नस्लवाद पर संयुक्त राष्ट्र के एक आतंरिक सर्वेक्षण में "येल्लो" शब्द के इस्तेमाल की वजह से संगठन पर नस्लवाद का आरोप लगा है. सर्वेक्षण के साथ संलग्न ईमेल में यह भी लिखा था कि संयुक्त राष्ट्र खुद नस्लवाद से अछूता नहीं हैं.
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संयुक्त राष्ट्र पर नस्लवाद का आरोप लगा है और यह आरोप लगाने वाले खुद संगठन के अपने कर्मचारी हैं. यह आरोप तब लगे जब संगठन ने एक सर्वेक्षण जारी किया जिसमें एक सवाल यह भी था कि कर्मचारी खुद को कैसे पहचानता है. जवाब के विकल्पों में "येल्लो" शब्द शामिल था, जिस पर कर्मचारियों ने आपत्ति की.
"नस्लवाद पर संयुक्त राष्ट्र के सर्वेक्षण" को बुधवार को हजारों कर्मचारियों के पास भेजा गया. सर्वेक्षण के साथ संलग्न ईमेल में लिखा था कि उसे संगठन के महासचिव अंटोनियो गुटेरेश के "नस्लवाद को मिटाने और सम्मान को बढ़ावा देने के अभियान" के तहत किया जा रहा है.
लेकिन कई कर्मचारियों ने रॉयटर्स को बताया कि पहले सवाल में ही "येल्लो" को एक विकल्प के रूप में लिख कर एशियाई लोगों के प्रति पश्चिमी नस्लवादी धारणा को दर्शा दिया. अन्य विकल्पों में काला, भूरा, श्वेत, मिश्रित/बहु-नस्ली और अन्य शामिल थे.
नाम अज्ञात रखने की शर्त पर एक कर्मचारी ने कहा, "पहला सवाल पागलपन भरा और अत्यंत अपमानजनक है. मेरी समझ में ही नहीं आ रहा है कि संयुक्त राष्ट्र जैसे विविधताओं वाले एक संगठन में इतने बड़े सर्वेक्षण के लिए इस सवाल को जारी करने की स्वीकृति मिल कैसे गई?" संयुक्त राष्ट्र ने सर्वेक्षण पर टिप्पणी के अनुरोध पर तुरंत कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.
न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय के वैगनर ग्रैजुएट स्कूल ऑफ पब्लिक सर्विस में एसोसिएट प्रोफेसर एरिका फोल्डी का कहना है कि इस शब्द का इस्तेमाल स्वीकार्य नहीं है. उन्होंने बताया, "एशियाई मूल के लोगों के लिए "येल्लो" शब्द का इस्तेमाल करना एक अपशब्द जैसा है. इसका इस्तेमाल बिल्कुल नहीं होना चाहिए. लेकिन इसके साथ यह भी याद रखना उपयोगी रहेगा कि नस्लवाद से जुड़ी भाषा जटिल होती है और निरंतर बदलती रहती है."
उन्होंने यह भी समझाया, "ब्राउन को भी पहले अपशब्द जैसा ही माना जाता था, लेकिन हाल ही में उसका काफी इस्तेमाल स्वीकार्य हो गया है. लेकिन मुझे "येल्लो" के साथ ऐसा होता नजर नहीं आता."
रॉयटर्स ने सर्वेक्षण के साथ संलग्न ईमेल को देखा है, और उसमें लिखा है, "ये सर्वेक्षण हमें संयुक्त राष्ट्र में नस्लवाद की गहराई को समझने के लिए आवश्यक डाटा उपलब्ध कराएगा." ईमेल में यह भी लिखा है, "हम इस मुद्दे से अछूते नहीं हैं."
मई में अश्वेत अमेरिकी नागरिक जॉर्ज फ्लॉयड की पुलिस के हाथों हुई मौत के बाद दुनिया भर में हो रहे प्रदर्शनों की वजह से संगठनों और कंपनियों पर नस्लवाद को संबोधित करने का दबाव बढ़ गया है.
अमेरिका के मिनियापोलिस में जॉर्ज फ्लॉयड की मौत से पूरी दुनिया आंदोलित है. वीकएंड में सभी महादेशों में लाखों लोगों ने नस्लवाद के खिलाफ प्रदर्शन किया है. भारत में भी सेलेब्रिटी "ब्लैक लाइव्स मैटर" का समर्थन कर रहे हैं.
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पेरिस: भेदभाव का विरोध
कुछ दिन पहले फ्रांस की राजधानी में पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को आंसू गैस का इस्तेमाल कर तितर बितर कर दिया था. शनिवार को भी आइफेल टॉवर और अमेरिकी दूतावास के सामने प्रदर्शनों की इजाजत नहीं दी गई थी. फिर भी दसियों हजार लोगों ने प्रदर्शन में हिस्सा लिया. पेरिस के बाहरी इलाकों में रहने वाले काले नागरिकों के खिलाफ पुलिस हिंसा आम है.
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लिएज: प्रतिबंधों के बावजूद प्रदर्शन
कई दूसरे यूरोपीय देशों की तरह बेल्जियम का भी औपनिवेशिक शोषण और लोगों को गुलाम बनाने का इतिहास रहा है. आज का डेमोक्रैटिक रिपब्लिक कॉन्गो कभी किंग लियोपोल्ड द्वितीय की निजी संपत्ति हुआ करता था. उनके नाम पर वहां नस्लवादी शासन चलता था. ब्रसेल्स, अंटवैर्पेन और लिएज शहरों में कोरोना के प्रतिबंधों के बावजूद प्रदर्शन हुए.
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म्यूनिख: रंग बिरंगा बवेरिया
जर्मनी के बड़े प्रदर्शनों में से एक दक्षिणी प्रांत बवेरिया की राजधानी म्यूनिख में हुआ. यहां करीब 30,000 लोग नस्लवाद का विरोध करने सड़कों पर उतरे. इसके अलावा कोलोन, फ्रैंकफर्ट और हैम्बर्ग में भी प्रदर्शन हुए. राजधानी बर्लिन में प्रदर्शन के लिए जाते लोगों को रोकने के लिए पुलिस ने कुछ समय के लिए सिटी सेंटर में स्थित अलेक्जांडरप्लात्स का रास्ता रोक दिया था.
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वियना: 50,000 लोगों का विरोध प्रदर्शन
ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना में शुक्रवार को ही 50,000 लोगों ने प्रदर्शन किया. ये देश में पिछले सालों में हुए बड़े प्रदर्शनों में एक रहा. स्थानीय पुलिसकर्मी भी प्रदर्शन के समर्थन में दिखे. रिपोर्टरों के अनुसार पुलिस की एक गाड़ी पर भी "ब्लैक लाइव्स मैटर" का नारा लिखा दिखा.
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सोफिया: सैकड़ों नस्लवाद विरोधी
कई दूसरे यूरोपीय देशों की तरह बुल्गारिया में भी दस लोगों से ज्यादा के साथ प्रदर्शन की अनुमति नहीं है. फिर भी नस्लवाद का विरोध करने राजधानी सोफिया में सैकड़ों लोग पहुंचे. वे जॉर्ज फ्लयॉड के कहे कथित तौर पर अंतिम शब्द "आई कांट ब्रीद" के नारे लगा रहे थे. प्रदर्शनकारियों ने साथ बुल्गारियाई समाज में व्याप्त नस्लवाद की ओर भी ध्यान दिलाया.
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तूरीन: कोरोना काल में विरोध
इस महिला ने अपना नारा कोरोना काल में जरूरी किए गए मास्क के ऊपर लिख रखा है, "काली जिंदगियां इटली में भी कीमती हैं." रोम और मिलान में हुए प्रदर्शनों में कोरोना महामारी की वजह से हुई तालाबंदी के बाद पहली बार लोग इतनी बड़ी तादाद में एक साथ इकट्ठा हुए. यूरोपीय संघ में सबसे ज्यादा अफ्रीकी आप्रवासी इटली में रहते हैं.
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लिस्बन: बिना अनुमति के रैली
पुर्तगाल की राजधानी लिस्बन में निकाले गए मार्च में इस प्रदर्शनकारी ने अपनी तख्ती पर लिख रखा है, "अब कार्रवाई करो." हालांकि विरोध प्रदर्शन करने की अनुमति नहीं दी गई थी, लेकिन पुलिस ने रैली को नहीं रोका. पुर्तगाल में भी काले नागरिकों के खिलाफ पुलिस बर्बरता की घटना अक्सर होती रहती है. जनवरी 2019 में पुलिस ने नस्लवाद विरोधी प्रदर्शनकारियों पर रबर की गोलियां चलाई थी.
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मेक्सिको सिटी: फ्लॉयड और लोपेस
मेक्सिको में सिर्फ जॉर्ज फ्लॉयड की मौत का गुस्सा नहीं है बल्कि जोवानी लोपेस के साथ हुए बर्ताव पर भी है. राजमिस्त्री का काम करने वाले लोपेस को मई में पश्चिमी प्रांत खालिस्को में मास्क नहीं पहनने के कारण गिरफ्तार कर लिया गया था. कथित तौर पर पुलिस हिंसा के कारण उनकी मौत हो गई थी. कुछ समय एक वीडियो सामने आने के बाद मेक्सिको के लोगों में आक्रोश है.
तस्वीर: picture-alliance/Zumapress
सिडनी: मूल निवासियों के खिलाफ नस्लवाद
सिडनी में प्रदर्शन की शुरुआत धुआं करने के परंपरागत महोत्सव के साथ हुई. यहां प्रदर्शन में शामिल होने वालों की एकजुटता सिर्फ जॉर्ज फ्लॉयड के साथ नहीं बल्कि देश के अबोरिजिन मूल निवासियों के साथ भी थी. वे भी पुलिस हिंसा के शिकार रहे हैं. प्रदर्शनकारियों की मांग है कि उनमें से किसी की मौत पुलिस हिरासत में नहीं होनी चाहिए.
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/I. Khan
प्रिटोरिया: मुक्का तान कर प्रदर्शन
हवा में तना हुआ मुक्का ब्लैक लाइव्स मैटर आंदोलन का प्रतीक चिह्न है. लेकिन यह प्रतीक हाल के आंदोलन से कहीं पुराना है. जब दक्षिण अफ्रीका की नस्लवादी सरकार ने फरवरी 1990 में नस्लवाद विरोधी नेता नेल्सन मंडेला को 27 साल बाद जेल से रिहा किया था, तो वे हवा में मुक्का लहराते जेल से बाहर निकले थे. अभी भी दक्षिण अफ्रीका में गोरी आबादी बेहतर स्थिति में है. रिपोर्ट: डाविड एल