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समाज

संतान उत्पत्ति के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंची बिहार सरकार

मनीष कुमार
२३ अप्रैल २०२१

वंशवृद्धि को मौलिक अधिकार मानते हुए पटना हाईकोर्ट ने एक नि:संतान महिला की याचिका पर हत्या के एक मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे उसके पति को पंद्रह दिनों के पेरोल पर छोड़ने का आदेश दिया.

 Indien Oberlandesgericht Gebäude
तस्वीर: DW/M. Kumar

बिहार के नालंदा जिले की रहुई प्रखंड के उत्तरनावां गांव निवासी विक्की आनंद की पत्नी रजिता पटेल ने पटना उच्च न्यायालय में 2019 में एक याचिका दाखिल कर उम्रकैद की सजा काट रहे उसके पति विक्की आनंद को कॉजुगल विजिट व इन्फर्टिलिटी ट्रीटमेंट के लिए 90 दिन के पेरोल पर छोड़ने की गुहार लगाई.

अपनी याचिका में रजिता पटेल ने कहा कि विक्की आनंद से उसकी शादी 25.04.2012 को हुई थी. शादी के पांच महीने बाद ही 27.09.2012 को केस संख्या 263 में भारतीय दंड संहिता की धारा 307,341,342 तथा 120बी/34 के तहत उसे आरोपी बना दिया गया. अस्पताल में सोलह दिन रहने के बाद अपराध की शिकार पीडि़ता की मौत होने पर धारा 302/34 जोड़ते हुए विक्की के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई.

कानूनी प्रक्रिया से गुजरने के बाद अदालत ने उसे सश्रम आजीवन कारावास की सजा सुनाई. निचली अदालत के फैसले के खिलाफ 2016 में हाईकोर्ट में अपील दायर की गई. अदालत ने अपील को स्वीकार किया, किंतु याचिकाकर्ता के पति की जमानत की अर्जी को खारिज कर दिया.

अपनी याचिका में रजिता ने कहा कि शादी के वक्त उसकी उम्र 25 साल थी और इन्हीं परिस्थितियों के बीच सात साल (याचिका दाखिल करने के समय तक) से उसका पति उससे अलग रहते हुए जेल में सजा काट रहा है. पति से अलगाव के कारण उसे कोई भी संतान नहीं हो सकी.

इसलिए आर्टिकल-21 के तहत मिले मौलिक अधिकार के रूप में संतान उत्पन्न करने के लिए उम्रकैद की सजा काट रहे उसके पति विक्की आनंद को उसके साथ रहने (कॉजुगल विजिट) व संतानहीनता (बांझपन) संबंधित इलाज तथा उसके जीवनयापन की व्यवस्था के लिए 90 दिनों के पेरोल पर छोड़ा जाए.

इसके पक्ष में रजिता पटेल के अधिवक्ता बजरंगी लाल ने अदालत के समक्ष 2017 के बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका संख्या 1837 के संदर्भ में मद्रास हाईकोर्ट तथा जसवीर सिंह व अन्य के मामले में 2015 में क्रिमिनल लॉ जर्नल 2282 में उल्लिखित पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट के फैसले को रखा.

गर्लफ्रेंड को जिंदा जलाने की मिली सजा

दरअसल, विक्की का रजिता पटेल से शादी से पहले एक अन्य लड़की से प्रेम प्रसंग चल रहा था. किंतु परिवार के दबाव में उसने रजिता से विवाह कर लिया. यह बात पता चलने पर उसकी प्रेमिका ने उस पर विवाह के लिए दबाव डालना शुरू किया. इससे घबरा कर विक्की ने उस लड़की को जिंदा जलाने की कोशिश की.

गंभीर रूप से झुलसी उस लड़की को पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती कराया जहां इलाज के दौरान ही उसकी मौत हो गई. मौत से पहले पुलिस को दिए बयान में उसने साफ तौर पर कहा था कि विक्की ने उसे जलाया था. इसी आधार पर पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की और जिला न्यायालय ने सश्रम आजीवन कारावास की सजा सुनाई.

उच्च न्यायालय में सरकार की ओर से अधिवक्ता शिव शंकर प्रसाद ने रजिता पटेल की पेरोल संबंधी याचिका का विरोध किया और कहा कि बिहार प्रिजन मैनुअल 2012 के अनुसार बांझपन के इलाज या बच्चे पैदा करने के लिए कैदी को पेरोल दिए जाने का कोई प्रावधान नहीं है. उन्होंने कहा, "बिहार प्रिजन मैनुअल के 793(V) के तहत विशेष परिस्थिति में केवल पंद्रह दिन के लिए पेरोल पर छोड़ने का प्रावधान है." साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि मद्रास तथा पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट का उक्त फैसला इस परिस्थिति में लागू नहीं होता है.

जीने के अधिकार के तहत है संतान की उत्पत्ति

उच्च न्यायालय ने दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद रजिता पटेल की याचिका को स्वीकार करते हुए 12 अक्टूबर 2020 को बिहार सरकार तथा संबंधित पक्षों को रजिता पटेल के पति विक्की आनंद को विशेष परिस्थिति में पंद्रह दिन के पेरोल पर छोड़ने का निर्देश जारी किया. न्यायमूर्ति राजीव रंजन प्रसाद ने अपने फैसले में आर्टिकल-21 के संदर्भ में चाल्र्स शोभराज बनाम अधीक्षक, तिहाड़ सेंट्रल जेल, मेनका गांधी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया, डी भुवन मोहन पटनायक व अन्य बनाम स्टेट ऑफ आंध्र प्रदेश का उल्लेख किया.

उन्होंने कहा कि प्रिजन मैनुअल के अनुसार विशेष परिस्थिति में पंद्रह दिनों के पेरोल के लिए कॉजुगल विजिट के संदर्भ में साफ तौर पर कुछ नहीं कहा गया है, केवल इसलिए इससे इनकार नहीं किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि हिंदू परिवार में संतान को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है. ऋगवेद का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि पति वंश को बढ़ाने के लिए पत्नी का हाथ थामता है. सभी धार्मिक क्रियाकलापों का आधार विवाह है.

उन्होंने मद्रास हाईकोर्ट के फैसले की व्याख्या करते हुए कहा कि कॉजुगल विजिट को अदालत ने भी विशेष या असाधारण श्रेणी में माना है. याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने भी कहा है कि जसवीर सिंह व अन्य के मामले में पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट ने भी आर्टिकल-21 के तहत दिए गए जीने का अधिकार व वैयक्तिक स्वतंत्रता के तहत ही कॉजुगल विजिट को करार दिया गया है.

अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता (पेटिशनर) ने मेडिकल चेकअप, बांझपन के इलाज व जीवनयापन के उपायों की चर्चा की है. निश्चित तौर पर यह पारिवारिक समस्या है जिसका निपटारा उसका पति ही कर सकता है, इसलिए पेरोल के प्रावधान 6(2)ख के तहत कौटुम्बिक संपत्ति और मामले से संबंधित समस्याओं का निपटारा करना से यह अलग नहीं है और यह इसी श्रेणी में आता है. अतएव पेटिशनर की मांग पर उसके पति को पेरोल पर छोड़ा जा सकता है. मेडिकल चेकअप और इलाज आर्टिकल -21 में दिए गए अधिकारों के तहत आता है. पति को छोड़े बिना संविधान प्रदत्त इस अधिकार का कोई अर्थ या महत्व नहीं रह जाएगा. इसलिए इस आदेश की प्रति प्राप्त होने के 30 दिनों के अंदर सक्षम प्राधिकार द्वारा विक्की आनंद को पेरोल पर छोडऩे का आदेश पारित किया जाए.

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सुप्रीम कोर्ट पहुंची बिहार सरकार

हाईकोर्ट के आदेश के आलोक में रजिता पटेल व विक्की आनंद ने क्रमश: महानिरीक्षक (कारा एवं सुधार सेवाएं) तथा मंडल कारा, बिहारशरीफ के अधीक्षक को पेरोल पर छोड़ने हेतु आवेदन दिया. किंतु, बिहार प्रिजन मैनुअल में किसी भी कैदी को ऐसे मामले में पेरोल की इजाजत नहीं होने के कारण उच्च न्यायालय के आदेश पर अमल नहीं किया जा सका. अंतत: रजिता पटेल ने फिर हाईकोर्ट की शरण ली. अदालत ने आठ मार्च 2021 को कारा महानिरीक्षक (आइजी) मिथिलेश मिश्रा को अदालत के आदेश की अवमानना में शोकॉज जारी करते हुए कहा कि 12 अक्टूबर 2020 के आदेश का पालन नहीं करने के कारण उनके खिलाफ क्यों न अवमाननावाद (कंटेम्पट) की कार्रवाई की जाए. स्पष्टीकरण दाखिल करने के लिए सरकार को दो हफ्ते का समय दिया गया.

इस बीच 20 मार्च को महानिरीक्षक (कारा व सुधार सेवाएं) बिहार द्वारा एक आदेश जारी किया गया जिसमें रजिता पटेल के आवेदन को अस्वीकृत करते हुए कहा गया कि कैदी के माता-पिता, पत्नी (या पति) या बच्चे की गंभीर बीमारी या मृत्यु व कौटुम्बिक संपत्ति और मामले से संबंधित समस्याओं का निपटारा करना या अपने पुत्र या पुत्री का विवाह और अनिवार्य धार्मिक संस्कारों को संपन्न किया जाना तथा भावी नियोजक से साक्षात्कार करना जैसी स्थिति में ही पंद्रह दिनों के पेरोल की स्वीकृति का प्रावधान है. इसी आशय का एक पत्र (पत्रांक-बंदी/याचिका-05-26/2020 .. 2699) 20 मार्च को ही बिहारशरीफ के काराधीक्षक को भी जारी किया गया. तत्पश्चात 23 मार्च को सुनवाई के दौरान अदालत ने सरकार द्वारा दाखिल स्पष्टीकरण को खारिज करते हुए अवमाननावाद की कार्रवाई शुरू करते हुए कारा विभाग के महानिरीक्षक (आइजी) को सशरीर 26 मार्च 2021 को अदालत में उपस्थित होने का आदेश दिया.

आइजी के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई शुरू होते ही बिहार सरकार पटना हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई. वहां सरकार ने स्पेशल लीव पीटिशन (एसएलपी) दाखिल कर दिया जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने आइजी के खिलाफ अवमाननावाद की कार्रवाई पर रोक लगा दी. इधर, 26 मार्च को हाईकोर्ट में आइजी उपस्थित हुए और एडवोकेट जनरल ने अदालत को बताया कि सुप्रीम कोर्ट में बिहार सरकार द्वारा दायर एसएलपी विचाराधीन है. इसके बाद अदालत ने सुनवाई की अगली तिथि 26 अप्रैल मुकर्रर कर दी.

ऐसा नहीं है कि इससे पहले देश में कॉजुगल विजिट के लिए कैदियों को अनुमति नहीं मिली है. तामिलनाडु, पंजाब व मद्रास हाईकोर्ट ऐसे मामलों में कैदियों को इसकी इजाजत दे चुका है. विश्व के कई देशों जैसे कनाडा, बेल्जियम, रूस, स्पेन, सऊदी अरब व डेनमार्क में अदालतें इसकी अनुमति दे रही हैं. जानकार बताते हैं कि इससे कैदी परिवार के प्रति जिम्मेदार होते हैं, उनकी उग्रता में कमी आती है तथा वे मोटिवेट होकर आपराधिक मानसिकता से दूर होते हुए कैद में अनुशासित जीवन व्यतीत करते हैं. इसलिए जब भी जेलों में सुधार की बात चलती है तो हर स्तर पर इस संबंध में स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी करने की बात सामने आती है. अपने आप में कई मौलिक अधिकार की अवधारणाओं को समेटे हुए आर्टिकल-21 में महिलाओं के लिए संतान उत्पत्ति का अधिकार भी समाहित है. बलात्कार के बाद बच्ची को जन्म देने या न देने को लेकर भी अदालतें आर्टिकल-21 की विभिन्न मामलों में व्याख्या कर चुकी है.

जाहिर है, जब आर्टिकल-21 कहता है कि मानवीय गरिमा के साथ जीना तथा वे सब पहलू जो जीवन को अर्थपूर्ण, पूर्ण व जीने योग्य बनाते हैं तो संतान उत्पत्ति से कोई केवल इसलिए क्यों वंचित रहे कि उसने कोई अपराध किया है और इसकी सजा उसका निर्दोष जीवनसाथी क्यों भुगते. वैसे यह देखना है कि पटना हाईकोर्ट के संभवत: ऐस पहले फैसले सुप्रीम कोर्ट की मुहर लगती है या उसे खारिज किया जाता है. दोनों ही परिस्थितियों में एकबार फिर आर्टिकल-21 को लेकर एक नई बहस की शुरुआत होगी.

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