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संस्कृत और भारतीय संस्कृति मेरी पहचान

विनोद चड्ढा१९ नवम्बर २०१४

भारत सरकार का कहना है कि स्कूलों में तीसरी भाषा विदेशी ना हो कर संस्कृत होनी चाहिए. इस पर हमें पाठकों ने समर्थन और विरोध दोनों में विचार लिख भेजे हैं. ...

Indian Institutes of Technology in Kota
तस्वीर: AP

आपका मंथन कार्यक्रम दूरदर्शन को एक अलग ही पहचान देता है क्योंकि इससे दुनिया में क्या कुछ नया हो रहा है, का पता चलता है. हाल ही में आपके इस शो में कार के माध्यम से कैसे बिजली तैयार की जा सकती है, वीडियो देख कर बहुत अच्छा लगा और इससे मुझे एक नया विचार आया कि भारत में भी रेलगाडियों के जरिए बिजली तैयार की जा सकती है. यदि रेल के हर डिब्बे के पहियों के बीच जेनरेटर फिट करके बिजली पैदा की जाए तो भारत में इसकी कमी नहीं रहेगी. निलेश गौड़

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आज के इतिहास के अंतर्गत मिकी माउस के रोचक इतिहास के बारे में जानकर बहुत ही अच्छा लगा. कई दशकों का सफर तय कर चुके मिकी माउस के प्रति लोगों का आकर्षण आज भी कम नहीं हुई है, कम से कम मेरा तो बिल्कुल ही नहीं. बचपन के दिनों में जब पहली बार मिकी माउस को टीवी पर कार्टून सीरियल में देखा तो मन उसी का होकर रह गया. स्कूल के दिनों में बनाए मिकी के कई चित्र आज भी मेरे पास सुरक्षित हैं. यह मिकी माउस का आकर्षण ही है कि बचपन बीतने के बाद भी अब तक बना हुआ है. आबिद अली मंसूरी, बरेली, उत्तर प्रदेश

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संस्कृत भारत की प्राचीन भाषा है, अगर हम अपने इतिहास को जानना या समझना चाहते हैं तो इसका ज्ञान जरूरी है. हमारे चारों वेदों में वह है जिसकी आज खोज कर कॉपीराइट अमेरिका जैसे देश ले रहे हैं. अगर हम अपनी भाषा का ज्ञान प्राप्त कर अपने पूर्वजों के ज्ञान का सही प्रयोग कर पाए तो ही इस फैसले का सही मायने में कोई फायदा होगा. अब तो नासा भी कंप्यूटर के लिए संस्कृत का उपयोग कर रहा है. तो हर बात को धर्म से न जोड़ कर देश से जोड़े तो अच्छा होगा. सोनिया जिंदल, बरनाला

इसी विषय पर बहुत सारे मित्रों ने अपने तरह तरह के विचार दिए हैं जैसे कीः
मोहम्मद आरिफ कहते हैं "जर्मन भाषा सीखने से कुछ फायदा है. कहीं तो काम आ सकती है परंतु संस्कृत तो कहीं काम नहीं आती है और न कहीं बोली जाती है. जर्मन भाषा को बंद करना ठीक नहीं है.”

कृष्णा शर्मा कहते हैं "जिसे संस्कृत और संस्कृति की जानकारी नहीं है वह हिंदुस्तानी नहीं. जो देश अपनी संस्कृति पर अभिमान नहीं करता, दुनिया के किसी कोने में चला जाए, उसका कोई सम्मान नहीं करता."

शलभ जोहरी लिखते हैं "जर्मन भाषा को बंद नहीं किया गया है पर सबसे पहले हमें अपनी भाषा को सीखना चाहिए न की किसी विदेशी भाषा को."

स्वाति भरद्वाज कहती हैं "हमारा इतिहास संस्कृत से ही है और हमारी पहचान संस्कृत है. आज आप गीता का विस्तार से अध्ययन नहीं कर सकते क्योंकि आप संस्कृत नहीं जानते. वेद पुराण सब संस्कृत में लिखे गए थे. आज लोग उनका अपने हिसाब से ट्रांसलेशन करके बहका रहे हैं. हमारी ब्रह्म वाणी संस्कृत है अगर हम इसे ही भूल जायेंगे तो हमारे इतिहास दबे के दबे रह जायेंगे. आप संस्कृत का विरोध कर रहे हैं पर आप एक बात बताये आप जर्मन सीख के क्या बनना चाहेंगे. कौन सा इतिहास उजागर करेंगे. आप मीडिया है तो मीडिया की तरह सोचिये. अच्छी चीजें सामने लाए. इस तरह की न्यूज से आप किस का विरोध कर रहे हैं यह सोचिए पहले, या किसका साथ दे रहे हैं, विरोध कर रहे हैं... हमारे आत्म सम्मान का, हमारे इतिहास का, हमारे अस्तित्व का, हमारे वजूद का. अगर आप का विरोध हिन्दी या संस्कृत के बीच होता तो भी कोई बड़ी बात नहीं थी , परन्तु जर्मन भाषा का, समझ नहीं आता. या फिर आप मोदी के विरुद्ध हो इसलिए अच्छी चीजों को भी गलत बना रहे हो. कभी तो अच्छाई को बढ़ावा दिया करो."

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