गोटाबाया राजपक्षे होंगे श्रीलंका के नए राष्ट्रपति
१८ नवम्बर २०१९![Sri Lanka Wahl 2019 | Gotabaya Rajapaksa, Kandidat SLPP](https://static.dw.com/image/51267110_800.webp)
कोलंबो में इस्लामी आतंकवादियों के हमले में 269 लोगों की जान जाने की घटना के करीब सात महीने बाद देश में राष्ट्रपति चुनाव हुए हैं. राजपक्षे ने चुनाव के लिए पूरे देश में राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करने के नाम पर अभियान चलाया था. बौद्ध धर्म को मानने वालों की प्रमुखता वाले देश में इसी साल 21 अप्रैल को हुआ आतंकवादी हमलों का असर महसूस किया जा सकता है. हालांकि गोटाबाया की जीत से श्रीलंका के तमिल और मुस्लिम अल्पसंख्यकों के साथ ही सामाजिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के एक हिस्से में भी चिंता है.
गोटाबाया के भाई महिंदा राजपक्षे के 2005-2015 के शासनकाल का अनुभव लोगों के जहन में अब भी ताजा है. महिंदा राजपक्षे ने गोटाबाया और सुरक्षा बलों के साथ मिल कर तमिल अलगाववादियों के साथ चल रहे गृहयुद्ध का अंत किया. राजपक्षे के शासन का दशक मानवाधिकारों के उल्लंघन, गैर न्यायिक हत्याओं और चीन के साथ बढ़ती नजदीकियों के लिए जाना जाता है.
सेना से रिटायर हो चुके 70 साल के लेफ्टिनेंट कर्नल गोटाबाया को उनके परिवार वाले भी "टर्मिनेटर" के नाम से बुलाते हैं. चुनाव आयोग की घोषणा के मुताबिक उन्हें कुल 52.25 फीसदी मत मिले हैं. कोलंबो में राजपक्षे के घर के बाहर मौजूद 22 साल के छात्र देवनी ने कहा, "मैं पूरी रात सो नहीं सका, मैं बहुत उत्साहित हूं, वह ऐसे राष्ट्रपति हैं जिनकी हमें जरूरत है."
राष्ट्रपति चुनाव में इस बार रिकॉर्ड 36 उम्मीदवार मैदान में थे. सत्ताधारी पार्टी के उदार प्रतिद्वंद्वी सजिथ प्रेमदासा को कुल 41.99 फीसदी वोट मिले. उन्होंने हार स्वीकार कर ली है और राजपक्षे को बधाई दी. कुल मतदान 83.7 फीसदी हुआ. प्रेमदासा को तमिल बहुल इलाके में बढ़िया समर्थन मिला. हालांकि सिंहली इलाके में मिले दो तिहाई से ज्यादा मतों ने राजपक्षे की जीत सुनिश्चित कर दी. राजपक्षे आज देश के राष्ट्रपति पद की शपथ लेंगे.
रविवार को हुआ चुनाव प्रधानमंत्री रनिल विक्रमसिंघे की यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) की लोकप्रियता के लिए पहली परीक्षा थी. विक्रमसिंघे का प्रशासन अप्रैल में हुए हमलों को रोक पाने में नाकाम रहा. संसदीय जांच के मुताबिक सरकार को इस हमले के बारे में पहले से ही भारतीय खुफिया अधिकारियों ने चेतावनी दे रखी थी. चुनाव के दौरान ही रविवार को तीन केंद्रीय मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया. इन में वित्त मंत्री मंगलार समरवीरा भी शामिल हैं.
प्रेमदासा ने भी सुरक्षा को बेहतर करने का भरोसा दिया था और गृहयुद्ध के दौरान सेना प्रमुख रहे सरथ फोंसेका को राष्ट्रीय सुरक्षा प्रमुख बनाने का वचन दिया था. फोंसेका ने तमिल चरमपंथियों के सफाए में अहम भूमिका निभाई थी. प्रेमदासा ने खुद को भी आतंकवाद का पीड़ित बताया. वह पूर्व राष्ट्रपति रणसिंघे प्रेमदासा के बेटे हैं जिनकी एक तमिल आत्मघाती हमलावर ने मई 1993 में हत्या कर दी थी.
देश की बहुसंख्यक सिंहली जनता और बौद्ध भिक्षुओं ने गोटाबाया को समर्थन दिया. उन्हें गृहयुद्धों में अहम भूमिका निभाने के लिए यह समर्थन मिला है. इस गृहयुद्ध में श्रीलंका की सेना ने करीब 40 हजार आम तमिल लोगों का सफाया किया. उनके भाई के शासनकाल में रक्षा सचिव रहते हुए गोटाबाया पर सुरक्षा बलों की मदद से ना सिर्फ तमिल चरमपंथियों को बल्कि विरोधियों और पत्रकारों को भी निबटाने के आरोप हैं. हालांकि गोटाबाया इन आरोपों से इनकार करते हैं.
देश में 15 फीसदी आबादी तमिल लोगों की है और 10 फीसदी मुसलमानों की. अप्रैल में आतंकवादी हमले के बाद कई बार इस समुदाय के लोगों को क्रुद्ध भीड़ ने अपना निशाना बनाया है. उन्हें डर है कि गोटाबाया के शासन में इस तरह की घटनाएं बढ़ सकती हैं.
महिंदा राजपक्षे के शासनकाल में श्रीलंका ने चीन से भारी कर्ज लिया और चीन की पनडुब्बियों को 2014 में कोलंबो के बंदरगाह पर आने की इजाजत भी दी. श्रीलंका के लिए चीन का कर्ज एक बड़ा बोझ बन गया था. कई परियोजनाएं उसके लिए सफेद हाथी साबित हुईं, जैसे कि एयरपोर्ट परियोजना जो भ्रष्टाचार के आरोपों में घिर गया. इसे लेकर भारत और पश्चिमी देशों ने काफी चिंता जताई थी. रविवार को भारत के प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी ने ट्वीट किया कि भारत, "करीबी और भाईचारे के संबंधों को और गहरा बनाने के साथ ही हमारे इलाके में शांति और समृद्धि के साथ ही सुरक्षा बढ़ाने के" इंतजार में है.
2015 से अलग इस बार का चुनाव श्रीलंका की राजनीति को देखते हुए काफी शांतिपूर्ण कहे जा रहे हैं. 2015 के चुनावों में तो कई बम हमले और गोलीबारी की घटनाएं हुई थीं. इस बार शनिवार को मुस्लिम मतदाताओं को चुनाव के लिए ले जा रहे करीब 100 बसों के काफिले पर गोलीबारी अकेली बड़ी घटना थी. इस घटना में 2 लोग जख्मी हुए. चुनाव आयोग के मुताबिक इस बार के चुनाव नफरत भरे बोलों और गलतबयानी के लिहाज से सबसे खराब रहे.
एनआर/एमजे (एएफपी)
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