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श्टाइनब्रुक का सपना टूटा

२२ सितम्बर २०१३

चांसलर अंगेला मैर्केल को चुनौती दे रहे एसपीडी के उम्मीदवार पेयर श्टाइनब्रुक सर्वे के नतीजों के खिलाफ चुनाव प्रचार कर रहे थे. उनकी पार्टी पिछले चुनावों से ज्यादा वोट पाने में कामयाब रही.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

चुनावी सर्वेक्षणों का कहना था कि श्टाइनब्रुक का जीतना मुश्किल है और उन्होंने साफ कह दिया था कि वह सत्ताधारी सीडीयू के साथ गठबंधन नहीं बनाएंगे. श्टाइनब्रुक ने हमेशा इस बात पर जोर दिया कि लोकतांत्रिक पार्टियों को हमेशा आपस में गठबंधन के लिए तैयार रहना चाहिए. लेकिन उनके पास चुनावी संघर्ष में केवल एक विकल्प हैः ग्रीन पार्टी के साथ गठबंधन बनाना जिसमें वह चांसलर के पद पर रहें. लेकिन उन्होंने उन सारे सर्वेक्षणों को अनदेखा कर दिया जिसमें चुनाव के नतीजे उनकी पार्टी के पक्ष में नहीं जा रहे थे. श्टाइनब्रुक केवल आगे बढ़ना चाहते हैं, गलतियों और खामियों के आरोपों के बावजूद.

श्टाइनब्रुक ने अपनी जिंदगी में पहले भी दिखाया है कि कभी भी हार नहीं माननी चाहिए. स्कूल में गणित में उनके कम नंबर आते थे और एक कक्षा में वह दो साल भी रहे. लेकिन इसके बावजूद वह अपनी जिंदगी में काफी दूर तक पहुंचे. चांसलर के दफ्तर में सलाहकार से लेकर नॉर्थराइन वेस्टफेलिया के मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री के रूप में श्टाइनब्रुक ने अहम पद संभाले हैं. आखिर में 2005 से लेकर 2009 तक उन्होंने अपनी पार्टी एसपीडी और सीडीयू के महागठबंधन में वित्त मंत्री का पद संभाला.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

मैर्केल से रिश्ता

वित्त मंत्री के पद पर श्टाइनब्रुक ने चांसलर मैर्केल के साथ वित्तीय संकट के खिलाफ संघर्ष में मदद की. दोनों ने एक दूसरे की भूमिका को समझा और पार्टियों के बीच मतभेद के बावजूद दोनों ने मिलकर काम किया. 2009 में वित्तीय संकट अपने चरम पर था और जर्मनी में बैंकों के ग्राहक अपने पैसे निकालने को तैयार हो रहे थे. उस वक्त एक सार्वजनिक भाषण में श्टाइनब्रुक और मैर्केल ने मिल कर लोगों को आश्वस्त किया कि जर्मनी में बैंकों में पैसे सुरक्षित हैं. इससे लोगों का डर खत्म हुआ. क्या दोनों उस वक्त के अनुभवों को दोबारा भविष्य में आगे बढ़ा सकेंगे. श्टाइनब्रुक ने चुनाव प्रचार में साफ साफ कह दिया है, "मैं ऐसा कुछ नहीं चाहता. मैं किसी दूसरे व्यक्ति के लिए कोल्हू का बैल नहीं हूं."

तस्वीर: picture-alliance/dpa

राजनीतिक परेशानियां

श्टाइनब्रुक के बारे में कहा जाता है कि उनकी राजनीति कठोर है और वह कूटनीति का कम इस्तेमाल करते हैं. साथ ही वह हमेशा लोगों को उपदेश देते रहते हैं. अगर उनके मन में कोई बात हो तो वह यह सीधा कह देते हैं. उनके करीबी लोगों का कहना है कि श्टाइनब्रुक चंचल हैं. जब यह पता चला कि टैक्स चोर स्विट्जरलैंड में पैसे जमा करा रहे हैं और स्विट्जरलैंड उनकी जानकारी नहीं दे रहा तो श्टाइनब्रुक ने कड़े कदम उठाने की धमकी दी. इससे जर्मनी और स्विट्जरलैंड के बीच तनाव बढ़ गया.

श्टाइनब्रुक को एक रूढ़िवादी सोशल डेमोक्रैट कहा जा सकता है. नॉर्थराइन वेस्टफेलिया के वित्त मंत्री और मुख्य मंत्री के पद संभालते वक्त उन्होंने एजेंडा 2010 का समर्थन किया था जिसके तहत पूर्व चांसलर गेरहार्ड श्रोएडर श्रम बाजार में बदलाव लाकर बेरोजगारी कम करना चाहते थे. आज भी सीडीयू को यह नीति अच्छी लगती है. लेकिन इसके प्रभाव इस तरह के हैं कि कंपनियां नए कानूनों का खूब फायदा उठाती हैं. जर्मनी में 20 प्रतिशत कर्मचारी इतना कम कमाते हैं कि इससे गुजारा करना मुश्किल है. श्टाइनब्रुक ने कहा है कि इस नीति में बड़ी गलती हुई है और समाज टूटने को हो रहा है. वह राजनीति की मदद से इसे रोकना चाहते हैं. वे एक ऐसी सामाजिक बाजार प्रणाली चाहते हैं जिसमें जनता का हित प्राथमिकता बने. लेकिन आलोचक श्टाइनब्रुक के इस रवैये पर विश्वास नहीं करना चाहते.

समाजवाद से दूर

श्टाइनब्रुक हैम्बर्ग के एक कारोबारी परिवार से हैं और पूंजीवाद के फायदे उन्हें पहले से ही मिल रहे हैं. पढ़ाई के वक्त उन्हें साइकिल पार्किंग पर निगरानी रखने की नौकरी मिली थी, जिसके बाद उनका प्रमोशन कार पार्किंग में हो गया. 20 साल की उम्र से श्टाइनब्रुक एसपीडी में जाना चाहते थे. वे पूर्व जर्मन चांसलर विली ब्रांट से प्रेरित थे. आज भी वह ब्रांट के शब्दों को याद करते हैं, "आपको हर चीज के लिए संघर्ष करना पड़ता है, कुछ भी ऐसे ही नहीं मिल जाता."

जब सोशल डेमोक्रैट 2009 के चुनावों में हारे तो ऐसा लगा जैसे श्टाइनब्रुक ने हार मान ली है. वे एक साधारण सांसद बन गए और राजनीति के प्रमुख पदों से दूर रहने का फैसला किया. फिर उन्होंने सत्ता में अपने वक्त के बारे में एक किताब लिखी, उंटर्म श्ट्रिष, जिसका जर्मन में मतलब है, असल बात. उन्होंने विश्वविद्यालयों में लेक्चर दिये और खूब यात्रा की और पैसे कमाए. 2010 में भी श्टाइनब्रुक को विश्वास नहीं हो रहा था कि वह सत्ता में फिर से अहम पद पर आएंगे. लेकिन फिर 2013 के चुनावों के लिए उन्होंने चांसलर पद का उम्मीदवार बनने का फैसला किया.

रिपोर्टः वोल्फगांग डिक/एमजी

संपादनः महेश झा

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