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मुंबई में आईटी छापों के बीच एनसीपी की सरकार बनाने की घोषणा

चारु कार्तिकेय
१५ नवम्बर २०१९

एनसीपी नेता शरद पवार ने घोषणा की है कि महाराष्ट्र में एनसीपी, कांग्रेस और शिव सेना की सरकार बनेगी और पूरे पांच साल चलेगी. उधर शिव सेना नियंत्रिक वृहत मुंबई कॉरपोरेशन के ठेकेदारों पर इनकम टैक्स विभाग के छापे पड़े हैं.

ICC Präsident Sharad Pawar
तस्वीर: AP

महाराष्ट्र में चल रहे सत्ता के खेल में नया मोड़ आया है. मराठा नेता और एनसीपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद पवार ने कहा है कि उनकी पार्टी, शिव सेना और कांग्रेस के बीच एक साझा न्यूनतम कार्यक्रम पर बातचीत चल रही है और तीनों पार्टियां शनिवार या रविवार तक राज्यपाल से मिल कर सरकार बनाने का दावा पेश करेंगी. पवार ने मध्यावधि चुनावों की संभावना को भी सिरे से नकार दिया और कहा कि ये सरकार एक स्थिर सरकार होगी और पूरे पांच साल चलेगी.

इसे एक अहम बयान माना जा रहा है क्योंकि महाराष्ट्र में अभी राष्ट्रपति शासन लागू है. 24 अक्तूबर को विधान सभा चुनावों के नतीजे घोषित होने के बाद 17 दिनों तक कोई भी पार्टी या गठबंधन सरकार नहीं बना पाई थी. अगर पवार की घोषणा सच साबित होती है तो ये बीजेपी के लिए शर्मिंदगी का कारण बन सकती है क्योंकि नई विधान सभा में वो सबसे बड़ी पार्टी है और उसे शिव सेना के साथ मिलकर सरकार बना लेने की पूरी उम्मीद थी. लेकिन शिव सेना ढाई-ढाई साल मुख्यमंत्री पद बांटने की अपनी मांग पर अड़ गई. बीजेपी को ये मंजूर नहीं था जिसकी वजह से दोनों का चुनाव के पहले का 35 साल से चला आ रहा गठबंधन टूट गया. 

मुश्किल में शिव सेना 

शरद पवार के बयान के आने से पहले आयकर विभाग ने घोषणा की थी कि उसने मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) के कुछ ठेकेदारों से जुड़े कुछ ठिकानों पर छापा मारा है और तलाशी ली है. विभाग ने कहा कि उसे खबर मिली थी कि इन ठेकेदारों ने बड़े पैमाने पर कर चोरी की है. विभाग ने कहा कि इस मुहीम में 735 करोड़ की अनियमितताएं सामने आई हैं. आई टी विभाग की ये कार्रवाई शिव सेना के लिए महंगी साबित हो सकती है क्योंकि भारत की सबसे अमीर नगरपालिका के रूप में जानी जाने वाली बीएमसी शिव सेना का गढ़ है.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी द्वारा केंद्रीय एजेंसियों का दुरूपयोग एक पुराना हथकंडा है जिसका आरोप हर पार्टी पर लगा है. चाहे वो आईटी और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) जैसी वित्तीय एजेंसियां हों या सीबीआई जैसी जांच एजेंसियां, सब पर केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी का हुक्म बजाने का इल्जाम लगा है. इसीलिए बीएमसी के ठेकेदारों के खिलाफ हुई इस कार्रवाई को भी राजनीतिक चश्मे से देखा जा रहा है और ये अटकलें लगाई जा रही हैं कि कहीं इसके जरिये बीजेपी शिव सेना पर उसके साथ मिल कर सरकार बनाने के लिए दबाव तो नहीं डालना चाह रही है. 

केंद्रीय एजेंसियों का राजनीतिक रंग

इस शुक्रवार को ही हुई एक और घटना को भी इसी परिदृश्य में देखा जा रहा है. कांग्रेस नेता डीके शिवकुमार को मनी लाउंड्रिंग के एक मामले में मिली जमानत को रद्द करने की ईडी की अपील को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया और एजेंसी को ये भी कहा, "ये देश के नागरिकों के साथ पेश आने का कोई तरीका नहीं है." अदालत ने ये भी कहा कि ईडी ने पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम के अदालती कागजात से कई लाइनें उठा कर शिवकुमार के खिलाफ अपील में चिपका दिया था. 

ये पहली बार नहीं है जब किसी केंद्रीय एजेंसी पर इस तरह का आरोप लगा है. विधान सभा चुनावों के ठीक पहले ईडी ने खुद शरद पवार के खिलाफ मनी लाउंड्रिंग के एक मामले में एफआईआर दर्ज की थी और उन्हें पूछताछ के लिए अपने दफ्तर बुलाया था. चुनाव नतीजे आ जाने के बाद ये अभी तक सामने नहीं आया है कि इस मामले में ईडी की जांच कहां तक पहुंची. ऐसे ही एनसीपी के एक और वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रफुल पटेल के खिलाफ भी ईडी ने एक मामला दर्ज किया था लेकिन वो जांच भी अभी शांत पड़ी है. 

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