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श्रम सुधारों पर आम राय बने

२ सितम्बर २०१५

भारत में सरकार और ट्रेड यूनियनों के बीच बातचीत टूटने के बाद 15 करोड़ लोग हड़ताल कर रहे हैं. सरकार और ट्रेड यूनियनों का रुख एक दूसरे से अलग है लेकिन उन्हें साथ लाने की कोशिश करनी होगी.

नौकरी और श्रमिकों के भविष्य के लिहाज से ट्रेड यूनियनों की मांग उचित है. लेकिन निवेश को आकर्षित करने के लिहाज से नहीं. निवेश नहीं होगा तो नई नौकरियां पैदा नहीं होंगी. और इसमें ट्रेड यूनियनों की भी दिलचस्पी होनी चाहिए कि नए रोजगार बनें ताकि उनके सदस्यों की संख्या बढ़े.

आरएसएस से संबंधित ट्रेड यूनियनों के पीछे हटने के बाद यह हड़ताल एक सरकार विरोधी हड़ताल बन गई है. ट्रेड यूनियनों को अपनी एकता बनाए रखने की जरूरत है.

'उद्यमों में मुनाफे और श्रमिकों के कल्याण को एक दूसरे के खिलाफ नहीं समझा जाना चाहिए'

भारत में जहां 25 प्रतिशत लोग सौ रुपये से भी कम आय पर जिंदगी गुजारने को मजबूर हैं, पर्याप्त आमदनी देने वाली नौकरियों की जरूरत है. दूसरी और जिन लोगों के पास नौकरियां हैं, उसे बचाये रखना भी महत्वपूर्ण है. इसकी रणनीति कर्मचारियों को मैनेजरों के साथ मिलकर बनानी होगी. नए श्रम कानून पर व्यापक चर्चा के बाद आम राय बननी चाहिए.

जर्मनी इस बात का अच्छा उदाहरण है कि ट्रेड यूनियनों के मजबूत होने से किसी मुल्क की आर्थिक हालत खराब नहीं होती. उद्यमों में मुनाफे और श्रमिकों के कल्याण को एक दूसरे के खिलाफ नहीं समझा जाना चाहिए. तभी जर्मनी महंगे श्रम वाला देश होने के बावजूद आर्थिक रूप से अत्यंत सशक्त है और उसके सामान की दुनिया भर में मांग है. जर्मनी में सबसे जरूरी उद्यमों के संचालन में कर्मचारियों की भागीदारी है.

जर्मन राजधानी बर्लिन में मई दिवस पर ट्रेड यूनियनों का प्रदर्शनतस्वीर: Getty Images

मुनाफे का एक अहम पहलू है ग्राहकों में साख. चाहे ट्रांसपोर्ट हो, बैंक या दूसरे सरकारी उद्यम, उनका भविष्य और मुनाफा और इसके साथ ही कर्मचारियों का कल्याण ग्राहकों को साथ रखने से ही संभव है. अर्थव्यवस्था के खुलने के साथ ग्राहकों की मजबूरी के दिन खत्म हो रहे हैं. उन्हें लुभा कर और अच्छी सर्विस देकर ही अपने साथ रखा जा सकता है. यह बात मैनेजरों को भी समझनी होगी और कर्मचारियों को भी.

हड़ताल से आम लोगों पर असर होता है और उनका गुस्सा भी बढ़ता है. अच्छी सेवा देकर हड़ताल के लिए सहानुभूति भी हासिल की जा सकती है क्योंकि कर्मचारियों के पास अपनी मांग मनवाने के लिए हड़ताल एक महत्वपूर्ण लोकतांत्रिक जरिया है. लेकिन हड़ताल के जरिए आम लोगों पर दबाव डालना अच्छी रणनीति नहीं. एक अच्छा उद्यम मैनेजमेंट और कर्मचारियों के सहयोग पर ही निर्भर है और सहयोग के लिए बातचीत और समझौते की तैयारी आवश्यक है.

ब्लॉग: महेश झा

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