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श्रीलंका युद्ध की अंतरराष्ट्रीय जांच की मांग

२७ मई २००९

संयुक्त राष्ट्र में मानवाधिकार प्रमुख नवी पिल्लै ने श्रीलंका युद्ध की अंतरराष्ट्रीय जांच करने को कहा है. इस बीच श्रीलंका सरकार ने सात हज़ार पूर्व तमिल लड़ाकों को फिर से बसाने का दावा किया है.

मानवाधिकार उच्चायुक्त पिल्लैतस्वीर: AP

लिट्टे के ख़िलाफ़ पच्चीस साल से जारी श्रीलंका सेना का युद्ध ख़त्म हो चुका है लेकिन इस युद्ध में विस्थापित हुए लोगों की परेशानियां ख़त्म होने में अभी बहुत वक्त लगेगा. इस युद्ध की जांच करने की मांग संयुक्त राष्ट्र उठाता रहा है ताकि जिन लोगों ने ग़लती की है उन्हें कटघरे में खड़ा किया जा सके.

श्रीलंका में युद्ध अपराध के मामलों की जांच की मांग तेज़ होती जा रही है. अब मानवाधिकार मामलों की प्रमुख नवी पिल्लै ने कहा है कि इसकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जांच होनी चाहिये ताकि ये पता लगाया जा सके कि क्या श्रीलंका सरकार या लिट्टे विद्रोहियों ने संघर्ष के दौरान कोई युद्ध अपराध किये. पिल्लै का कहना है कि अपराधियों का पता लगना श्रीलंका में सिंहली और तमिल लोगों को एक साथ लाने के लिये बहुत ज़रूरी है.

संयुक्त राष्ट्र की विशेष बैठक में नवी पिल्लै ने मांग की कि एक स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच आयोग बनाया जाना चाहिये जो कि श्रीलंका में हुए युद्ध की प्रकृति और मानवाधिकार उल्लंघनों के स्तर की जांच पड़ताल करे.

प्रभाकरण की मौत के साथ युद्ध का अंत हुआतस्वीर: AP

श्रीलंका में संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत विजय नांबियार पहले ही कह चुके हैं कि श्रीलंका युद्ध में अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानून के हनन के बहुत और गंभीर मामले हैं अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इस पर ध्यान देना होगा.

पिछले सप्ताह श्रीलंका सरकार ने लिट्टे पर जीत की घोषणा की, जिसके बाद लिट्टे ने भी अपने प्रमुख प्रभाकरण की मौत की पुष्टि कर दी. उधर, नवी पिल्लै का कहना है कि पीड़ित और बचे हुए लोगों को सच्चाई जानने का हक़ है.

संयुक्त राष्ट्र की तरफ़ से मानवाधिकार की स्थिति पर नज़र रखने वाले पर्यवेक्षकों का कहना है कि उन्हें युद्ध के दौरान अत्याचार और लोगों की गुमशुदगी की कई रिपोर्टें मिली हैं. साथ ही कई लोगों को बिना किसी आरोप के कई दिनों तक जेल में रखने की भी ख़बरें हैं.

संयुक्त राष्ट्र में मानवाधिकार मामलों की जांच कर रहे लोगों का कहना है कि लिट्टे ने संघर्ष के दौरान तमिलों को मानव ढाल की तरह इस्तेमाल किया और यह भी मानवाधिकारों का हनन है.

युद्ध में बेघरबार हुए लोगों को सरकार ने अस्थायी शिविरों में अब भी रखा हुआ है जिसके कारण ये आशंका जताई जा रही है कि इन्हें जानबूझकर इन शिविरों में रखा जा रहा है. संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि इस शिविर में भूख या कुपोषण से लोगों की मौत हो गई है.

रिपोर्ट: एजेंसियां आभा मोंढे

संपादन: महेश झा

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