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शुरू हो ही गए कॉमनवेल्थ खेल

१ अक्टूबर २०१०

कॉमनवेल्थ खेल शुरू होने की खबरें जर्मन अखबारों में भी छाई रहीं. अधिकतर अखबारों ने भारी आलोचना और तैयारी में देरी की पृष्ठभूमि के साथ उद्घाटन का समाचार लिखा है.

तस्वीर: AP

स्यूद डॉइचे त्साइटुंग लिखता है, भारी सुरक्षा चिंता, तैयारी में कड़ी आलोचना के बीच नई दिल्ली में 19 वें कॉमनवेल्थ खेलों की शुरुआत हो गई. आतंकी हमलों की चिंता और खिलाड़ियों की सुरक्षा के लिए अधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक करीब एक लाख सुरक्षाकर्मी तैनात किए गए हैं.

जर्मनी के वित्तीय महानगरी फ्रैंकफुर्ट से प्रकाशित फ्रांकफुर्टर अलगेमाइने त्साइटुंग लिखता है कि भारत ने खेलों की जिम्मेदारी लेने में अपनी क्षमता गलत आंकी है. खेलों की तैयारी से जुड़ी समस्याएं दिखाती हैं कि भारत एक विभाजित देश है.

एक ओर है अवसर, जो ग्रुप अरबपति से लेकर बढ़ते मध्यवर्ग तक जाता है. वह 8 फीसदी के विकास दर से लाभ उठा रहा है. अपनी नई गाड़ियों में दीवारों से घिरे अपने फ्लैटों के पीछे वह गरीबी से अपनी नाकेबंदी कर रहा है. जो लोग दूसरी ओर हैं, उनके पास शौचालय भी नहीं है, साफ पानी के नल की तो बात ही छोड़ दें. ये लोग गांवों में रहते हैं, झुग्गियों में रात बिताते हैं, रेल लाइनों के पास सोते हैं. जहां अमीर लोग मोटापे की समस्या से जूझ रहे हैं, गरीबों के पास खाने को भी नहीं है.

खेल शुरू होने से पहले ही टूट गया पुलतस्वीर: picture alliance/dpa

अखबार लिखता है कि विभाजित भारत की इस तस्वीर के बावजूद भारत की आलोचना करना समयानुकूल नहीं है.अंतरराष्ट्रीय कारोबारी दुनिया उत्साही मोड में है, इसके बावजूद कि उद्यमों को दिन में सिर्फ छह घंटे बिजली मिलती है. यह सच है कि भारत में आराम से धन कमाया जा सकता है. अर्थव्यवस्था देश को नष्ट नहीं कर रही है, हालांकि कुछ खनन कंपनी द्वारा जमीन के अधिग्रहण के भोंडे उदाहरण भी हैं. लेकिन कुल मिलाकर उद्यम स्थिरता के प्रतीक हैं. वे रोजगार और आय पैदा कर रहे हैं, संरचनाओं को तोड़ रहे हैं. भारत का सलीब राजनीतिक नेतृत्व है.

भारत के बाद अब दक्षिण एशिया के दूसरे देश. पाकिस्तान में ग्वादर, म्यांमार में क्याउकप्यू, बांग्लादेश में चटगांव और कॉक्स बाजार तथा श्रीलंका में हंबनटोटा ऐसे शहर हैं जिंहोंने अब तक कोई हंगामा नहीं मचाया है. फ्रांकफुर्टर अलगेमाइने त्साइटुंग का कहना है कि स्थिति बदल सकती है, क्योंकि इन पांचों शहरों में चीन बड़े बंदरगाह बना रहा है. इसके साथ वह दक्षिण एशिया में अपनी स्थिति मजबूत कर रहा है.

चीन के प्रभाव वाले नए बंदरगाह भारत के चारों ओर मोती की माला की तरह कतार में हैं. हंबनटोटा चीन तक तेल लाने और यूरोप तक टेलीविजन, कंप्यूटर और खिलौने ले जाने के महत्वपूर्ण नौवहन मार्ग पर है. बर्मा का नया बंदरगाह देश को खोले जाने के बाद उसे आधारभूत जरूरतों की सुरक्षा में मदद करेगा. चीनियों ने यहां पनडुब्बी डॉकयार्ड सहित आधुनिक नौसैनिक अड्डा बना दिया है.चीनी शहर यूनान से एक रेलगाड़ी जल्द ही भारत के पड़ोसी बांग्लादेश के बंदरगाह चटगांव तक जाएगी. पश्चिम में ग्वादर चीनी नौसेना द्वारा भारत के घेरे को पूरा करता है.

खेल गांव के बाहर जमा बाढ़ का पानीतस्वीर: AP

फ्रांकफुर्टर अलगेमाइने त्साइटुंग का कहना है कि जमीन पर भी चीन अपना प्रभाव बढ़ा रहा है. म्यांमार के जनरलों का बीजिंग में स्वागत होता है, मजबूत माओवादी आंदोलन के कारण नेपाल चीन के नजदीक हो गया है. लेकिन सबसे निकट संबंध भारत के धुर दुश्मन पाकिस्तान के साथ है. अखबार लिखता है

दरअसल चीन भारत के आसपास पैठ बनाकर एक तीर से दो शिकार कर रहा है. वह अपनी सत्ता सुरक्षित कर रहा है, क्योंकि जरूरत पड़ने पर सड़क और बंदरगाह सेना की मदद करेंगे. दूसरी ओर वह विकसित हो रही अर्थव्यवस्थाओं के साथ कारोबारी रिश्ते मजबूत कर रहा है. दरअसल वह खुली जगह को भर रहा है जो निकट पड़ोसियों के प्रति भारत की विफल विदेश नीति ने छोड़ी है.

भारत, बांग्लादेश, नेपाल और भूटान रेल, सड़क और नदी मार्ग पर ट्रांजिट खोलने के काम में जुटे हैं. बर्लिन से प्रकाशित वामपंथी दैनिक नौएस डॉएचलांड का कहना है कि आर्थिक समुदाय सार्क के ये चारों सदस्य देश इससे लाभ उठा सकते हैं.

भारत के लिए अपने पूर्वोत्तर राज्यों में जाने का रास्ता छोटा हो जाएगा और उसे अपने संसाधनों से भरे इलाके में बंगाल का चक्कर काटकर नहीं जाना होगा. इसके लिए बांग्लादेश से होकर सड़क और रेल मार्ग को सक्रिय बनाना होगा और चटगांव के बंदरगाह को भारतीय जहाजों को लिए खोलना होगा. अब तक इन योजनाओं पर सुरक्षा चिंताओं और पारस्परिक अविश्वास की बाधा थी. लेकिन भारतीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी के हाल के ढाका दौरे के बाद उपमहाद्वीप के पूर्वोत्तर में विकास को बढ़ावा मिलने की संभावना बढ़ गई है.

संकलन: आना लेमन/मझ

संपादन: ए कुमार

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