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संसद के अनचाहे रिकॉर्ड

२१ फ़रवरी २०१४

भारत में 15वीं लोकसभा के सदस्यों ने अब तक सबसे कम काम किया है. उन्होंने सबसे कम विधेयक पास किए हैं और भी बहुत कुछ नया हुआ है. चुनाव से पहले नजर डालते हैं ताजा लोकसभा में बने अजीबोगरीब रिकॉर्डों पर.

Hungama im Parlament
तस्वीर: Uni

2009 में हुए लोकसभा चुनाव के बाद 547 सांसदों को चुना गया. उन्होंने मिल कर अब तक के सभी लोकसभाओं से कम काम किया. इस लोकसभा ने वह भी देख लिया, जो पिछले 66 साल में नहीं देखा गया था. एक सांसद ने सभा के अंदर मिर्ची स्प्रे कर दिया. एक के हाथ में हंटर था तो एक चाकू लहराता दिखा.

शुक्रवार को संसद का सत्र पूरा हुआ. इसी संसद में एक रिकॉर्ड अपराध के नाम भी रहा. संसद में इस बार 162 सांसद आपराधिक पृष्ठभूमि या आपराधिक मुकदमों के साथ "लोकतंत्र के मंदिर" में आए. दिल्ली स्थित डेमोक्रैटिक रिफॉर्म्स के मुताबिक पिछली बार इनकी संख्या 128 थी. तेलंगाना मुद्दे के दौरान संसद की कार्यवाही का सीधा प्रसारण भी रोक दिया गया. इस दौरान खूब हो हल्ला हुआ, कागज फेंके गए और स्पीकर को बोलने नहीं दिया गया.

सांसदो, संभल जाओ

कांग्रेस के दिग्विजय सिंह ने 12 फरवरी को ट्वीट किया, "सांसदो, कृपया सही बर्ताव करें, नहीं तो लोकतंत्र पर सवाल उठ रहे हैं. उम्मीद करता हूं कि सांसद अच्छा बर्ताव करेंगे ताकि लोगों का लोकतंत्र से भरोसा न उठे." उन्होंने एक और ट्वीट किया, "15वीं लोकसभा ने सबसे ज्यादा घंटे नष्ट करने का रिकॉर्ड बनाया है. अगर लोगों का विश्वास लोकतंत्र से उठता है, तो कौन जिम्मेदार होगा."

फरवरी की 13 तारीख को उस वक्त अजीब स्थिति हो गई, जब तेलंगाना बिल का विरोध कर रहे सांसदों ने हंगामा खड़ा किया. एक सांसद ने सदन के अंदर पेपर स्प्रे कर दिया. घटना के बाद जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह ने ट्वीट किया, "तो 15वीं लोकसभा रिकॉर्ड बुक में दाखिल होने वाली है और जाहिर है अच्छी वजहों के लिए नहीं." इसके बाद चार सांसदों को अस्पताल में दाखिल कराना पड़ा, जबकि 16 को निलंबित कर दिया गया.

पेपर स्प्रे के बाद बाहर निकलते लोगतस्वीर: Uni

कैसा ये माहौल है

जेडीयू के प्रमुख शरद यादव का कहना है, "आम तौर पर भारत की विधानसभाओं में इस तरह का माहौल देखने को मिलता है. लेकिन संसद में पहले ऐसा नहीं हुआ था." हालांकि खुद यादव ने कभी महिला आरक्षण विधेयक को लेकर खासा हंगामा खड़ा किया है. यहां तक कि उन्होंने यह भी कहा था कि यह बिल पास हुआ तो वह जहर खा लेंगे.

पिछले पांच साल में भारतीय संसद में अलग अलग मुद्दों पर विरोध और गतिरोध सामने आया. पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च की श्रेया सिंह बताती हैं, "2009-2014 के बीच लोकसभा की 38 फीसदी कार्यवाही का वक्त जाया हो गया. भारतीय संसद की बैठक हर साल 120-140 दिनों होनी चाहिए. इस बार सिर्फ 60-70 दिन ही हो पाई." सिंह के मुताबिक, "सबसे अहम तो यह बात है कि इस दौरान सिर्फ 173 बिल ही पास हो पाए, जबकि औसतन हर लोकसभा 317 बिल पास करती है."

तंत्र है जिम्मेदार

विश्लेषकों का मानना है कि इन खामियों की वजह पूरा तंत्र है, न कि सिर्फ सांसदों को व्यवहार. इसके लिए ऐसे नियम बनाए जा सकते हैं ताकि वे एक सीमा से ज्यादा विरोध और गतिरोध पैदा ही न कर सकें. सदन के सत्र का समय सरकार तय करती है. अगर वह चाहे, तो हंगामे की हालत में किसी सत्र को बाद के लिए टाला जा सकता है. राज्यसभा सांसद एनके सिंह कहते हैं, "अगर लगातार गतिरोध की स्थिति उत्पन्न हो रही है, तो सांसदों को सोचना चाहिए कि इसे किस तरह सही ढंग से चलाया जाए."

पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के प्रमुख एमआर माधवन कहते हैं कि नियम बनाए जा सकते हैं, "किसी मुद्दे पर चर्चा होनी है तो अगर मान लीजिए कि 20 फीसदी सांसद इसके हक में हों, तो चर्चा हो जाए."

संसद के मौजूदा हाल पर खुश तो कोई नहीं है. राज्यसभा सांसद रिषांग केशिंग की उम्र 94 साल की हो गई है. उन्हें बहुत मायूसी है, "मुझे इस बात का दुख है कि संसद अब सिर्फ हल्ला करने की जगह बन गई है. ये वह संसद नहीं है, जिसे मैं जानता था."

एजेए/ओएसजे (डीपीए)

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