भारत में मुसलमान और ईसाई संप्रदाय के लोगों की आबादी में कथिक वृद्धि पर काबू पाने के लिए शिव सेना ने अल्पसंख्यक समुदाय के लिए परिवार नियोजन की मांग की है. पार्टी के मुखपत्र 'सामना' के संपादकीय में लिखा गया है, "केवल आबादी बढ़ाते रहने से ही वे पूरे देश को पाकिस्तान में बदलने की कोशिश कर सकते हैं, लेकिन इससे वे अपने परिवार को गुणवत्ता वाला और स्वस्थ जीवन तो नहीं दे सकते."
कुछ समय पहले इसी विषय पर अखिल भारतीय हिंदू महासभा की उपाध्यक्ष साध्वी देवा ठाकुर के विचारों का इस लेख में समर्थन है लेकिन शब्दों के चयन पर ऐतराज जताया है. लेख में कहा गया, "साध्वी देवा कहती हैं कि मुसलमानों और ईसाईयों की बढ़ती आबादी देश के लिए खतरनाक है और इसीलिए उनका जबरन बधियाकरण कर देना चाहिए. उन्हें (साध्वी) बधियाकरण की जगह परिवार नियोजन शब्द का इस्तेमाल करना चाहिए था."
बीते शनिवार को साध्वी ने बयान दिया था कि मुसलमानों और ईसाईयों की तेजी से बढ़ती आबादी देश के हिंदुओं के लिए खतरा बन रही है. देवा ठाकुर ने आगे कहा, "इसे रोकने के लिए केंद्र सरकार को इमरजेंसी लानी पड़ेगी, और मुसलमानों और ईसाईयों को बधियाकरण के लिए मजबूर करना पड़ेगा जिससे उनकी आबादी और ना बढ़े."
शिव सेना ने बुधवार को इस मत का समर्थन करते हुए सामना में लिखा, "साध्वी ओवैसी भाईयों (एआईएमआईएम) जितनी पढ़ी लिखी नहीं हैं, इसीलिए शायद अपने संदेश के लिए गलत शब्द चुने हों. उनके बधियाकरण वाले शब्द को छोड़ दें, तो सच्चाई यह है कि उनकी (मुसलमानों, ईसाईयों) की आबादी और उनका परिवार नियोजन एक समस्या है."
सेना ने यह भी कहा कि अगर ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के नेता अकबरूद्दीन ओबैसी को वाकई अपने समुदाय की चिंता है तो उन्हें परिवार नियोजन की मांग का समर्थन करना चाहिए और मुसलमान औरतों के बुर्का पहनने के रिवाज को भी खत्म करना चाहिए. अपनी मांग को अखबार ने इस तरह सही ठहराने की कोशिश की है, "परिवार नियोजन से यह सुनिश्चित हो सकेगा कि वे अपने परिवार की ठीक से देखभाल कर सकेंगे और अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिला सकेंगे."
भगवा दल शिव सेना पहले भी ऐसे बयान दे चुका है कि मुसलमानों का वोट देने का अधिकार खत्म कर देना चाहिए क्योंकि वोट बैंक की राजनीति में उनके समुदाय का इस्तेमाल किया जाता है. कई राजनीतिक दलों ने इस बयान की कड़ी निंदा की थी और सेना पर लोगों को बांटने और घृणा फैलाने की कोशिश करने का आरोप लगाया था.
आरआर/एमजे (पीटीआई)
दुनिया के तमाम धर्मों में भोजन और उपवास से जुड़ी अलग अलग मान्यताएं हैं. हिंदुओं का व्रत, मुसलमानों का रोजा, ईसाइयों और यहूदियों का उपवास तो बौद्ध धर्म में खाने में भी संतुलन का अभ्यास. मकसद एक - शारीरिक और मानसिक शुद्धि.
तस्वीर: S.Kodikara/AFP/Getty Imagesएश वेडनसडे के साथ ही कार्निवाल खत्म होता है और कैथोलिक ईसाइयों के लिए उपवास के समय की शुरुआत होती है. ईस्टर तक कुल 46 दिन. राख का यह क्रॉस नश्वरता की याद दिलाता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpaकई धर्मों में उपवास का नियम होता है. कोशिश होती है कि स्वादिष्ट खाने से मन हटा कर भगवान में लगाया जाए और उसके नजदीक जाया जाए. ईसाई धर्म में उपवास ईसा मसीह के उपवास की याद दिलाता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpaइस्लाम में रमजान के दौरान उपवास किए जाते हैं. इस दौरान इस्लाम को मानने वाले सूरज निकलने के बाद और डूबने से पहले कुछ नहीं खा, पी सकते. यौन संबंधों पर भी रोक होती है. इस उपवास का उद्देश्य होता है अल्लाह के नजदीक पहुंचना.
तस्वीर: picture-alliance/dpaहिंदू धर्म को मानने वाले लोगों में व्रत की लंबी परंपरा है. यह कोई वार हो सकता है, भगवान हो सकता है या फिर एकादशी या चतुर्थी. लोग अक्सर उपवास के लिए बनाए जाने वाले खास पदार्थ खाते हैं... जैसे साबुदाना, आलू की सब्जी या फिर दही... कड़े उपवास भी नवरात्री के दौरान किए जाते हैं.
तस्वीर: Reutersयहूदी लोग भी उपवास करते हैं. योम किपुर उत्सव के दौरान खाने, पीने और धूम्रपान पर भी रोक है. नहाना भी नहीं और शारीरिक संबंध भी नहीं. काम भी नहीं करना. इसके अलावा यहूदी इतिहास को याद दिलाने वाले उपवास के दिन भी होते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpaजर्मनी में उपवास अब लोग बिना धार्मिक कारण से भी करने लगे हैं. वह स्वास्थ्य, फिटनेस के लिए उपवास करते हैं. कुछ अल्कोहल छोड़ते हैं, तो कुछ मिठाई या मांसाहार. जबकि कुछ लोग मोबाइल, टीवी या कंप्यूटर से परहेज करने की कोशिश करते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpaकैथोलिक संगठन मिसेरेओर उपवास के दौरान दान का अभियान चलाता है. इस बार अभियान का टाइटल है हम भूख से तंग आ गए हैं. इसके जरिए दुनिया भर में भूखमरी से जूझ रहे 87 लाख लोगों के लिए धन इकट्ठा किया जाएगा.
तस्वीर: picture-alliance/dpaस्वास्थ्य के लिए उपवास यानी कम से कम कैलोरी वाला भोजन लेना. चाहे उसमें सिर्फ जूस हो, छाछ हो या कुछ और. लेकिन इस तरह के उपवास के लिए काफी किताबें बाजार में हैं
तस्वीर: picture-alliance/dpaउपवास के दौरान तरह तरह के ऑफर होते हैं. कुछ होटलों में खास पोषक भोजन बनाया जाता है तो कहीं योग या पेंटिंग के कोर्स होते हैं. शारीरिक शुद्धि के साथ आत्मा की शुद्धि पर भी जोर.
तस्वीर: Fotolia/Robert Kneschkeबौद्ध धर्म में न तो भूखा रहना चाहिए और न ही बहुत खाना चाहिए. पर कम खाना ध्यान के लिए अच्छा.
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