शिखर भेंट में मैर्केल और ईयू के भविष्य का फैसला
२८ जून २०१८अपने साढ़े 12 साल के शासन में चांसलर अंगेला मैर्केल ने ईयू के करीब 60 शिखर सम्मेलन में भाग लिया है. वे सबसे ज्यादा सालों से शासन कर रही यूरोपीय नेता हैं, लेकिन आज शुरू हुआ सम्मेलन उनके पूरे राजनीतिक जीवन का सबसे महत्वपूर्ण शिखर सम्मेलन है. ये उनके भविष्य के लिए अहम साबित हो सकता है. शरणार्थी समस्या पर संतोषजनक नतीजे के साथ ही वे अपने गठबंधन की कंजर्वेटिव साथी सीएसयू को सरकार में रोक पाएंगी. उन पर भारी दबाव है.
दो दिन बाद सीएसयू के गृह मंत्री हॉर्स्ट जेहोफर फैसला करेंगे कि वे जर्मन सीमा पर शरणार्थियों को रोकने का एकतरफा फैसला लेते हैं या नहीं. अगर वे ऐसा करते हैं तो मैर्केल को उन्हें बर्खास्त करना होगा और सरकार गिर जाएगी. इस बात की काफी कम उम्मीद दिखती है कि चांसलर अपने 27 साथियों के साथ ब्रसेल्स में शरणार्थी समस्या का यूरोपीय समाधान तय करने में कामयाब रहेंगी. ईयू के 16 देशों की अनौपचारिक बैठक के बाद वह स्वीकार कर चुकी हैं कि यूरोपीय परिषद की बैठक में भी आखिरी फैसला संभव नहीं होगा. सरकार प्रमुखों के बीच गंभीर मतभेद हैं.
अलग थलग हैं चांसलर
इटली की दक्षिणपंथी पॉपुलिस्ट सरकार के नेतृत्व में एक गुट मौजूदा डबलिन कानून को खत्म करवाना चाहता है जिसके अनुसार शरणार्थियों की जिम्मेदारी ईयू की बाहरी सीमा पर स्थित देशों की है. हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टोर ओरबान के नेतृत्व में दूसरा गुट किसी भी कीमत पर शरणार्थियों को अपने देशों में पनाह देने को तैयार नहीं है. इस रुख को अब पॉपुलिस्टों के गठबंधन वाली ऑस्ट्रिया की सरकार का पूरा समर्थन मिल रहा है.
फ्रांस और स्पेन को छोड़कर जर्मन चांसलर की शरमार्थी नीतियों का समर्थन करने वाला कोई नहीं है. यूरोपीय स्तर पर समझौता न होने की स्थिति में द्विपक्षीय स्तर पर समझौते करने का उनका प्रयास अब तक बहुत आगे नहीं बढ़ा है. इसकी कल्पना नहीं की जा सकती कि इटली, ग्रीस और ऑस्ट्रिया जर्मन सीमा पर पहुंचने वाले शरणार्थियों को वापस लेने को तैयार होंगे. हालांकि इटली के प्रधानमंत्री जुसेप कोंते ने कुछ शर्तों पर इसे मानने की बात कही है लेकिन उनके गृह मंत्री मातेयो साल्विनी एक भी शरणार्थी को अपने देश में आने देने को तैयार नहीं हैं.
विवादों में रिफ्यूजी कैंप
ईयू के अध्यक्ष डोनल्ड टुस्क ने समुद्र में बचाए गए शरणार्थियों के लिए ईयू से बाहर रिफ्यूजी कैंप बनाने का प्रस्ताव दिया है. कुछ देश इस प्रस्ताव का समर्थन कर रहे हैं, तो दूसरे ये कैंप ईयू के अंदर चाहते हैं. अब तक कोई देश अपने यहां ये कैंप बनाने को तैयार नहीं है. लीबिया और अल्बानिया ने अपने यहां कैंप बनाने से साफ तौर पर इनकार कर दिया है. चांसलर मैर्केल भी इसके पक्ष में नहीं हैं, क्योंकि ये ढेर सारी कानूनी और संगठन संबधी बाधा पैदा करेगा. इससे चांसलर को घरेलू मौर्चे पर हो रहे झगड़े में कोई फायदा नहीं पहुंचेगा.
डोनल्ड टुस्क ने चिंता व्यक्त की है कि शरणार्थियों का मु्ददा और उसके साथ जुड़ा सदस्यों के बीच एकजुटता का मुद्दा सदस्य देशों को गहरे बांट सकता है. हालांकि यूरोप आने वाले शरणार्थियों की तादाद 2015 के 16 लाख के मुकाबले 96 फीसदी कम है, लेकिन फिर भी लोगों को लगता है कि यूरोप की सीमा सुरक्षित नहीं है. बहुत से नेताओं का मानना है कि इसमें गलती यूरोप की उदारवादी लोकतंत्र की है. टुस्क ने कहा है, "हमने देखा है कि नए राजनीतिक पैदा हुए हैं जो जटिल मुद्दों के आसान जवाब देते हैं, आसान, रैडिकल और आकर्षक." वे आभास देते हैं कि शरणार्थी समस्या का समाधान सख्त कदमों से ही किया जा सकता है.
ईयू का संकट
डोनल्ड टुस्क ने चेतावनी दी है कि यदि लोगों को लगेगा कि सिर्फ इन आंदोलनों के पास ही शरणार्थी संकट का सही जवाब है, फिर वे उनकी हर बात पर विश्वास करेंगे. दरअसल शरणार्थी नीति पर हो रही बहस यूरोपीय संघ के आंतरिक संकट को दिखाती है. पहली बार यूरोपीय संघ खतरे में हैं, किसी बाहरी धमकी की वजह से नहीं बल्कि अंदर से. बेल्जियम के एक अखबार ने शिखर सम्मेलन पर सुर्खी लगाई है, "यूरोप में अंदरूनी धमाके पर विचार."
यूरोपीय संघ में विवादों को सुलझाने के पुराने नियम कायदे अब वैध नहीं रह गए हैं. पॉपुलिस्ट सरकारें सब कुछ नष्ट करने का रवैया अपना रही हैं, सदस्य देशों के बीच आपसी एकजुटता के कोई मायने नहीं रह गए हैं. अखबार के अनुसार दुश्मन का नाम है अनुदारवादी लोकतंत्र. इसे हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टोर ओरबान ने कुछ समय पहले ही अपने देश में राजकीय सिद्धांत घोषित कर दिया है. ये शिखर भेंट न सिर्फ जर्मन चांसलर मैर्केल के बल्कि यूरोपीय संघ के लिए भी अस्तिव का फैसला कर सकती है.