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संकट में सियासत करते ग्रीस के नेता

६ नवम्बर २०११

आर्थिक और सामाजिक संकट के दलदल में फंसे ग्रीस में सरकार और विपक्ष के बीच गतिरोध बना हुआ है. समय कम हो रहा है लेकिन राजनीति का उफान बढ़ता जा रहा है. विपक्ष चुनाव की मांग पर अड़ा है. इससे यूरोप की बेचैनी बढ़ती जा रही है.

तस्वीर: dapd

ग्रीस के विपक्ष के मुख्य नेता एंतोनिस समारास रविवार को राष्ट्रपति से मिलने जा रहे हैं. न्यू डेमोक्रेसी पार्टी के नेता एंतोनिस समारास ने प्रधानमंत्री जॉर्ज पापांद्रेऊ की प्रस्तावित गवर्नमेंट ऑफ नेशनल यूनिटी का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया है. समारास ने पापांद्रेऊ को ग्रीस के लिए 'खतरनाक' बताते हुए तुरंत चुनाव कराने की मांग की है.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

प्रधानमंत्री पापांद्रेऊ का तर्क है कि यूरोपीय संघ से आर्थिक सहायता की 130 अरब यूरो की अगली किस्त मंजूर होने तक चुनाव नहीं होने चाहिए. शनिवार को दो जनमत सर्वेक्षणों के नतीजे भी सामने आए. ग्रीस के ज्यादातर लोग चाहते हैं कि चुनाव की जगह फिलहाल सभी राजनीतिक पार्टियां एकजुट होकर गवर्नमेंट ऑफ नेशनल यूनिटी बनाएं.

शनिवार को संसद में बहुत मामूली अंतर से विश्वास मत जीतने के बाद प्रधानमंत्री पापांद्रेऊ ने राष्ट्रपति कारोलोस पापौलियास से मुलाकात की. राष्ट्रपति ने विपक्ष से कहा है कि वे राजनीतिक मतभेद भुलाकर देश हित में साथ आएं और यूरो संकट को हल करने में भूमिका निभाएं. राष्ट्रपति पापौलियास ने प्रधानमंत्री से कहा, "सर्वसम्मति ही एक मात्र रास्ता है."

संकट में भी सियासत

दरअसल प्रधानमंत्री और विपक्षी नेता समारास दोनों आर्थिक संकट को हल करने को तैयार तो हैं लेकिन दोनों की योजनाएं अलग अलग हैं. समारास कहते हैं, "हम अल्प अवधि के लिए परिवर्तित होती एक सरकार चाहते हैं ताकि स्थिरता का माहौल बहाल किया जा सके. उसके बाद देश में चुनाव हों."

तस्वीर: dapd

प्रधानमंत्री कहते हैं, चुनावों का "ग्रीस के लोगों और अर्थव्यवस्था पर बेहद बुरा असर पड़ेगा." वह जोर देकर कह रहे हैं कि देश बेहद नाजुक दौर से गुजर रहा है. आर्थिक मदद नहीं मिली तो ग्रीस दिवालिया हो जाएगा और उसे यूरो जोन से बाहर भी होना पड़ सकता है.

यह अटकलें भी तेज हो गई है कि वित्त मंत्री इवांगेलोस वेनिजेलोस नई गठबंधन सरकार का नेतृत्व कर सकते हैं. पापांद्रेऊ संकेत दे चुके हैं कि अगर उनके पद छोड़ने से बात बनती है तो वह प्रधानमंत्री पद से हटने के लिए तैयार हैं. लेकिन असमंजस इस बात से है कि पापांद्रेऊ सुबह कुछ, दोपहर में कुछ और रात को कुछ और ही कह दे रहे हैं.

सोमवार को ग्रीस के प्रधानमंत्री ने यूरोपीय संघ के नेताओं समेत पूरी दुनिया को चौंका दिया. पापांद्रेउ ने अचानक एलान किया कि आर्थिक सहायता को लेकर वह ग्रीस में जनमत संग्रह कराना चाहते हैं. पापांद्रेऊ 130 अरब यूरो के नए बेल आउट पैकेज के बारे में जनमत संग्रह करवाना चाहते थे. जर्मनी और फ्रांस ने काफी माथापच्ची कर ग्रीस की मदद की योजना बनाई. आखिरी वक्त में पापांद्रेऊ के बयान ने सारा खेल बिगाड़ दिया.

कर्ज के दलदल में यूरोप

ग्रीस के अलावा यूरोपीय संघ को अभी पुर्तगाल, इटली, स्पेन और आयरलैंड के कर्ज संकट से भी निपटना है. जी-20 की बैठक में ग्रीस ही छाया रहा. फ्रांस के शहर कान में दुनिया के 20 सबसे ताकतवर देशों के नेताओं की मुलाकात में जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल यूरोप का नेतृत्व करती नजर आईं. लेकिन वह भी मान रही हैं कि कर्ज के दलदल से निकलने में यूरोप को एक दशक का वक्त लग सकता है.

ग्रीस को लेकर फ्रांस के राष्ट्रपति निकोला सारकोजी भी तनाव में हैं. सारकोजी कह चुके हैं कि ग्रीस को यूरो जोन में लेना एक गलत फैसला था. फ्रांस के मुताबिक ग्रीस यूरो जोन से निकल सकता है लेकिन उसके यूरो जोन से निकलने का मतलब यूरोप का टूटना होगा.

यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष होजे मानुएल बारोसो आशंका जता रहे हैं कि ग्रीस को यूरो जोन से बाहर निकाल कर संकट हल करना पड़ सकता है. वह कहते हैं, "यूरो जोन में रहना ग्रीस के हित में है. मुझे लगता कि यूरो से बाहर निकलने का किसी देश का विचार अच्छा नहीं है. लेकिन साथ मिलकर लिए गए फैसलों को लागू करने की जिम्मेदारी हर देश की बनती है."

1.10 करोड़ की आबादी वाले ग्रीस के ऊपर फिलहाल 340 अरब डॉलर का कर्ज है. ग्रीस की सरकार अथाह सरकारी खर्चे की आदी रही है. टैक्स वसूली पर वहां कई तरह की रियायतें दी जाती रहीं. लिहाजा बीते एक दशक में राजकोष में पैसा न के बराबर आया, उल्टा अथाह कर्ज चढ़ गया. बहरहाल अपनी फटी जेब दुनिया से छुपा कर ग्रीस किसी तरह काम चलाता रहा. लेकिन 2008 की विश्वव्यापी मंदी ने ग्रीस की खराब हालत उजागर कर दी. मई 2010 में ग्रीस को 110 अरब यूरो का आर्थिक पैकेज दिया गया. इसके बाद जुलाई 2011 में भी 109 अरब यूरो का बेलआउट पैकेज दिया गया. लेकिन यह रकम भी पर्याप्त साबित नहीं हुई. ग्रीस के कर्ज का कुछ हिस्सा माफ भी करना पड़ा है.

यूरोपीय संघ ग्रीस पर कड़े आर्थिक सुधार लागू करने के लिए दबाव डाल रहा है. सरकार आर्थिक सुधार करना चाहती है लेकिन विरोध में आम लोग सड़कों पर उतर रहे हैं. हाल के दिनों में प्रदर्शन कुछ कम हुए हैं लेकिन यह चिंता बढ़ गई है कि अगर ग्रीस कर्ज नहीं चुका पाया तो ऋण मुहैया कराने वाले बैंकों का क्या होगा. ग्रीस के बाद इटली, पुर्तगाल, स्पेन और आयरलैंड भी लाइन लगाकर मदद का इंतजार कर रहे हैं.

रिपोर्ट: एजेंसियां/ओंकार सिंह जनौटी

संपादन: एन रंजन

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