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श्मशान की राख से भी फूल खिलाएगा अमेरिका

२२ मई २०१९

अमेरिकी राज्य वाशिंगटन दुनिया में वो पहली जगह होगी जहां मृत इंसानों के अवशेष का इस्तेमाल भी बाग लगाने और फूल खिलाने में होगा.

USA Washington menschlicher Kompost
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo

नया कानून अगले साल मई से प्रभावी हो जाएगा. इसके मुताबिक राज्य में मरने वाले लोगों के पास यह विकल्प होगा कि वो अपने शरीर को मिट्टी में तब्दील कराने की मंजूरी दे सकें. इस मिट्टी का इस्तेमाल बागवानी में होगा जिसे रिकंपोजिशन कहते हैं.

इस कानून के लिए समर्थन जुटाने वाली कातरीना स्पाडे कहती हैं, "रिकंपोजिशन में शव को दफनाने या जलाने का एक विकल्प दिया जाता है जो प्राकृतिक और सुरक्षित होने के साथ ही टिकाउ भी है. इसका नतीजा कार्बन उत्सर्जन में कमी और जमीन के बेहतर इस्तेमाल के रूप में दिखेगा. प्रकृति में सीधे लौटने का विचार और जीवन मृत्यु के चक्र में वापस जाना वास्तव में बहुत खूबसूरत है."

तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/E. Thompson

नए विचार का जन्म

स्पाडे का कहना है कि दस साल पहले जब उनकी उम्र 30 साल थी तब उन्होंने खुद की मौत के बारे में ज्यादा सोचना शुरू किया. उन्होंने पर्यावरण के अधिक उपयुक्त तरीकों के तकनीकी पक्ष के बारे में जानकारी जुटानी शुरू की. अमेरिका में अंतिम संस्कार का उद्योग सालाना 20 अरब डॉलर का है. इसमें पारंपरिक रूप से शवों को दफनाया या फिर जलाया जाता है.

वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के साथ मिल कर उन्होंने एक तरीका विकसित किया. यूनिवर्सिटी दान में मिले शरीरों पर चिकित्सकीय परीक्षण करती थी. नए तरीके में मृत शरीर को एक षट्कोणीय स्टील के बक्से में लकड़ी के टुकड़ों और पुआल के साथ रखा जाता है. उसके बाद बक्से को बंद कर दिया जाता है. यहां पर शव सूक्ष्म जीवों के साथ 30 दिनों में अपघटित होता है. आखिर में एक सूखा अवशेष बचता है जो पोषक तत्वों से भरपूर नर्सरी में मिलने वाले कम्पोस्ट जैसा ही रहता है. इन्हें सब्जी, फल या फूल उगाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. स्पाडे का कहना है कि सब कुछ अपघटित हो जाता है यहां तक कि दांत और हड्डियां भी.

तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/T. S. Warren

रिकंपोज की प्रक्रिया काफी हद तक वैसी ही है जो कई दशकों से पालतू जानवरों के लिए यूनिवर्सिटी में इस्तेमाल हो रही है. यूनिवर्सिटी ने इसे इंसानों के लिए भी सुरक्षित बताया है. वाशिंगटन स्टेट यूनिवर्सिटी में मिट्टी विज्ञान के प्रोफेसर लिन कारपेंटर बॉग्स का कहना है, "हमने इस्तेमाल होने वाले मैटीरियल को पूरी तरह से बदल दिया है जिससे कि यह सामाजिक रूप से स्वीकार्य हो लेकिन बुनियादी सिद्धांत यह है कि हमने जानवरों की कंपोस्टिंग से सीखा है कि जिन इंसानों के शरीर का इस्तेमाल हम रिसर्च के लिए करते थे उसके लिए भी यह बहुत उपयोगी है."

खर्च कम नहीं

आंकड़े बताते हैं कि हर दो में से एक अमेरिकी अपने लिए दाह संस्कार का विकल्प चुनता है. वाशिंगटन में तो करीब 75 फीसदी लोग यही विकल्प चुनते हैं. स्पाडे को उम्मीद है कि नए तरीके से अंतिम संस्कार कराने वाली कंपनी हर शख्स से इसके लिए 5,500 डॉलर की फीस लेगी जो आम तौर पर दाह संस्कार से थोड़ी ज्यादा है लेकिन दफनाए जाने की फीस से काफी कम है.

तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/E. Thompson

फिल्म अभिनेता ल्यूक पेरी की इसी साल मार्च में जब मौत हुई तो उन्हें उनकी इच्छा के मुताबिक बायो डिग्रेडबल सूट में दफनाया गया. इस सूट को बनाने में मशरूम का इस्तेमाल हुआ था. "मशरूम सूट" के नाम से विख्यात यह सूट जैव अपघटन में मदद करता है, शरीर से निकलने वाले जहरीले रसायनों का प्रभाव खत्म करता है और पोषक तत्वों को पौधों में डाल देता है.

हालांकि हर कोई इस तरीके को लेकर उतना उत्साहित नहीं है. खासतौर से कैथोलिक चर्च से जुड़े लोग इससे खुश नहीं है. वाशिंगटन स्टेट कैथोलिक कांफ्रेंस के कार्यकारी निदेशक जोसेफ स्प्रेग्यू का कहना है, "शव को दफनाने की परंपरा में मृतक के प्रति पूरा सम्मान होता है." उनका यह भी कहना है कि शव के अवशेष का इस्तेमाल आम कंपोस्ट के रूप में करना चर्च के सिद्धांत के खिलाफ है.

एनआर/एमजे(एएफपी)

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