (संपत्ति: 48.31 करोड़ )
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पेमा खांडू, अरुणाचल प्रदेश (संपत्ति : 129.57 करोड़)
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चंद्रबाबू नायडू, आंध्र प्रदेश (संपत्ति: 177.48 करोड़)
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अव्वल तो होना ये चाहिए कि जनता से मुलाकात के ऐसे कार्यक्रमों को जनता दरबार कहना बंद किया जाए. क्या मुख्यमंत्री कोई राजा हैं और जनता उसके दरबार में जाती है. इस कार्यक्रम का ऐसा नाम क्यों जिसमें सामंती बू आती हो? अगर दरबार जनता का है और जनता को राजा माना जा रहा है तो ये हास्यास्पद, खोखली और वोट लोलुप प्रतीकात्मकता भी बंद करनी चाहिए. मुख्यमंत्रियों का या किसी भी शीर्ष पद पर बैठे व्यक्ति का दायित्व है कि वो अपने राज्य की जनता से मिलें, उनकी परेशानियां सुनें और उनका भरसर निदान करें. वे वहां शिकायतें सुनने और उन पर भड़कने के लिए नहीं जाते हैं. ये जनता मिलन का कार्यक्रम होना चाहिए- दरबार नहीं.
फजीहत से बचने के लिए अच्छा होता कि शिक्षिका की शिकायत को गंभीरता से सुनते और उन्हें किसी तरह का आश्वासन देते. या विनम्रतापूर्वक उन्हें नियमों की याद दिलाते या अधिकारियों को मामले की जांच के लिए आदेश देते या मानवीयता के आधार पर तत्क्षण कोई फैसला ही कर देते. लेकिन उन्होंने जिस तरह से दुत्कार कर शिक्षिका को बाहर निकलवाया, उससे आशंका में लिपटा एक संदेश ये भी गया है कि खबरदार, कोई अपने दबेछिपे आक्रोश को जाहिर करने की भूल न करे, भले ही दबीछिपी राजसी और तानाशाही प्रवृत्तियां समाज में मंडराती हुई मुखर हो गई हों. हमें ध्यान रखना चाहिए कि लोकतंत्र में विरोध नहीं होगा तो फिर वो लोकतंत्र भी नहीं होगा.
मार्च 2018 में बिप्लब कुमार देब ने त्रिपुरा के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. कुछ ही दिनों में उनके एक से एक बयान सुर्खियां बटोरने लगे. जानिए उन्होंने ऐसा क्या क्या कहा जो चर्चा का विषय बन गया.
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टैगोर ने लौटाया था नोबेल पुरस्कार
रवींद्रनाथ टैगोर की जयंती पर उदयपुर में भाषण देते हुए बिप्लब देब ने कहा कि ब्रिटिश शासन का विरोध करने के लिए टैगोर ने नोबेल पुरस्कार ठुकरा दिया था, जबकि सच यह है कि टैगोर साहित्य का नोबेल पुरस्कार पाने वाले पहले भारतीय थे. 1913 में उन्हें यह पुरस्कार दिया गया. टैगोर ने नाइट की उपाधि को ठुकराया था.
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महाभारत के युग में भी था इंटरनेट
एक वर्कशॉप के दौरान बिप्लब देब ने कहा, "इंटरनेट और सैटेलाइट के जरिए संचार महाभारत के दिनों में भी होता था. नहीं तो संजय नेत्रहीन राजा को कुरुक्षेत्र के मैदान का पूरा ब्योरा कैसे देता? इसका मतलब यह है कि तब इंटरनेट था, सैटेलाइट और वह तकनीक उस समय इस देश में थी." उन्होंने आगे कहा, "मैं नहीं जानता कि बीच में क्या हुआ, महाभारत के युग और आज के समय के बीच."
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डायना हेडन नहीं हैं भारतीय सुंदरी
एक अन्य वर्कशॉप में देब ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय फैशन माफिया ने डायना हेडन को मिस वर्ल्ड चुना, "डायना हेडन तक को (खिताब) मिल गया. देखिए, अब पूरी दुनिया हंस रही है. मुझे बताइए, क्या डायना हेडन को यह मिलना चाहिए था? ऐश्वर्या राय को मिला, वो ठीक है क्योंकि वह भारतीय नारी के सौंदर्य का प्रतीक हैं. भारतीय नारी मतलब मां लक्ष्मी, मां सरस्वती. डायना हेडन खूबसूरती की इस परिभाषा में फिट नहीं बैठतीं."
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सिविल इंजीनियर को करनी चाहिए सिविल सर्विस
डायना हेडन वाले बयान के एक दिन बाद ही देब ने इंजीनियरों के बारे में यह कहा, "मैकेनिकल इंजीनियरिंग करने के बाद सिविल सर्विस में नहीं जाना चाहिए. बल्कि सिविल इंजिनियर को सिविल सर्विस करनी चाहिए क्योंकि उनके पास जरूरी ज्ञान है और प्रशासन व समाज के निर्माण का तजुर्बा है." उन्होंने यह भी कहा कि एक वक्त था जब आर्ट्स के छात्र सिविल सर्विस के लिए जाते थे लेकिन अब डॉक्टर और इंजीनियर भी ऐसा करने लगे हैं.
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ग्रेजुएट बेचें दूध
बेरोजगारी पर बात करते हुए उन्होंने एक सभा में कहा, "हर घर में एक गाय होनी चाहिए. सरकारी नौकरी के लिए नेताओं के पीछे क्यों भागना? आज दूध 50 रुपये लीटर पर बिक रहा है. ग्रेजुएट लोगों को गाय खरीदनी चाहिए और दूध बेच कर दस साल में दस लाख रुपये कमाने चाहिए. बजाए इसके कि वे राजनीतिक पार्टियों के पीछे भागें."
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पान की दुकान खोल लो
इसी सभा में उन्होंने यह भी कहा, "यहां का युवा सरकारी नौकरी की चाहत में कई कई सालों तक राजनीतिक पार्टियों के पीछे भागता रहता है और अपने जीवन का जरूरी समय बर्बाद कर देता है. इसी युवा ने अगर पार्टियों के पीछे भागने की जगह पान की दुकान खोल ली होती, तो अब तक पांच लाख रुपये का बैंक बैलेंस होता." जल्द ही देब की पान की दुकान वाली मिसाल की तुलना प्रधानमंत्री मोदी के पकौड़े वाले जुमले से होने लगी.
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प्रधानमंत्री को जवाबदेही
कुछ ही दिनों के भीतर इतने सारे विवादास्पद बयानों के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने देब को बुलवाया है. सोशल मीडिया पर इस बारे में कई तरह के चुटकुले चल रहे हैं. कुछ लोग तो चुटकी लेते हुए यह भी कह रहे हैं कि देब को ऐसी बयानबाजी करने को कहा गया है ताकि चुनावी साल में प्रधानमंत्री मोदी के विवादित बयानों से ध्यान भटकाया जा सके.