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संसद के गतिरोध को बिहार चुनाव में भुनाने की तैयारी

चारु कार्तिकेय
२२ सितम्बर २०२०

नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों और कई राजनीतिक दलों के विरोध के बावजूद केंद्र सरकार ने नए कानूनों का समर्थन किया है. संसद में गतिरोध का बिहार में जल्द ही होने वाले चुनावों में भी इस्तेमाल करने की कोशिश की जा रही है.

Indien Protest im Parlament
तस्वीर: Derek Obrain, MP, TMC

सोमवार को राज्य सभा के जिन आठ सांसदों को सभापति वेंकैया नायडू ने सदन से सात दिनों के लिए निलंबित किया था उन सदस्यों ने विरोध में सोमवार रात संसद के परिसर के अंदर ही बिताई. संसद परिसर के अंदर महात्मा गांधी की प्रतिमा के पास जिस मैदान में सांसद बैठे हुए हैं, वहां मंगलवार सुबह दृश्य और नाटकीय हो गया जब उप-सभापति हरिवंश वहां निलंबित सांसदों के लिए चाय लेकर हाजिर हो गए.

लेकिन निलंबित सांसदों ने उनकी चाय स्वीकार नहीं की और सरकार से कृषि बिलों को वापस लेने का आग्रह किया. रविवार को राज्य सभा में जब बिलों पर मतदान कराने की विपक्ष की मांग को ठुकरा कर बिलों को ध्वनि मत से पारित करा दिया गया था, तब हरिवंश ही सदन की अध्यक्षता कर रहे थे. सांसदों ने उन पर सरकार के इशारे पर निर्णय लेने का आरोप लगाया था. उसके बाद विपक्ष के सांसदों को हरिवंश के सामने नियम पुस्तिका फाड़ते हुए और माइकों को नुकसान पहुंचाते हुए भी देखा गया था.

सोमवार को सभापति वेंकैया नायडू ने इसकी निंदा की थी. हरिवंश द्वारा मंगलवार सुबह उन्हीं सांसदों को चाय पिलाने की कोशिश की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सराहना की. कई ट्वीटों में प्रधानमंत्री ने कहा कि जिन सांसदों ने हरिवंश को "अपमानित किया", "उन पर हमला किया" और "उनके खिलाफ धरने पर भी बैठ गए", उन्हीं लोगों को "सवेरे-सवेरे अपने घर से चाय ले जाकर" पिलाना उनकी "उदारता और महानता को दर्शाता है."

बिहार के नाम पर

फिर प्रधानमंत्री ने हरिवंश को "बिहार की धरती से प्रजातंत्र के प्रतिनिधि" बताते हुए उनको बधाई दी. बिहार में बीजेपी के नेता और उप-मुख्यमंत्री सुशील मोदी ने कहा है कि राज्य सभा में "हरिवंश के साथ हुई घटना" से बिहार के हर व्यक्ति को और "बिहार के गौरव" को चोट पहुंची है. 

स्पष्ट है कि रविवार की घटना को बिहार विधान सभा चुनावों से जोड़ने की कोशिश की जा रही है, ताकि उसे बिहार के गौरव पर हमला बता कर बिहार की जनता से विपक्ष के खिलाफ वोट मांगा जा सके. उधर, चाय का प्रस्ताव ठुकराए जाने के तुरंत बाद ही हरिवंश ने राज्य सभा के सभापति को एक पत्र लिख कर कहा कि वो रविवार की घटना की वजह से "गहरी आत्मपीड़ा, आत्मतनाव, मानसिक वेदना में" हैं और संबंधित सांसदों "के अंदर आत्मशुद्धि का भाव जागृत" करने के लिए वो एक दिन के उपवास पर बैठना चाहते हैं.

यही नहीं, उन्होंने इस उपवास के लिए 23 सितंबर की तारीख चुनी है जो राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की जन्मतिथि है. हरिवंश के शब्दों में, दिनकर भी "बिहार की धरती पर पैदा हुए" थे और "दो बार राज्य सभा के सदस्य" भी रहे.

उधर, केंद्र सरकार विधेयकों के समर्थन से जरा भी पीछे नहीं हट रही है. एक अभूतपूर्व कदम के तहत केंद्र सरकार ने लाखों रुपयों के खर्च पर देश के प्रमुख अखबारों में इन विधेयकों के समर्थन में पूरे पन्ने का विज्ञापन दिया है. 

इन विज्ञापनों में विधेयकों के विरोधियों द्वारा कही गई बातों को "झूठ" बताया गया है और सरकार की तरफ से मुख्या बिंदुओं पर सफाई पेश की गई है. इसी बीच राज्य सभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने घोषणा की है कि जब तक आठों सांसदों का निलंबन वापस नहीं लिया जाता और किसानों को इन विधेयकों की वजह से होने वाले नुकसान से बचाया नहीं जाता, तब तक विपक्ष राज्य सभा की कार्रवाई में हिस्सा नहीं लेगा. इसके बाद कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और वामपंथी पार्टियां राज्य सभा से बाहर चली गईं, लेकिन इसके बाद भी सदन में बचे आखिरी कृषि विधेयक पर चर्चा चलती रही. 

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