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संदेह में जर्मनी अमेरिका के रिश्ते

१९ जुलाई २०१४

निष्कासित सीआईए स्टेशन प्रमुख ने जर्मनी छोड़ दिया है, लेकिन क्या अमेरिका अपनी जासूसी बंद करेगा. पूर्व अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि अमेरिका ने जर्मनी के गुस्से को कमतर आंका. इसके दूरगामी नुकसान हो सकते हैं.

Bundeskanzlerin Merkel NSA Überwachung Obama
तस्वीर: SAUL LOEB/AFP/Getty Images

पिछले हफ्ते बर्लिन स्थित सीआईए स्टेशन प्रमुख को वापस भेजने के जर्मनी के फैसले से अमेरिकी अचंभित रह गए. इसने अमेरिका को जर्मनी की गहरी निराशा से परिचित कराया जो चांसलर अंगेला मैर्केल के मोबाइल फोन को टैप किए जाने के खुलासे के बाद से भी बढ़ रहा था. अमेरिका के एक पूर्व खुफिया अधिकारी जेम्स लुइस कहते हैं, "यह अभूतपूर्व है. और यह जर्मन सरकार की नाखुशी का स्पष्ट संकेत है."

अमेरिका के वरिष्ठतम खुफिया अधिकारी को निष्कासित किए जाने का फैसला बर्लिन में सरकारी दफ्तरों में काम करने वाले दो डबल एजेंट को पकड़े जाने के बाद लिया गया. सेंटर ऑफ स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज में सीनियर फेलो लुइस का कहना है कि जर्मनों की शिकायत जायज है कि "अब बहुत हुआ, आपको पीछे हटने की जरूरत है." खुफिया विशेषज्ञों का कहना है कि संदिग्ध अमेरिकी जासूसी ने ये सवाल उठाए हैं कि क्या वॉशिंगटन साथी देश में अपनी एजेंसियों की करतूतों से वाकिफ है और क्या वह अपनी राजनीतिक कीमत के लायक है.

दोस्तों की जासूसी

एक मामले में अमेरिकियों ने जर्मनी की विदेशी खुफिया एजेंसी बीएनडी के एक निचले दर्जे के अधिकारी को एनएसए के पूर्व एजेंट एडवर्ड स्नोडेन के आरोपों की जांच कर रहे संसदीय आयोग के दस्तावेज लाने के लिए पैसे दिए. एक पूर्व राजनयिक का कहना है कि ऐसी सूचना के लिए जर्मनी के साथ रिश्तों को दांव पर लगाना, जिन्हें बिना जासूसी किए भी हासिल किया जा सकता था, दिखाता है कि नौकरशाही ऑटो पायलट पर डाल दी गई है. "यह विश्वास से परे है."

पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद में काम कर चुके कोरी शाके का कहना है कि राष्ट्रपति ओबामा के सहायकों को जर्मनी में जासूसी का अत्यधिक पैनेपन के साथ आकलन करना चाहिए. स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में काम कर रहे शाके कहते हैं, "लोगों को बहुत सावधानी से जोखिम का विश्लेषण करना होगा. और मैं समझता हूं कि जर्मन सरकार को भरोसा नहीं है कि हम ऐसा कर रहे हैं."

जर्मनी लंबे समय तक तथाकथित 5 आंखें कार्यक्रम से बाहर रखे जाने का विरोध कर रहा था. इस खुफिया संधि में अमेरिका के अलावा चार अन्य अंग्रेजी भाषी देश ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और न्यूजीलैंड हैं. शीत युद्ध की शुरुआत में बने इस क्लब के सदस्य एक दूसरी पर जासूसी नहीं करते लेकिन अपनी सूचनाएं आपस में बांटते हैं. पिछली सरकारों की तरह ओबामा प्रशासन भी जर्मनी को इसमें शामिल करने के पक्ष में नहीं था क्योंकि विशेषज्ञों की राय में जर्मनी उतनी आक्रामकता के साथ आंकड़े नहीं जुटाता, जैसा "फाइव आइज" करती हैं.

अमेरिका का रवैया

चांसलर अंगेला मैर्केल की फोन की जासूसी के सामने आने के बाद दोनों देशों के बीच आपसी जासूसी नहीं करने पर बातचीत हुई लेकिन बात आगे नहीं बढ़ पाई. अमेरिका के एक पूर्व खुफिया अधिकारी का कहना है, "यह दूसरे देश के साथ समझ का सवाल नहीं है, यह खुद अपने जोखिम के आकलन का सवाल है." उनके अनुसार दोस्त देशों पर जासूसी फायदेमंद और जरूरी है क्योंकि अमेरिकी नेता वार्ता में जाने से पहले दूसरे देशों की सोच के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी चाहते हैं. कुछ विशेषज्ञों का तो यह भी कहना है कि अमेरिका के लिए जर्मनी पर रूस के प्रभाव के बारे में चिंतित होने का जायज कारण है.

रिटायर्ड अमेरिकी जनरल केविन रायन कहते हैं कि अमेरिका भले ही जर्मनी में जासूसी पूरी तरह न रोके उसे फिर से भरोसा कायम करने के लिए सख्त सीमाएं तय करनी होंगी, "हमें अपना रवैया बदलना होगा ताकि हम यूरोप में अपने नंबर एक पार्टनर को नाराज न करें." बर्लिन में अगले सीआईए स्टेशन प्रमुख को माफी मांगनी होगी और बताना होगा कि वॉशिंगटन अपना रुख कैसे बदल रहा है.

अमेरिका और जर्मनी की जासूसी एजेंसियों के जल्द ही अपने परंपरागत सहयोग पर वापस लौट जाने की संभावना है क्योंकि एक तो दोनों देशों के साझा हित हैं और दूसरे जर्मनी अलग होकर अपना खुद का सुरक्षा ढांचा नहीं बनाना चाहता. लेकिन राजनीतिक नुकसान हो रहा है और यदि अमेरिका चेतावनी के संकेत नहीं सुनता तो भावी जर्मन नेताओं का सहबंध पर से भरोसा उठ सकता है. इसका असर भावी ट्रांस अटलांटिक व्यापारिक संधि पर भी पड़ रहा है. एक पूर्व पश्चिमी राजनयिक के अनुसार कुछ जर्मन तो कहने भी लगे हैं, "यदि आप उन पर भरोसा नहीं कर सकते तो आप उनके साथ कारोबारी संबंध भी नहीं बनाना चाहते."

एमजे/एजेए (एएफपी)

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