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संयोग से आ गया था पृथ्वी पर सोना

९ सितम्बर २०११

अरबों साल पहले पृथ्वी पर अगर धूमकेतुओं की वर्षा नहीं हुई होती तो इंसान कभी भी सोने की उस चमक से रूबरू नहीं हो पाता जिसने न जाने कितनी सभ्यताओं के बनने और मिटने की कहानी लिखी. गुरुवार को छपी एक रिपोर्ट से ये जानकारी मिली.

तस्वीर: AP

करीब 20 करोड़ साल पहले जब ग्रहों का निर्माण हो रहा था और ब्रह्मांड में भारी उथल पुथल मची थी तब पृथ्वी पिघले खनिजों का एक पिण्ड भर थी जो ग्रहों के आकार के आकाशीय पिण्डों के टकराने के कारण पैदा हुई उष्मा से दहक रही थी. इन असाधारण टकरावों ने ही शायद चंद्रमा को उछाल कर पृथ्वी से कुछ दूर किया. इसके साथ ही अरबों टन पिघला हुआ सोना और प्लैटिनम पृथ्वी के केंद्र में समा गया और इसकी क्रोड का हिस्सा बन गया. सोना और प्लैटिनम का ये भंडार इतना विशाल था कि इससे पृथ्वी को पूरी तरह से चार मीटर मोटी चादर से ढंका जा सकता था. इसके बाद लंबे समय तक इस कीमती धातु का ये भंडार इंसान की पहुंच से दूर पृथ्वी के गर्भ में पड़ा रहा.

तस्वीर: picture-alliance/ZB

इतनी जानकारी तो सबको पहले से ही है. रहस्य यह था कि पृथ्वी की सबसे बाहरी सतह और उसके नीचे के हिस्से में सोने के अलावा दूसरे तत्व इतनी भारी मात्रा में क्यों भरे रहे. अगर पृथ्वी के शुरुआती दौर में महान पिघलन के दौरान बाहर से दूसरे तत्व नहीं आए होते तो पृथ्वी के मैन्टल यानी बाहरी परत के बाद वाले निचले हिस्से में ये कीमती धातु जितने होने चाहिए थे उसके दस गुना या फिर हजार गुना ज्यादा मौजूद थे. इसलिए यह सिद्धांत सामने आया कि सोना और दूसरे चमकीले दुर्लभ धातु बाहरी अंतरिक्ष से हमारे ग्रह पर तब आए जब घूमती और परिक्रमा करती पृथ्वी सख्त हो कर जमने लायक ठंढी हो चुकी थी.

तस्वीर: picture alliance/dpa

पर यह तो एक सिद्धांत भर है. इसकी सत्यता की जांच करने के लिए ब्रिटेन की ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मथियास विल्बोल्ड के नेतृत्व में तीन रिसर्चरों ने प्राचीन चट्टानों का अध्ययन किया. ग्रीनलैंड के चट्टान पृथ्वी का क्रोड बनते वक्त और धूमकेतुओं की बमबारी से पहले अपनी आकृति में ढल गए. आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल कर इन लोगों ने टंगस्टन के आइसोटोपिक संरचना की मापतौल की. टंगस्टन सोना दूसरे भारी और कीमती तत्वों जैसा ही एक तत्व है. पृथ्वी के क्रोड के निर्माण के दौरान ही यह तत्व भी गुरुत्वाकर्षण की वजह से केंद्र में जमा हो गया. परमाणुओं की रासायनिक संरचना एक ही रहते हुए उनमें न्यूट्रॉन की मात्रा अलग अलग हो सकती है और इसी से परमाणु का भार तय होता है. इन्हें आइसोटोप कहा जाता है. अलग अलग आइसोटोप्स उस खनिज की उत्पत्ति और आयु के बारे में जानकारी दे सकते हैं.

ग्रीनलैंड के चट्टानों के नमूनों का पृथ्वी के दूसरे हिस्से की चट्टानों से तुलना करने के बाद वैज्ञानिकों ने एक बहुत छोटे लेकिन गैरमामूली अंतर वाले एक खास आइसोटोप की बड़ी भारी मात्रा की खोज की. इसे 182डब्ल्यू नाम दिया गया. दूसरे आइसोटोप से इसका अंतर बस 10 लाख का पंद्रहवां हिस्सा था. ये अंतर इस सिद्धांत के साथ बिल्कुल मेल खाता है कि इंसान जिस सोने के लिए मरने मारने को भी तैयार हो जाता है वह प्राचीन समय में धूमकेतुओं की बमबारी से तैयार हुआ एक बाइप्रोडक्ट है, जो सौभाग्य से इतना कीमती बन गया.

विल्बोल्ड ने अपने बयान में कहा है, "हमारी खोज दिखाती है कि ज्यादातर कीमती धातुएं, जिन पर हमारी औद्योगिक प्रक्रिया निर्भर है, वह उस सौभाग्यशाली संयोग का नतीजा हैं जो अरबों अरबों टन भारी आकाशीय तत्वों की बमबारी के कारण पृथ्वी में शामिल हो गईं."

रिपोर्टः एजेंसियां/एन रंजन

संपादनः महेश झा

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