सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस ने कहा है कि यह महिलाओं को तय करना है कि उन्हें अबाया या नकाब पहनना है या नहीं. सऊदी अरब में महिला अधिकारों को लेकर उनका यह बयान एक बड़े बदलाव की तरफ इशारा करता है.
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बेहद रुढ़िवादी समझे जाने वाले सऊदी अरब में महिलाओं पर कई तरह की पाबंदियां रही हैं. उनके पहनावे और उनके व्यवहार पर सख्त नियम लागू होते हैं. लेकिन हाल में वहां महिलाओं को कई तरह की रियायतें दी गई हैं. अमेरिकी टीवी चैनल सीबीएस के साथ इंटरव्यू में क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने कहा कि महिलाएं यह तय करने में सक्षम होनी चाहिए कि उन्हें क्या पहनना है.
सीबीएस के "60 मिनट्स" शो में सऊदी क्राउन प्रिंस ने कहा, "कानून बहुत स्पष्ट है और शरिया में लिखा है कि महिलाओं को शालीन और सम्मानजनक कपड़े पहनने चाहिए, पुरूषों की तरह. इसमें कहीं यह नहीं कहा गया है कि उन्हें काला अबाया (सर से पैर तक शरीर को ढंकने वाले कपड़ा) या काला नकाब पहनना चाहिए."
प्रिंस मोहम्मद के अमेरिकी दौरे से पहले यह इंटरव्यू प्रसारित किया गया है. सऊदी क्राउन प्रिंस मंगलवार को अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप से मुलाकात करने वाले हैं.
बुरका, हिजाब या नकाब: फर्क क्या है?
बुरका, हिजाब या नकाब. ये शब्द तो आपने कई बार सुने होंगे. लेकिन क्या आप शायला, अल अमीरा या फिर चिमार और चादर के बारे में भी जानते हैं. चलिए जानते हैं कि इन सब में क्या फर्क है.
मुस्लिम पहनावा
सार्वजनिक जगहों पर बुर्का पहनने पर प्रतिबंध लगाने वाले देशों में सबसे ताजा नाम ऑस्ट्रिया का है. बुर्के के अलावा मुस्लिम महिलाओं के कई और कपड़े भी अकसर चर्चा का विषय रहते हैं.
शायला
शायला एक चोकोर स्कार्फ होता है जिससे सिर और बालों को ढंका जाता है. इसके दोनों सिरे कंधों पर लटके रहते हैं. आम तौर पर इसमें गला दिखता रहता है. खाड़ी देशों में शायला बहुत लोकप्रिय है.
हिजाब
हिजाब में बाल, कान, गला और छाती को कवर किया जाता है. इसमें कंधों का कुछ हिस्सा भी ढंका होता है, लेकिन चेहरा दिखता है. हिजाब अलग अलग रंग का हो सकता है. दुनिया भर में मुस्लिम महिलाएं हिजाब पहनती हैं.
अल अमीरा
अल अमीरा एक डबल स्कार्फ होता है. इसके एक हिस्सा से सिर को पूरी तरह कवर किया जाता है जबकि दूसरा हिस्सा उसके बाद पहनना होता है, जो सिर से लेकर कंधों को ढंकते हुए छाती के आधे हिस्से तक आता है. अरब देशों में यह काफी लोकप्रिय है.
चिमार
यह भी हेड स्कार्फ से जुडा हुआ एक दूसरा स्कार्फ होता है जो काफी लंबा होता है. इसमें चेहरा दिखता रहता है, लेकिन सिर, कंधें, छाती और आधी बाहों तक शरीर पूरी तरह ढंका हुआ होता है.
चादर
जैसा कि नाम से ही जाहिर है चादर एक बड़ा कपड़ा होता है जिसके जरिए चेहरे को छोड़ कर शरीर के पूरे हिस्से को ढंका जा सकता है. ईरान में यह खासा लोकप्रिय है. इसमें भी सिर पर अलग से स्कार्फ पहना जाता है.
नकाब
नकाब में पूरे चेहरे को ढंका जाता है. सिर्फ आंखें ही दिखती हैं. अकसर लंबे काले गाउन के साथ नकाब पहना जाता है. नकाब पहनने वाली महिलाएं ज्यादातर उत्तरी अफ्रीका और मध्य पूर्व में दिखायी देती हैं.
बुरका
बुरके में मुस्लिम महिलाओं का पूरा शरीर ढंका होता है. आंखों के लिए बस एक जालीनुमा कपड़ा होता है. कई देशों ने सार्वजनिक जगहों पर बुरका पहनने पर प्रतिबंध लगाया है जिसका मुस्लिम समुदाय में विरोध होता रहा है.
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हालांकि प्रिंस मोहम्मद का बयान सऊदी अरब में महिला अधिकारों को और बढ़ावा देने की तरफ इशारा करता है. लेकिन उन्होंने जिस तरह "शालीन और सम्मानजक कपड़ों" पर जोर दिया है, उससे पता चलता है कि सऊदी महिलाओं को अब भी पूरी तरह अपनी पसंद के कपड़े पहनने की आजादी नहीं होगी.
सऊदी अरब में शरिया कानून को लागू करने का कोई लिखित कानून नहीं है. लेकिन न्यायपालिका और पुलिस ने पहनावे को लेकर कड़े नियम लागू किए हैं. इनके तहत महिलाओं को अबाया पहनना और सार्वजनिक जगहों पर अपना चेहरा और बाल ढंकने जरूरी है.
अपने पिता शाह सलमान के बाद सऊदी गद्दी के वारिस 32 वर्षीय प्रिंस मोहम्मद ने सऊदी अरब में कई बड़े बदलाव किए हैं. इनमें महिलाओं को पुरूषों के साथ बैठ कर स्टेडियम में मैच देखने की अनुमति, कार चलाने की अनुमति दी गई है इसके साथ ही अब सऊदी अरब में सिनेमा दिखाने को भी मंजूरी मिल गई है. लेकिन अब भी सऊदी महिलाएं कई बुनियादी हकों से वंचित हैं, खासकर उनके जुड़ा कोई भी अहम फैसला उनका कोई पुरूष सरपरस्त ही ले सकता है, जो उनका पति, पिता या भाई हो सकता है.
एके/एनआर (रॉयटर्स)
इन हकों के लिए अब भी तरस रही हैं सऊदी महिलाएं
सऊदी अरब में लंबी जद्दोजहद के बाद महिलाओं को ड्राइविंग का अधिकार तो मिल गया है. लेकिन कई बुनियादी हकों के लिए वे अब भी जूझ रही हैं.
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पुरुषों के बगैर नहीं
सऊदी अरब में औरतें किसी मर्द के बगैर घर में भी नहीं रह सकती हैं. अगर घर के मर्द नहीं हैं तो गार्ड का होना जरूरी है. बाहर जाने के लिए घर के किसी मर्द का साथ होना जरूरी है, फिर चाहे डॉक्टर के यहां जाना हो या खरीदारी करने.
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फैशन और मेकअप
देश भर में महिलाओं को घर से बाहर निकलने के लिए कपड़ों के तौर तरीकों के कुछ खास नियमों का पालन करना होता है. बाहर निकलने वाले कपड़े तंग नहीं होने चाहिए. पूरा शरीर सिर से पांव तक ढका होना चाहिए, जिसके लिए बुर्के को उपयुक्त माना जाता है. हालांकि चेहरे को ढकने के नियम नहीं हैं लेकिन इसकी मांग उठती रहती है. महिलाओं को बहुत ज्यादा मेकअप होने पर भी टोका जाता है.
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मर्दों से संपर्क
ऐसी महिला और पुरुष का साथ होना जिनके बीच खून का संबंध नहीं है, अच्छा नहीं माना जाता. डेली टेलीग्राफ के मुताबिक सामाजिक स्थलों पर महिलाओं और पुरुषों के लिए प्रवेश द्वार भी अलग अलग होते हैं. सामाजिक स्थलों जैसे पार्कों, समुद्र किनारे और यातायात के दौरान भी महिलाओं और पुरुषों की अलग अलग व्यवस्था होती है. अगर उन्हें अनुमति के बगैर साथ पाया गया तो भारी हर्जाना देना पड़ सकता है.
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रोजगार
सऊदी सरकार चाहती है कि महिलाएं कामकाजी बनें. कई सऊदी महिलाएं रिटेल सेक्टर के अलावा ट्रैफिक कंट्रोल और इमरजेंसी कॉल सेंटर में नौकरी कर रही हैं. लेकिन उच्च पदों पर महिलाएं ना के बराबर हैं और दफ्तर में उनके लिए खास सुविधाएं भी नहीं है.
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आधी गवाही
सऊदी अरब में महिलाएं अदालत में जाकर गवाही दे सकती हैं, लेकिन कुछ मामलों में उनकी गवाही को पुरुषों के मुकाबले आधा ही माना जाता है. सऊदी अरब में पहली बार 2013 में एक महिला वकील को प्रैक्टिस करने का लाइसेंस मिला था.
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खेलकूद में
सऊदी अरब में लोगों के लिए यह स्वीकारना मुश्किल है कि महिलाएं भी खेलकूद में हिस्सा ले सकती हैं. जब सऊदी अरब ने 2012 में पहली बार महिला एथलीट्स को लंदन भेजा तो कट्टरपंथी नेताओं ने उन्हें "यौनकर्मी" कह कर पुकारा. महिलाओं के कसरत करने को भी कई लोग अच्छा नहीं मानते हैं. रियो ओलंपिक में सऊदी अरब ने चार महिला खिलाड़ियों को भेजा था.
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संपत्ति खरीदने का हक
ऐसी औपचारिक बंदिश तो नहीं है जो सऊदी अरब में महिलाओं को संपत्ति खरीदने या किराये पर लेने से रोकती हो, लेकिन मानवाधिकार समूहों का कहना है कि किसी पुरुष रिश्तेदार के बिना महिलाओं के लिए ऐसा करना खासा मुश्किल काम है.