भारत सरकार का कहना है कि स्कूलों में तीसरी भाषा विदेशी ना हो कर संस्कृत होनी चाहिए. इस पर हमें पाठकों ने समर्थन और विरोध दोनों में विचार लिख भेजे हैं. ...
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आपका मंथन कार्यक्रम दूरदर्शन को एक अलग ही पहचान देता है क्योंकि इससे दुनिया में क्या कुछ नया हो रहा है, का पता चलता है. हाल ही में आपके इस शो में कार के माध्यम से कैसे बिजली तैयार की जा सकती है, वीडियो देख कर बहुत अच्छा लगा और इससे मुझे एक नया विचार आया कि भारत में भी रेलगाडियों के जरिए बिजली तैयार की जा सकती है. यदि रेल के हर डिब्बे के पहियों के बीच जेनरेटर फिट करके बिजली पैदा की जाए तो भारत में इसकी कमी नहीं रहेगी. निलेशगौड़
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आज के इतिहास के अंतर्गत मिकी माउस के रोचक इतिहास के बारे में जानकर बहुत ही अच्छा लगा. कई दशकों का सफर तय कर चुके मिकी माउस के प्रति लोगों का आकर्षण आज भी कम नहीं हुई है, कम से कम मेरा तो बिल्कुल ही नहीं. बचपन के दिनों में जब पहली बार मिकी माउस को टीवी पर कार्टून सीरियल में देखा तो मन उसी का होकर रह गया. स्कूल के दिनों में बनाए मिकी के कई चित्र आज भी मेरे पास सुरक्षित हैं. यह मिकी माउस का आकर्षण ही है कि बचपन बीतने के बाद भी अब तक बना हुआ है. आबिदअलीमंसूरी, बरेली, उत्तरप्रदेश
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संस्कृत भारत की प्राचीन भाषा है, अगर हम अपने इतिहास को जानना या समझना चाहते हैं तो इसका ज्ञान जरूरी है. हमारे चारों वेदों में वह है जिसकी आज खोज कर कॉपीराइट अमेरिका जैसे देश ले रहे हैं. अगर हम अपनी भाषा का ज्ञान प्राप्त कर अपने पूर्वजों के ज्ञान का सही प्रयोग कर पाए तो ही इस फैसले का सही मायने में कोई फायदा होगा. अब तो नासा भी कंप्यूटर के लिए संस्कृत का उपयोग कर रहा है. तो हर बात को धर्म से न जोड़ कर देश से जोड़े तो अच्छा होगा. सोनियाजिंदल, बरनाला
इसी विषय पर बहुत सारे मित्रों ने अपने तरह तरह के विचार दिए हैं जैसे कीः मोहम्मदआरिफ कहते हैं "जर्मन भाषा सीखने से कुछ फायदा है. कहीं तो काम आ सकती है परंतु संस्कृत तो कहीं काम नहीं आती है और न कहीं बोली जाती है. जर्मन भाषा को बंद करना ठीक नहीं है.”
कृष्णाशर्मा कहते हैं "जिसे संस्कृत और संस्कृति की जानकारी नहीं है वह हिंदुस्तानी नहीं. जो देश अपनी संस्कृति पर अभिमान नहीं करता, दुनिया के किसी कोने में चला जाए, उसका कोई सम्मान नहीं करता."
शलभजोहरी लिखते हैं "जर्मन भाषा को बंद नहीं किया गया है पर सबसे पहले हमें अपनी भाषा को सीखना चाहिए न की किसी विदेशी भाषा को."
स्वातिभरद्वाज कहती हैं "हमारा इतिहास संस्कृत से ही है और हमारी पहचान संस्कृत है. आज आप गीता का विस्तार से अध्ययन नहीं कर सकते क्योंकि आप संस्कृत नहीं जानते. वेद पुराण सब संस्कृत में लिखे गए थे. आज लोग उनका अपने हिसाब से ट्रांसलेशन करके बहका रहे हैं. हमारी ब्रह्म वाणी संस्कृत है अगर हम इसे ही भूल जायेंगे तो हमारे इतिहास दबे के दबे रह जायेंगे. आप संस्कृत का विरोध कर रहे हैं पर आप एक बात बताये आप जर्मन सीख के क्या बनना चाहेंगे. कौन सा इतिहास उजागर करेंगे. आप मीडिया है तो मीडिया की तरह सोचिये. अच्छी चीजें सामने लाए. इस तरह की न्यूज से आप किस का विरोध कर रहे हैं यह सोचिए पहले, या किसका साथ दे रहे हैं, विरोध कर रहे हैं... हमारे आत्म सम्मान का, हमारे इतिहास का, हमारे अस्तित्व का, हमारे वजूद का. अगर आप का विरोध हिन्दी या संस्कृत के बीच होता तो भी कोई बड़ी बात नहीं थी , परन्तु जर्मन भाषा का, समझ नहीं आता. या फिर आप मोदी के विरुद्ध हो इसलिए अच्छी चीजों को भी गलत बना रहे हो. कभी तो अच्छाई को बढ़ावा दिया करो."
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भाषा सीखते बच्चे
पहली कक्षा में कैसे सीखते हैं दुनिया भर के बच्चे अक्षर लिखना और किताबें पढ़ना. देखें तस्वीरों में
तस्वीर: Fotolia/Woodapple
चीनः जितनी जल्दी उतना अच्छा
चीन में तीन साल के बच्चे पहली बार अक्षर देखते हैं और छह साल की उम्र से लिखना शुरू करते हैं. पांचवी कक्षा तक उन्हें 10,000 अक्षर सीखने होते हैं. कड़ी मेहनत का काम. क्योंकि चीनी अक्षर किसी नियम पर नहीं बने हैं. उन्हें बस वैसा का वैसा याद करना पड़ता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
जापानः स्कूल खत्म होने तक
जापान के स्कूली बच्चों के लिए लिखना सीखने की प्रक्रिया पहली कक्षा में खत्म नहीं होती. नवीं कक्षा तक हर साल नए अक्षर सिखाए जाते हैं. मूल जापानी शब्द लिखना सीखने के लिए उन्हें 2100 अक्षर सीखने पड़ते हैं. रोज अभ्यास जरूरी है नहीं तो याद होना मुश्किल.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
मिस्रः एक नई भाषा
मिस्र के बच्चे जब लिखना सीखते हैं तो इसके लिए उन्हें नई भाषा सीखनी पड़ती है. क्योंकि इलाकों में बोली जाने वाली बोली मानक अरबी से बहुत अलग है. सरकारी स्कूलों में हर कक्षा में करीब 80 बच्चे होते हैं, इसलिए हर बच्चा उतने अच्छे से सीख नहीं पाता. कुछ बच्चे तो अच्छे से लिखना और पढ़ना कभी नहीं सीख पाते.
तस्वीर: Fotolia/Ivan Montero
मोरक्कोः सिर्फ अरबी नहीं
कुछ समय पहले तक मोरक्को में बच्चे सिर्फ अरबी भाषा सीखते थे. 2004 से वहां पहली कक्षा में बैर्बर भाषा तामाजिघ्थ सिखाई जाने लगी है. इस कारण बैर्बर इलाके में निरक्षर लोगों की संख्या कम हुई है. 2011 से यह भाषा आधिकारिक बना दी गई है.
तस्वीर: picture alliance/Ronald Wittek
पैराग्वेः आदिवासियों की भाषा
लैटिन अमेरिका में आदिवासियों की भाषा को आगे बढ़ाया जा रहा है. पैराग्वे के बच्चे स्पैनिश तो सीखते ही हैं साथ गुआरानी भी सीखते हैं. लेकिन मुख्य भाषा के तौर पर एक ही चुनी जा सकती है. किसी जमाने में सुंदर लिखना ही सबसे अच्छा था लेकिन आज बच्चों को प्रिंट वाले अक्षर भी सीखने पड़ते हैं.
तस्वीर: Getty Images
कनाडाः नियमों पर नहीं
कनाडा में हर जगह इंग्लिश ही नहीं है यहां एक भाषा इनूक्टिटूट भी है. यह उत्तरी नूनावुट में एस्किमो लोगों की भाषा है. सही शब्द लिखना इसमें कोई मुश्किल नहीं. क्षेत्रीय बोलियों को समझना भी आसान है. जैसा बोला जाता है वैसा ही लिखा जाता है.
तस्वीर: picture-alliance/Ton Koene
इस्राएलः मदद की जरूरत
इस्राएली बच्चों को हिब्रू सीखना आसान बनाने के लिए अक्षरों की मदद ली जाती है. पहली कक्षा के बच्चों को व्यंजन के साथ कौन सा स्वर लगेगा बताने के लिए अलग अलग स्वरों की तस्वीर बना कर इन्हें अक्षरों के रूप में काट लिया जाता है. फिर इन्हें व्यंजनों के साथ जोड़ना बताया जाता है. लेकिन यह सब सिर्फ पहली कक्षा तक.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/dpaweb
ग्रीकः कई स्वर
कौन सा आई लिखना है... ग्रीस में पहली क्लास के बच्चे अक्सर ये सवाल पूछते हैं. आई स्वर के लिए ग्रीक में छह अलग अलग वर्ण हैं. ई और ओ भी दो तरीके से लिखे जाते हैं. इसके लिए कोई नियम नहीं हैं. इन्हें रटना ही पड़ता है. इसलिए शुरुआती कक्षाओं में शुद्ध लिखना अलग से सिखाया जाता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
सर्बियाः एक भाषा, दो लिपियां
सर्बियाई भाषा किरील लिपी में लिखी जा सकती है और लैटिन में भी. बच्चों को दोनों ही सीखनी पड़ती हैं. पहली कक्षा में बच्चे किरील लिपी सीखते हैं और दूसरी कक्षा में लैटिन. कुछ समय बाद बच्चे खुद तय करते हैं कि वह कौन सी लिपी में लिखना चाहते हैं.
तस्वीर: DW/D. Gruhonjic
भारतः कई भाषाएं कई लिपियां
भारत की राष्ट्रीय भाषा भले ही हिन्दी हो लेकिन हर राज्य की अपनी अलग भाषा है और अलग लिपी भी. इसलिए पहली कक्षा में बच्चे को हिन्दी, इंग्लिश और राज्य की भाषा सिखाई जाती है. ये जरूरी नहीं कि बच्चे की अपनी मातृभाषा भी इन तीनों में से एक हो. भारत में 22 आधिकारिक भाषाएं हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
पाकिस्तानः दाएं से या बाएं से
किस तरफ से लिखना है, दाएं से या बाएं से. पाकिस्तान में बच्चे दोनों तरफ से लिखना सीखते हैं. क्योंकि पहली कक्षा में उर्दू और इंग्लिश दोनों सिखाई जाती हैं. बच्चों को अंग्रेजी लिखने में परेशानी आती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
ईरानः फारसी
ईरान में कई भाषाएं बोली जाती हैं. बच्चे स्कूल में फारसी लिखना सीखते हैं. फारसी मातृभाषा होने पर भी इसे लिखना मुश्किल हो सकता है. इसे इंडो जर्मन भाषा कहा जाता है. सबसे पहले बच्चे सीधी रेखा, वक्र रेखा और तिरछी लकीरें खींचना सीखते हैं इसके बाद शुरू होता है अक्षर ज्ञान.
तस्वीर: FARS
जर्मनीः सुन कर लिखें
20 साल पहले जर्मनी में सुन कर लिखने की परंपरा कई स्कूलों में शुरू हुई थी जिस पर काफी बहस है. पहली कक्षा में अक्षरों के साथ एक तस्वीर होती है, जो उस अक्षर का उच्चारण बताती है, ठीक अंग्रेजी के ए फॉर एप्पल जैसी... जर्मन में एफ तो उच्चारण में एफ होता है लेकिन वी का उच्चारण फ जैसा और जे का य जैसा.. इस कारण शब्दों का उच्चारण भी बदल जाता है, हिज्जे भले ही अंग्रेजी जैसे लगे.
तस्वीर: Fotolia/Woodapple
पोलैंडः शुरू से शुरू
पोलैंड में पहली कक्षा से नहीं बल्कि शून्य कक्षा से स्कूल शुरू होता है, यानी एक तरह का किंडरगार्टन. इस क्लास में जाना बच्चों के लिए अनिवार्य है. यहां ये खेल खेल में अक्षरों से पहचान करते हैं. औपचारिक तौर पर लिखने की शुरुआत पहली कक्षा में होती है.