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शेख हसीना की पहली चुनौती

२७ फ़रवरी २००९

बांग्लादेश राइफ़ल्स के सिपाहियों का दो दिनों का विद्रोह, जिसमें दर्ज़नों लोगों की जान गई है, जर्मन अखबारों की सुर्खियों में भी छाया रहा. मीडिया ने इसे शेख हसीना की पहली चुनौती बताया.

हसीना की चुनौतीतस्वीर: Harun-ur-Rashid Swapan

म्युनिख से प्रकाशित दैनिक स्युडडॉएचे त्साइटुंग में इस सिलसिले में कहा गया -

यह विद्रोह शेख हसीना के लिए पहली कसौटी है, जिनकी पार्टी अवामी लीग को दिसंबर के अंत में हुए संसदीय चुनाव में स्पष्ट जीत मिली थी. प्रधान मंत्री ने संकेत दिया है कि वे सीमारक्षियों की मांगों पर विचार करेंगी. बांगलादेश राइफ़ल्स 65 हज़ार सैनिकों के साथ देश का दूसरा सबसे बड़ा सशस्त्र अंग है, और कम वेतन और काम की कठिन परिस्थितियों के कारण लंबे समय से उसके सदस्यों के बीच नाराज़गी थी. बैरकों में सुगबुगाहट के चलते हमेशा की तरह इस बार भी सैनिक सत्तापहरण की अफ़वाहों का बाज़ार गर्म है.

नोए त्स्युरिषर त्साइटुंग में भी ऐसी आशंका व्यक्त की गई है. कहा गया है कि 16 करोड़ की आबादी का यह देश सन 2008 के अंत में दो साल के सैनिक शासन के बाद लोकतंत्र के रास्ते पर वापस लौटा है. आगे कहा गया है -

बांगलादेश में सैनिक सत्तापहरणों का एक लंबा इतिहास है. लेकिन इस बार के इस विद्रोह में ऐसे संकेत नहीं मिले हैं कि उसकी कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि है. लेकिन इन घटनाओं से दिखता है कि बांगलादेश की स्थिति कितनी अस्थिर है.

और अब पाकिस्तान. वहां अदालत के एक फ़ैसले में नवाज़ शरीफ़ के चुनाव लड़ने पर पाबंदी बरकरार रखी गई है, उनके भाई, पंजाब के मुख्यमंत्री शाहबाज़ शरीफ़ के चुनाव को रद्द कर दिया गया है. दैनिक फ़्रांकफ़ुर्टर आलगेमाइने त्साइटुंग का कहना है -

ज़रदारी से बढ़ता विवादतस्वीर: AP

पाकिस्तान की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी, मुस्लिम लीग का नेतृत्व ऐसे दो लोगों के हाथों में हैं, जो सरकार की ज़िम्मेदारी नहीं संभाल सकते. इस्लामाबाद में माना जा रहा है कि अब पीपुल्स पार्टी और मुस्लिम लीग के बीच तनाव बढ़ता जाएगा... मार्च में मुस्लिम लीग वकीलों के संगठन के साथ मिलकर प्रदर्शनों का आयोजन करने वाला है.

बेशक, राजनीतिक ख़बरों के अलावा जर्मन अख़बारों में स्लमडॉग मिलियोनेयर को आठ ऑस्कर मिलने की विस्तार से चर्चा की गई. वामपंथी दैनिक नोएस डॉएचलांड का कहना था कि इस फ़िल्म में भारत के यथार्थ की सिर्फ़ एक छोटी सी तस्वीर देखने को मिलती है. समाचार पत्र में कहा गया है -

प्रोफ़ेसर सेनगुप्ता का कहना है कि 80 करोड़ से अधिक भारतवासियों के लिए आर्थिक सुधार नाकाफ़ी हैं. उनके लिए एक नई राजनीति की ज़रूरत है, जो शिक्षा से शुरू हो, और जिसमें रोज़गार कार्यक्रम, कर्ज़, सामाजिक व मेडिकल बीमा, पेंशन आदि शामिल हो.

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