शुगर की बीमारी रोकेगा कृत्रिम पैंक्रियास
१ दिसम्बर २०११अगर इस प्रयोग को अमेरिकी फूड एंड ड्रग्स एसोसियेशन एफडीए अनुमति मिल जाए, तो कृत्रिम पैंक्रियास चिकित्सा विज्ञान और मधुमेह यानी डायबीटीज से पीड़ित व्यक्तियों के लिए बहुत बड़ा वरदान साबित होगा. यह यंत्र बहुत ही पेचीदा है. आर्टिफिशियल पैंक्रियास में पेजर के आकार का एक ग्लूकोज मॉनिटर है जो खून में चीनी की मात्रा को नियंत्रित करता है. इसमें एक पंप लगा है और शरीर में चीनी की मात्रा अधिक होने पर यह इन्सुलिन छोड़ता है जिससे ब्लड शुगर को काबू किया जाता है.
संयुक्त राष्ट्र स्वास्थ्य संगठन डब्ल्यूएचओ के मुताबिक दुनिया भर में तीन करोड़ 64 लाख लोग डायाबीटीज यानी शुगर के मरीज हैं. हालांकि इस नई खोज का इस्तेमाल केवल टाइप वन डायाबीटीस के मरीज कर सकते हैं. इस तरह की बीमारी बचपन में भी हो सकती है और मरीजों के खून में चीनी की मात्रा को इन्सुलिन से कम किया जाता है.
अमेरिका में 30 लाख लोग इसके शिकार हैं. लेकिन एफडीए के कड़े मानकों और अब तक की उसकी नियंत्रण प्रणाली को देखते हुए इस नई खोज को बाजार में आने में काफी समय लग सकता है. अमेरिका के लोग इस हफ्ते एफडीए के एक बड़े फैसले का इंतजार कर रहे हैं, जिसके तहत इस तरह के यंत्रों के लिए नए मानकों के बारे में बताया जाएगा.
लंबा होता इंतजार
इस बीच अमेरिका के आम लोग और नेता, सब एफडीए से जल्द से जल्द इस यंत्र को मान्यता देने की मांग कर रहे हैं. बच्चों में बीमारी रोकने के लिए काम कर रहे शोध संगठन जेडीआरएफ ने मीडिया को एक संदेश में कहा है कि आर्टिफीशियल पैंक्रियास यानी एपी को जल्द से जल्द मान्यता देनी चाहिए क्योंकि इससे लाखों लोगों को बचाया जा सकेगा. सीनेटर सूजन कॉलिन्स के हवाले से जेडीआरएफ ने लिखा है, "एफडीए को चाहिए कि वह इस मौके का फायदा उठाए और अपने नए मानकों को सामने रखे. पिछले हफ्ते इटली और फ्रांस में एपी का मरीजों पर प्रयोग किया गया है."
कृत्रिम पैंक्रियास की वकालत कर रहे वैज्ञानिकों और मरीजों को डर है कि एफडीए अपने मानक बहुत ही ऊंचे स्तर पर रखेगा जिससे एपी को स्वीकृति नहीं मिलेगी. जेडीआरएफ के प्रमुख जेफरी ब्रूवर के बेटे भी इस बीमारी का शिकार हैं. उनका कहना है कि मेडट्रॉनिक कंपनी ने एक आर्टिफिशियल पैंक्रियास का आविष्कार किया है जिसका नाम पैराडाइम वियो इन्सुलिन पंप है. यह यंत्र 50 देशों में बेचा जाता है लेकिन अमेरिका में इसे मान्यता नहीं है. ब्रूवर का कहना है कि एपी को अगर स्वीकृति नहीं मिलती है तो इसे मरीजों तक पहुंचाने में कम से कम दो ढाई साल लगेंगे. उनके बेटे को अगर इसका इस्तेमाल करने दिया जाता तो उसे दो दिन अस्पताल में नहीं गुजारने पड़ते.
एफडीए की चिंताएं
उधर एफडीए के चार्ल्स 'चिप' जिमलिकी का कहना है कि एफडीए का रवैया सही है क्योंकि इस फैसले का सैकड़ों लोगों की जिंदगी पर असर पड़ सकता है. एफडीए ने पिछले साल जॉनसन एंड जॉनसन कंपनी द्वारा विकसित कृत्रिम कूल्हों को स्वीकृति दी थी लेकिन बाजार में इनके आने के बाद इनमें कोई खराबी आ गई जिसकी वजह से एफडीए और कंपनी दोनों को नुकसान हुआ. जिमलिकी कहते हैं, "एफडीए भी चाहता है कि आर्टिफिशियल पैंक्रियास जल्द से जल्द बाजार में आए. हमें अमेरिकी कानूनों के तहत काम करना है ताकि किसी को नुकसान न हो."
जेडीआरएफ के साथ साथ निजी कंपनियों और शेयर बाजार के व्यापारियों को भी एफडीए के रवैये से परेशानी हो रही है. पिछले साल व्यापारियों ने नए मैडिकल यंत्रों के लिए दो अरब 38 करोड़ डॉलर का निवेश किया, लेकिन 2008 के मुकाबले निवेश करीब 30 प्रतिशत कम था. बाजार विश्लेषकों का कहना है कि एफडीए की वजह से निवेशक पीछे हट रहे हैं.
रिपोर्टः रॉयटर्स/एमजी
संपादनः ए जमाल