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संकट के असर को कम करेगा ईयू

४ अक्टूबर २०१३

यूरोप में वित्तीय और बचत नीति के प्रभावों को यूरोपीय आयोग और गंभीरता से लेगा और उसे कम करेगा. वह हर सदस्य देश में सामाजिक मुद्दों को पहचानकर ईयू की वित्तीय योजना को दिशा देने की कोशिश कर रहा है.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

ब्रसेल्स में यूरोपीय संघ के 28 सदस्य देश अपने वित्तीय फैसलों और राष्ट्रीय बजट का विश्लेषण कराएंगे. यूरोपीय आयोग इन देशों को बेहतर राजनीतिक दिशानिर्देश के लिए सुझाव भी देता है. 17 देश यूरो मुद्रा का इस्तेमाल करते हैं और अगर उनका बजट घाटा सकल घरेलू उत्पाद के तीन प्रतिशत हिस्से से कम नहीं होता, तो उन्हें एक खास प्रक्रिया का पालन करना पड़ता है. इसके तहत उन्हें छह महीने का वक्त दिया जाता है, जिसमें वह अपना कर्ज कम करें. अगर वह ऐसा नहीं कर पाते तो उन पर जुर्माना किया जाता है.

इसके अलावा, आर्थिक विकास को लेकर अटकलें, आंकड़े और हर तीन महीने पर यूरोपीय संघ के सामाजिक हालात पर रिपोर्ट प्रकाशित करना भी यूरोपीय आयोग का काम है. लेकिन जहां तक सामाजिक और आर्थिक फैसले लेने का सवाल है, यह केवल सदस्य देशों की सरकारें करती हैं. अब यूरोपीय आयोग कोशिश कर रहा है कि ईयू में सामाजिक अंतर भी कम हों. यूरोप के सामाजिक आयुक्त लाजलो आंदोर ने कहा, "हम सुझाव देते हैं कि यूरोपीय संघ में सामाजिक अंतर को एक खास तरीके से मापें जिससे ईयू देशों की सामाजिक परेशानियां भी सामने आएं. इसमें बेरोजगारी, श्रमिकों में गरीबी का खतरा, सबसे अमीर 20 प्रतिशत और सबसे गरीब 20 प्रतिशत लोगों में अंतर के अलावा निजी बजट शामिल हैं." इस सामाजिक रिपोर्ट से यूरो क्षेत्र की बचत नीति का दक्षिण यूरोप के गरीब देशों में गोने वाले असर का पता चलेगा.

कैसे कम होगा सरकारी घाटातस्वीर: picture-alliance/dpa

बिना असर का विश्लेषण
लेकिन रिपोर्ट में इन सामाजिक परेशानियों से कैसे जूझा जाएगा, इसके बारे में आंदोर ने कुछ नहीं कहा. अगर रिपोर्ट में किसी देश में सामाजिक विकास को लेकर कुछ परेशानियां दिखती हैं, तो न तो उस देश में रोजगार बढ़ाने के लिए पैसे लगाए जाएंगे और न ही वहां की सरकार को जुर्माना भरना पड़ेगा. इस वक्त महंगाई दर बढ़ने पर सदस्य देशों को यूरो जोन से निकाले जाने का खतरा बना रहता है. लेकिन यूरोपीय आयोग के प्रमुख जोसे मानुएल बारोसो का कहना है कि रिपोर्ट से सामाजिक मुद्दों से एक जुड़ाव बनेगा और वित्तीय मुद्दों की भी दिशा तय की जा सकेगी.


जून में यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के प्रमुखों ने तय किया कि यूरो जोन के सामाजिक हिस्से के बारे में भी सोचा जाना चाहिए. जोसे बारोसो ने कहा कि आयोग यूरोप में नौकरशाही को बढ़ाना नहीं चाहता. यूरोप में जिंदगी आम लोगों के लिए आसान, सस्ती और सरल होगी. यूरोप के कई देशों में ऐसे कानून चाहिए जो पूरे यूरोप में लागू होंगे लेकिन कुछ मुद्दों में देशों के भीतर उनके अपने कानून लगाना ही ठीक रहेगा.

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एक बड़ा दैत्य
यूरोपीय संघ में रहने वाले पचास करोड़ लोगों को लगता है कि ईयू एक बड़ा दैत्य है जो जोर जबरदस्ती से पैसे बचाने पर अड़ा हुआ है. यूरोपीय संघ में 51 प्रतिशत जनता बचत प्रणाली को सही नहीं मानती है और केवल पांच प्रतिशत ईयू की नीतियों से खुश है. ग्रीस में 94 प्रतिशत लोगों को लगता है कि उनके देश के लिए यूरोपीय बचत नीति सही नहीं है.


अब कई नेता चाहते हैं कि सामाजिक मुद्दों पर बहस हो साथ ही गरीबी और बेरोजगारी जैसी परेशानियों को दूर करने में कुछ फैसले लिए जाएं. यूरोपीय संसद में वामपंथी डी लिंके पार्टी की प्रतिनिधि गाबी जिमर मानती हैं, "जब तक आम लोगों को बस जीने के लिए संघर्ष करना पड़ेगा तब तक कर्ज वापस करने की बात बेकार है. अगर सही स्थिति पैदा नहीं हो सकी, जिससे कि लोग सम्मान से जी पाएं, तब तक कर्ज की बात नहीं कर सकते और इसके लिए यूरोपीय संघ जिम्मेदार है."

ग्रीस और स्पेन में बचत नीति के बावजूद वहां युवाओं में बेरोजगारी कम नहीं हो पाई है. ग्रीस में 25 साल से कम उम्र के लोगों में 61.5 प्रतिशत बेरोजगारी है. स्पेन में यह संख्या 56 प्रतिशत है. ग्रीस में विपक्षी पार्टी के प्रमुख आलेक्सिस सिप्रास का कहना है कि नव उदारवाद नीति को खत्म करने की जरूरत है क्योंकि इससे ग्रीस में बहुत अजीब हालात पैदा हो रहे हैं. उनका कहना है कि ग्रीस को निवेश की जरूरत है और एक ऐसी योजना की जो दूसरे विश्व युद्ध के बाद मार्शल प्लान के जैसी हो, जो उसकी परेशानियों को दूर कर सकेगा.

रिपोर्टः बेर्न्ड रीगर्ट/एमजी
संपादनः महेश झा

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