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शूमाखर के 20 सालः महानायक का बनना, बिगड़ना

२५ अगस्त २०११

चमकती भागती कारों की पहचान लाल रंग से होती है और लाल पोशाक पहने, लाल कार चलाने वाले मिषाएल शूमाखर से होती है. फरारी और शूमाखर ने फर्राटा रेस को इस कदर आम बना दिया, जैसे सचिन तेंदुलकर ने क्रिकेट को.

मिषाएल शूमाखर

20 साल पहले जर्मनी का नौजवान जब रेस ट्रैक पर उतरा था तो कोई मासूम या भोला खिलाड़ी किस्मत आजमाने नहीं उतरा था, बल्कि मजबूत इरादों वाला एक हिम्मती नौजवान अपने घरेलू ट्रैक पर पूरी तैयारी के बाद दुनिया को रंग दिखाने आया था.

शुरुआत में भले ही जॉर्डन जैसी मामूली टीम मिली हो लेकिन जल्द ही फॉर्मूला वन की सबसे बड़ी टीम फरारी ने इस चमत्कारी युवक को पहचान लिया. 20 साल हो गए हैं. लेकिन शूमाखर का कोई जोड़ा नहीं आया है. और अगर आयर्टन सेना को छोड़ दिया जाए तो फॉर्मूला वन ने पिछले 50 साल में कोई इतना बड़ा ड्राइवर नहीं देखा. ब्राजील के जांबाज सेना की 1994 की फॉर्मूला वन रेस के दौरान इटली में हादसे में मौत हो गई थी.

लाल फरारीतस्वीर: AP

लाल चमत्कार

लेकिन यह शूमाखर का करिश्मा ही था जिसने सेना की कमी पाट दी. फिर तो वह कभी लगातार सात बार चैंपियन बन जाने पर, कभी हवाई जहाज से अपनी कार की रेस लगा देने पर और कभी भारत के महान बल्लेबाज को फरारी भेंट कर देने के साथ बड़े से बड़े बनते चले गए.

शूमाखर की खुशकिस्मती यह रही कि जिस वक्त उन्होंने ट्रैक पर कदम रखे, उस वक्त तीसरी दुनिया का बाजार खुल रहा था. टेलीविजन मीडिया और स्पोर्ट्स चैनल, परवान चढ़ रहे थे. इसमें फुटबॉल और क्रिकेट के बाद फर्राटा रेस की रफ्तार सबको खींच रही थी. बार बार चैंपियन बनने वाले शूमाखर आसानी से लोगों की नजरों में आ गए. और पूरी दुनिया लाल कार की दीवानी हो गई. मिषाएल शूमाखर को कोई अंग्रेजी मीडिया माइकल शूमाखर भी बोलता रहा. और जर्मन अनाउंसर बार बार इस उच्चारण को दुरुस्त करते रहे. लेकिन वह लाल कार नहीं रुकी.

मोटर साइकल दुर्घटनातस्वीर: AP

शिखर पर विदाई

तमाम रिकॉर्डों के साथ चोटी पर पहुंचने के बाद शूमाखर ने ट्रैक को अलविदा कह दिया.  91 रेस और सबसे ज्यादा सात बार की चैंपियनशिप जीतने के बाद शूमाखर ने 2006 में अपना हेल्मेट टांग दिया. लेकिन खुद को रफ्तार के सम्मोहन से दूर नहीं रख पाए. 2010 में जब मर्सीडीज एक ड्राइवर की तलाश कर रही थी, तो शूमी का नाम सामने आया. 41 साल की उम्र में शूमी दोबारा रेस में लौट आए, जिन्होंने अपनी पहली रेस 22 की उम्र में शुरू की थी. उनके इस फैसले ने भले ही उनके कुछ चाहने वालों को खुश किया हो, लेकिन खेल की बारीकियां समझने वाले इसे एक खराब फैसला बताते हैं. एक महान खिलाड़ी की यह शायद सबसे बड़ी भूल रही.

चैंपियन खिलाड़ी की वापसी कभी भी सफल नहीं रही है. और शूमी की दूसरी पारी भी दिल तोड़ने वाली साबित हुई. उन्हें पहले नंबर पर देखने की आदी जनता अब उन्हें दसवें नंबर तक पर नहीं देख पाती. फिर भी शूमाखर रेस लगाए जा रहे हैं. कभी कभार आठवां नौवां स्थान उन्हें जरूर मिल जाता, लेकिन दो साल में शूमाखर ने पोडियम को एक बार भी नहीं छुआ है.

शूमाखर, जिन्हें लोग प्यार से शूमी कहते हैं, चार साल की उम्र से गाड़ियों से खेलने लगे थे. उनका पहला एक्सीडेंट भी उसी साल हुआ जब उन्होंने बाकायदा इंजन से चलने वाली एक कार को लैंप  पोस्ट से टकरा दिया था. औसत आय वाले शूमाखर के पिता ने छह साल की उम्र तक उनके लिए इंजन से चलने वाली गाड़ी तैयार कर दी, जिस पर सवार हो उन्होंने अपना पहला खिताब भी जीत लिया. थोड़े बड़े होने पर कैर्पन के पास उनके लिए एक कार्टिंग ट्रैक भी तैयार कर दिया गया. शूमी अपने भाई राल्फ के साथ दिन रात गाड़ी दौड़ाते. बाद में राल्फ भी फॉर्मूला वन ड्राइवर बने. उन्होंने छह रेसें भी जीतीं.

डैमन हिल के साथ टक्करतस्वीर: AP

कलात्मक ड्राइविंग

शूमाखर को उनकी तेजी के लिए ही नहीं, बल्कि उनकी कलात्मक ड्राइविंग के लिए ज्यादा जाना जाता है. चाहे मेलबर्न का सपाट ट्रैक हो या मोनक्को का बेहद टेढ़ा मेढ़ा ट्रैक, शूमाखर का सिक्का हर जगह चलता था. वह हर रेस को जीतने का माद्दा रखते थे. यहां तक कि बारिश में भीगे ट्रैक पर भी सबसे तेज उन्हीं की गाड़ी भागती थी. सेना की मौत के बाद जब पूरी दुनिया फॉर्मूला वन की रफ्तार से सहम गई थी, शूमी ने अपने बेजोड़ नियंत्रण से बताया कि ट्रैक पर रफ्तार के साथ गाड़ी पर नियंत्रण कैसे रखा जा सकता है.

फॉर्मूला वन के इतिहास में शायद शूमी से ज्यादा सुरक्षित गाड़ी चलाने वाला कोई नहीं है. 1995 से 2005 तक के 10 साल रेसिंग की दुनिया में शूमाखर ने अपना कद इतना बड़ा कर लिया कि रेस के बाद दूसरे नंबर पर आने वाले ड्राइवर का जिक्र ही नहीं होता था. ठीक उन्हीं दिनों क्रिकेट की दुनिया में सचिन तेंदुलकर का जादू चल रहा था. और यह भी अजीब बात है कि क्रिकेट न खेलने वाले देश जर्मनी के होने के बावजूद मिषाएल शूमाखर सचिन के पक्के दोस्त हैं. सचिन भी फॉर्मूला वन के दीवाने हैं और जाहिर है इस वजह से वह शूमाखर के भी फैन हैं. दोनों कई बार मिल चुके हैं और सचिन भी एक फरारी कार रख चुके हैं.

रिकॉर्डों से इतर शूमाखर धुन के पक्के और थोड़े जिद्दी किस्म के शख्स हैं. उन्होंने एक बार रेस ट्रैक पर मोटर साइकिल दौड़ाने का भी फैसला कर लिया. उस वजह से वह चोट भी खा बैठे थे. जिस वक्त वह शीर्ष पर थे. उस वक्त उन्होंने एक बार विमान से रेस भी लगा दी और बूंदाबांदी के बीच भी काफी देर तक विमान से तेज गाड़ी चलाते रहे.

चमत्कारी करियरतस्वीर: AP

दिलचस्प जिंदगी

रेस ट्रैक के बाहर भी शूमाखर की जिंदगी कम दिलचस्प नहीं रही है. उन्होंने कई ऐसे काम किए हैं जिनकी वजह से उनकी चर्चा हुई. मसलन उन्होंने कार ड्राइवरों के लिए एक बेहद हल्का हेल्मेट बना दिया. इस हेल्मेट ने सभी टेस्ट पास कर लिए.

शूमाखर के नाम कई विवाद भी हैं. मसलन 1994 की ऑस्ट्रियाई ग्रां प्री में उनकी कार डैमन हिल से टकरा गई थी. दोनों ड्राइवर रेस से बाहर हो गए. 1997 में भी ऐसी ही घटना हुई जब यूरोपीय ग्रां प्री में वह विलियम्स जैक्स से टकरा गए.

शूमाखर ने स्विट्जरलैंड में 650 वर्ग मीटर के अहाते में एक विशाल बंगला बनाया है. जर्मनी के शूमाखर का स्विट्जरलैंड चले जाना कई लोगों को नहीं भाया. वे कहते हैं कि स्विट्जरलैंड में टैक्स कम है इसलिए शूमाखर वहां चले गए.

42 साल की जिंदगी और उसमें एक ब्रेक वाला 20 साल का फॉर्मूला वन करियर सिर्फ एक खिलाड़ी का उभरना और खत्म हो जाना नहीं है. यह एक महानायक के बनने की कहानी है. शूमाखर उन सभी रास्तों से गुजरे हैं, जो एक महानायक बनने के लिए जरूरी होते हैं. उनकी कहानी में ट्रैजिडी है, कॉमेडी है, एक्शन है, रोमांस है, जिद है, जुनून है और हर बार बार जीत है.

रिपोर्टः अनवर जे अशरफ

संपादनः महेश झा

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