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संसद दूसरी बार कोई जज हटाने को तैयार

१० नवम्बर २०१०

कलकत्ता हाई कोर्ट के जज सौमित्र सेन के खिलाफ महाअभियोग चलाने को मंजूरी मिल गई है. राज्यसभा अध्यक्ष हामिद अंसारी ने जांच के लिए जो समिति गठित की थी उसने सेन को वित्तीय गड़बड़ियों का दोषी पाया है.

तस्वीर: UNI

कमेटी ने पाया है कि जस्टिस सौमित्र सेन ने धन का दुरुपयोग किया और गलतबयानी की. तीन सदस्यों की इस कमेटी की रिपोर्ट को संसद में पेश कर दिया गया है. इसमें कहा गया है कि जस्टिस सेन भारतीय संविधान की धारा 217(1)(बी) के साथ पढ़े जाने पर 124(4)(बी) के तहत दुराचार के दोषी हैं.

इन धाराओं में कहा गया है हाई कोर्ट के किसी जज को तब तक पद से नहीं हटाया जा सकता जब तक कि उसका दुराचार साबित नहीं हो जाता. इस कमेटी के अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट के जज बी सुदर्शन रेड्डी हैं. कमेटी की रिपोर्ट कहती है कि जस्टिस सेन पर लगे धन के गलत इस्तेमाल और तथ्यों को गलत तरीके से पेश करने के आरोप साबित होते हैं. यहां साबित होना तभी माना जा सकता है जब तक जांच समिति की सिफारिश पर संसद में बहुमत उसे मान न ले.

कमेटी की रिपोर्ट के बाद संसद में जस्टिस सेन पर महाभियोग चलाने का रास्ता साफ हो गया है. उन्हें सामान की खरीद में 33 लाख 22 हजार 800 रुपये लेने और सेविंग्स अकाउंट में रखने का दोषी पाया गया है. इस बारे में उन्होंने हाई कोर्ट को गलत जानकारी भी दी.

जज इंक्वॉयरी एक्ट के मुताबिक अब राज्यसभा में एक प्रस्ताव लाया जाएगा और उस पर बहस होगी. सेन को अपने वकील के जरिए सफाई पेश करने का मौका भी दिया जाएगा. भारत के इतिहास में यह सिर्फ दूसरा मामला है जब संसद ने किसी जज को हटाने के कदम उठाए हैं. पहला मामला सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस वी रामास्वामी का था. 1991 में उनके खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव पास नहीं हो पाया था.

रिपोर्टः एजेंसियां/वी कुमार

संपादनः महेश झा

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