नाटो देशों के लगभग 50 हजार सैनिक नॉर्वे में एक सैन्य अभ्यास में हिस्सा ले रहे हैं. इसे शीत युद्ध के बाद नाटो का सबसे बड़ा युद्धाभ्यास कहा जा रहा है. अमेरिका के बाद जर्मनी इस अभ्यास में दूसरा सबसे बड़ा हिस्सेदार है.
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शीतयुद्ध के दौरान बनाए गए पश्चिमी देशों के सैन्य गठबंधन नाटो यानी उत्तर अटलांटिक संधि संगठन में शामिल सेनाओं ने नॉर्वे में एक बड़ा सैन्य अभ्यास शुरू किया है. इसे ट्रिडेंट जंक्चर का नाम दिया गया है. इस सैन्य अभ्यास को शीत युद्ध के बाद नाटो का सबसे बड़ा अभ्यास माना जा रहा है. इसमें 50 हजार सैनिक, 10 हजार सैन्य वाहन, 250 विमान, 65 पोत और 29 सदस्य देशों के अलावा स्वीडन और फिनलैंड भी हिस्सा ले रहे हैं. नॉर्वे में दो हफ्ते तक चलने वाले इस युद्धाभ्यास का मकसद नाटो की वेरी हाई रेडिनेस ज्वाइंट टास्क फोर्स (वीजेटीएफ) और अन्य सैन्य बलों की शक्तियों को जांचने के साथ-साथ प्रशिक्षण देना है.
रूस ने 2014 में जब यूक्रेन के क्रीमिया प्रायदीप पर कब्जा कर लिया और वहां पनप रहे अलगाववादियों को समर्थन दिया तो इसके जबाव में नाटो ने वीजेटीएफ का गठन किया था.
नॉर्वे की सीमा से सटे रूस को इस सैन्य अभ्यास की निगरानी के लिए आमंत्रित किया गया है. लेकिन रूस ने इस अभ्यास की निंदा की है. रूस के रक्षा मंत्री सर्गेई शोइगु ने कहा, "शीत युद्ध के बाद से अब रूस की सीमा के आसपास नाटो की सैन्य गतिविधियां अपने उच्चतम स्तर तक पहुंच गई हैं. टिड्रेंट जंक्चर में सैन्य कार्रवाई का अभ्यास हो रहा है." वैसे रूस भी नियमित रूप से सैन्य अभ्सास करता रहता है.
नाटो के इस सैन्य अभ्यास में शामिल सेनाएं एक "काल्पनिक आक्रमणकारी" से नॉर्वे की संप्रभुता की रक्षा करने की कोशिश करेंगी. इसमें सैन्य बलों की तत्परता को आंका जाएगा. ये अभ्यास मध्य और पूर्वी नॉर्वे समेत उत्तरी अटलांटिक और बाल्टिक सागर के क्षेत्र में सात नवंबर तक चलेगा.
जर्मनी की सेना इस सैन्य अभ्यास में अपने आठ हजार सैनिकों, चार हजार सैन्य वाहनों, लड़ाकू विमानों और तीन पोतों के साथ हिस्सा ले रही है. अमेरिका के बाद जर्मनी की भागीदारी इस अभ्यास में सबसे अधिक है. 2019 में जर्मनी एक साल के लिए नाटो के वीजेटीएफ दल का नेतृत्व संभालेगा.
इंसान ने लड़ना कब सीखा
इंसान ने जंग लड़ना कब शुरू किया? क्या लड़ाई इंसान के स्वभाव का हिस्सा थी इसलिए इसे कभी ना कभी शुरू होना ही था? सदियों पुराने इस सवाल पर वियना की एक प्रदर्शनी एक अलग तरह से रोशनी डाल रही है.
तस्वीर: NHM/K. Kracher
तलवार की ताकत और बेवकूफी
इस तस्वीर में चकमक पत्थर से लेकर तलवार के युद्ध के हथियार बनने, मिथकीय तलवार एक्सकैलिबर और उसके आगे के मॉडल दिख रहे हैं. हथियारों के विकास की कहानी ढूंढ रहे नेचर हिस्ट्री म्यूजियम वियना में प्रागैतिहासिक विभाग के निदेशक एंटन कर्न कहते हैं, "लोगों की बेवकूफी असीमित है. पाषाण युग से ही बेहतर हथियारों को लेकर उनकी इच्छा से यह जाहिर होता है."
तस्वीर: NHM/K. Kracher
लाठी सबसे पुरानी
नवपाषाण युग में रोजमर्रा के काम में इस्तेमाल होने वाले औजार यानी पत्थरों की कुल्हाड़ी तक को भी संघर्ष की स्थिति में जंग के हथियार में तब्दील कर लिया जाता था. माना जाता है कि पत्थर की लाठी इंसान का सबसे पुराना हथियार है जो रक्षा या फिर हमले के लिए इस्तेमाल होती थी.
तस्वीर: NHM/A. Schumacher
सिर में छेद
20-30 साल के किसी इंसान की इस खोपड़ी में सामने के हिस्से में छेद है जो शायद किसी लकड़ी की लाठी से हुआ होगा. यह उत्तरी जर्मनी की तोलेन्सी नदी के पास के एक युद्धक्षेत्र में मिली थी. यह करीब 3200 साल पुरानी है. हाल के शोध बताते हैं कि कांस्ययुग की इस लड़ाई में हजारों योद्धाओँ ने बरछे, तलवार और लाठी का इस्तेमाल किया जो चकमक पत्थर, कांसा या फिर धातु के बने थे.
तस्वीर: NHM/A. Schumacher
30 साल चली जंग
जर्मन प्रांत सैक्सनी में 1632 की ल्यूत्सेन की लड़ाई के बारे में कलाकार मेरियन का बनाया यह अभिलेख दिखाता है कि 400 साल पहले किस तरह से आग्नेयास्त्रों का इस्तेमाल होता था. इस तरह के हथियारों की क्रूर लड़ाई में स्वीडन के राजा गुस्ताव्स अडोल्फस की मौत हो गई थी. हालांकि उनके प्रोटेस्टेंट पक्ष के लोगों ने यह लड़ाई जीत ली, लेकिन जंग खत्म होते होते 80 लाख लोगों की मौत हो चुकी थी.
तस्वीर: NHM/K. Kracher
शुरुआती आधुनिक आग्नेयास्त्र
म्यूजियम के सदस्यों ने कांच के 2700 कारतूस भी रखे हैं जिन्हें शुरूआती पिस्तौलों, कारबाइन और बंदूकों से दागा गया था. इनकी खोज ल्यूत्सेन के उस मैदान से हुई थी जो 30 साल तक चली जंग में सबसे बड़ा था. इस अकेली जंग में ही 22,000 लोग मारे गए. बहुत से मारे गए लोगों के सिर में गोलियों के घाव और छेद हैं. हमले के दौरान सिर प्रमुख लक्ष्य होता था. शरीर के बाकी हिस्से में कोई चोट नहीं है.
तस्वीर: NHM/K. Kracher
गुमनाम सैनिक
ल्यूत्सेन की लड़ाई वाली जगह से मिले मानव अवशेष उन गुमनाम सैनिकों की जिंदगी की याद दिलाते हैं जिन्हें सामूहिक कब्रों में अनौपचारिक ढंग से दफन कर दिया गया. तस्वीर में दिख रहे 47 सैनिकों के बारे में नई फोरेंसिक तकनीकों की मदद से 2011 में जानकारी जुटाई गई. इसमें पीड़ितों की कहानियां और उनकी मौत की वजह का पता लगाने की कोशिश की गई. गोलियों से मरे ज्यादातर लोग 15 से 50 साल के थे.