भारत समेत दुनिया भर के मुसलमानों के लिए सऊदी अरब देश का खास महत्व है. फिर लखनऊ के मुसलमान साल दर साल उसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन किस बात पर करते हैं, जानिए.
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पैगंबर मोहम्मद का वहां जन्म हुआ, इस्लाम धर्म वहीं से फैला, काबा वहीं मौजूद है, इस्लाम के तमाम सहाबा (पैगंबर के साथी) वहीं हुए और हर मुसलमान की चाहत रहती है कि जीवन में एक बार वो सऊदी अरब जाकर हज कर आए. यही नहीं, भारत के तमाम मुसलमान अपनी रोजी के लिए वहां नौकरी भी करते हैं.
लेकिन उत्तर प्रदेश की राजधानी में मुसलमानों का एक बड़ा हिस्सा सऊदी अरब का मुखर विरोध करता है. विरोध भी ऐसा जबरदस्त कि धरना, प्रदर्शन, जुलूस तक सड़कों पर निकालते हैं. ऐसा बीते कई सालों से चल रहा है जब लखनऊ की सड़कों पर मुसलमान 'सऊदी अरब मुर्दाबाद' के नारे लगाते हुए निकलते हैं. वैसे ये प्रदर्शन साल भर जब तब होते रहते हैं. इनकी अगुवाई लखनऊ के शिया मुसलमान करते हैं. दावा किया जा रहा है कि अब इसमें धीरे धीरे सूफी मुसलमान भी जुड़ने लगे हैं.
किस किस बात पर प्रदर्शन
हर साल ईद के आठवें दिन एक बहुत बड़ा प्रदर्शन सऊदी अरब के खिलाफ होता है. इसमें मुद्दा रहता है मदीना मुनव्वरा में पैगंबर की बेटी हजरत फातिमा समेत तमाम इमामों की कब्र को ध्वस्त करने का विरोध. दावा है कि ये तमाम कब्रें जन्नतुल बकी में मौजूद थीं जिसे सऊदी सरकार ने मिट्टी में मिला दिया. इस बार भी ये प्रदर्शन जून में होगा.
इस सालाना प्रदर्शन का नेतृत्व आल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना यासूब करते हैं. यासूब बताते हैं, "हमारा विरोध तब तक चलता रहेगा जब तक तमाम रोजे दोबारा नहीं बनाए जाते. हम सऊदी सरकार को इसका दोषी मानते हैं. हम उसके खिलाफ सड़क पर उतरते हैं.” ये प्रदर्शन हर साल लखनऊ में शहीद स्मारक पर होता है. इस प्रदर्शन का असर ये हुआ कि अब कई जगह ऐसे प्रदर्शन होने लगे.
शिया मुसलमानों के अलावा अब सूफी भी जुड़ने लगे हैं ऐसे विरोध प्रदर्शनों से.तस्वीर: DW/F. Fareed
इसके अलावा इसी मुद्दे पर लखनऊ की आसफी मस्जिद में भी उसी दौरान सऊदी अरब के खिलाफ प्रदर्शन होता है. स्थानीय निवासी काजिम रजा के अनुसार सऊदी सरकार ने पैगंबर साहब की इकलौती बेटी फातिमा जहरा की कब्र के साथ अन्य इमामों और अवतारों की कब्रों को ध्वस्त किए जाने के सऊदी के कदम के खिलाफ हर साल प्रदर्शन होता है और पुनर्निर्माण की मांग की जाती है.
हर साल इस्लामी कैलेंडर के सफर के महीने के पहले इतवार को ठाकुरगंज के इमामबाड़ा झाऊलाल में भी सऊदी अरब के खिलाफ प्रदर्शन होता है. अब शिया समुदाय सीधे सऊदी अरब पर आरोप लगाता है कि वहां पर बहुत जुल्म हो रहे हैं. हाल में जब सऊदी अरब ने लगभग 30 लोगों को मौत की सजा दी, तो तमाम शिया सड़क पर उतरे. वक्फ बचाओ आंदोलन के सदर शमील शम्सी कहते हैं, "सऊदी अरब एक जालिम सरकार है. हर एक पर जुल्म कर रही है चाहे वो शिया हो या पत्रकार. हमने 30 से अधिक लोगों के कत्ल पर प्रदर्शन किया.”
रमजान के महीने में
इसके अलावा हर साल अलविदा जुमा (रमजान के महीने का आखिरी जुमा) में नमाज के बाद कुद्स दिवस (फलस्तीन के समर्थन में) मनाया जाता है. इसमें वैसे तो विरोध इस्राएल का होता है लेकिन नारे सऊदी अरब के भी खिलाफ लगते हैं. शिया समुदाय का मानना है कि सऊदी अरब भी अप्रत्यक्ष रूप से अमेरिका और इस्राएल का समर्थन करता है.
इन सबके अलावा जब तब कोई ना कोई प्रदर्शन सऊदी अरब के खिलाफ होता रहता हैं. साल 2016 में सऊदी अरब ने धर्मगुरु शेख बाकिर उन निम्र को फांसी दे दी थी. उसके बाद कई दिन तक लखनऊ की सड़कों पर प्रदर्शन चलता रहा. हाल में जब यमन पर सऊदी अरब का हमला हुआ तब भी प्रदर्शन हुआ और बहरीन के मामले पर सऊदी के विरोध में शिया मुसलमान सड़कों पर उतरे. शम्सी कहते हैं, "दुनिया भर के मुसलमान समझ गए हैं कि सऊदी अरब की हुकूमत एक बकवास से ज्यादा कुछ नहीं है. इनको हरम शरीफ की जिम्मेदारी नहीं देनी चाहिए. लेकिन कुछ लोग अब भी जबान नहीं खोलते क्यूंकि वो जानते हैं कि इससे उनके मदरसों की फंडिंग पर असर पड़ेगा और ये भी डर है कि शिया मजबूत होंगे.” शम्सी अपने स्तर से सऊदी अरब के खिलाफ कई प्रदर्शन करते रहते हैं.
सऊदी अरब और लखनऊ कनेक्शन
लखनऊ वैसे सऊदी अरब से काफी हद तक जुड़ा रहता है. अकसर काबा के इमाम लखनऊ आते हैं. यहां मुसलमानों से मिलने के अलावा वे नमाज की अगुवाई कर चुके हैं और तत्कालीन मुख्यमंत्री से भी मिल चुके हैं. इसको एक गुडविल जेस्चर के रूप में उठाया गया कदम माना जाता है. इसके अलावा लखनऊ स्थित इस्लामिक शिक्षण संस्थान नदवातुल उलूम का भी संबंध सऊदी अरब से है. इसके पूर्व रेक्टर मौलाना अली मियां का सऊदी अरब में बड़ा मान था. अच्छी संख्या में लखनऊ के मुसलमान वहां नौकरी भी करते हैं. भारत में सबसे ज्यादा हाजियों का कोटा उत्तर प्रदेश का रहता है जो सऊदी अरब हज करने जाते हैं. सऊदी अरब की राजधानी रियाद और शहर जेद्दाह के लिए लखनऊ से सीधी उड़ानें भी हैं.
मध्य पूर्व के दो ताकतवर देशों सऊदी अरब और ईरान के बीच हमेशा छत्तीस का आंकड़ा रहता है. दोनों धर्म से लेकर तेल और इलाके में दबदबा कायम करने तक, हर बात पर झगड़ते हैं.
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शिया-सुन्नी टकराव
दोनों ही देश खुद को इस्लाम की दो अलग अलग शाखों का संरक्षक मानते हैं. सऊदी अरब जहां एक सुन्नी देश है, वहीं ईरान शिया देश. इसीलिए ये दोनों दुनिया भर में शिया और सुन्नियों के बीच होने वाले विवादों की धुरी माने जाते हैं.
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तेल के दाम
1973 में अरब-इस्राएल युद्ध के दौरान तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक ने तेल के दाम बहुत बढ़ा दिये थे. अरब तेल उत्पादक देशों ने इस्राएल समर्थक समझे जाने वाले देशों पर रोक लगा दी, जिनमें अमेरिका भी शामिल था.
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तनाव बढ़ा
ईरान चाहता था कि तेल के दाम और बढ़ाये जाएं ताकि उसके यहां महत्वाकांक्षी औद्योगिक विकास परियोजनाओं के लिए धन मिल सके. लेकिन सऊदी अरब नहीं चाहता था कि तेल के दामों में बेतहाशा वृद्धि हो. इसके पीछे उसका मकसद अपने सहयोगी देश अमेरिका को बचाना था.
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क्रांति का निर्यात
ईरान में 1979 में हुई इस्लामी क्रांति के दौरान पश्चिम समर्थक शाह को सत्ता से बेदखल किया गया और देश में इस्लामी गणतंत्र की स्थापना हुई. इसके बाद क्षेत्र के सुन्नी देशों ने ईरान पर आरोप लगाया कि वह उनके यहां क्रांति को "भेजने" की कोशिश कर रहा है.
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इराक-ईरान युद्ध
सितंबर 1980 में इराक ने ईरान पर हमला कर दिया और यह युद्ध आठ साल तक चला. सऊदी अरब ने वित्तीय रूप से इराकी सरकार की मदद की और अन्य सुन्नी देशों को भी ऐसा ही करने के लिए प्रोत्साहित किया. इससे ईरान और सऊदी अरब की कड़वाहट और बढ़ी.
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हज में टकराव
सऊदी सुरक्षा बलों ने 1987 में मक्का में ईरानी श्रद्धालुओं के अनाधिकृतक अमेरिका विरोधी प्रदर्शनों के खिलाफ कार्रवाई की. इस दौरान 400 लोग मारे गये हैं. इससे गुस्साए ईरानियों ने तेहरान में सऊदी दूतावास में लूटपाट की.
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हज का सियासी इस्तेमाल
अप्रैल 1988 में सऊदी अरब ने ईरान से अपने राजनयिक रिश्ते तोड़ लिये. 1991 तक ईरान से कोई श्रद्धालु हज यात्रा पर नहीं गया. ईरान अकसर सऊदी अरब पर हज यात्रा को राजनीतिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल करने का आरोप लगाता रहा है.
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बेहतर हुए संबंध
ईरान में मई 1997 के राष्ट्रपति चुनावों में सुधारवादी मोहम्मद खतामी की जीत के बाद दोनों देशों के रिश्तों में सुधार देखने को मिला. मई 1999 में राष्ट्रपति ईरानी राष्ट्रपति ने सऊदी अरब का ऐतिहासिक दौरा किया था.
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इराक की जंग
2003 में इराक पर अमेरिकी हमले ने सऊदी-ईरान तनाव को और बढ़ दिया. अमेरिकी हमले के चलते इराक में बाथ पार्टी का शासन खत्म हुआ और बहुसंख्यक शिया समुदाय को सत्ता में आने का मौका मिला. इससे इराक पर ईरान का प्रभाव बढ़ने लगा.
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अरब स्प्रिंग
2011 में जब अरब दुनिया में बदलाव की लहर चली तो सऊदी अरब ने पड़ोसी बहरीन में अपने सैनिक भेजे. वहां सुन्नी शासक के खिलाफ बहुसंख्यक शिया लोग बड़े पैमाने पर सड़कों पर उतरे. सऊदी अरब ने ईरान पर बहरीन में गड़बड़ी फैलाने का आरोप लगाया.
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सीरिया संकट
ईरान-सऊदी अरब के झगड़े में 2012 के सीरिया संकट ने भी आग में घी का काम किया. सीरिया की जंग में जहां ईरान सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल असद का साथ दे रहा है, वहीं उनके खिलाफ लड़ रहे विद्रोहियों को सऊदी अरब और उसके सहयोगी अमेरिका का समर्थन मिला.
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यमन का मोर्चा
यमन संकट में भी सऊदी अरब और ईरान एक दूसरे के सामने आ खड़े हुए. मार्च 2015 में सऊदी अरब ने सुन्नी अरब देशों का एक गठबंधन बनाया, जिसने यमनी राष्ट्रपति अब्द रब्बू मंसूर हादी के समर्थन में यमन में हस्तक्षेप किया. वहीं ईरान हूती बागियों के साथ खड़ा दिखा.
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हज में भगदड़
सितंबर 2015 में हज यात्रा के दौरान भगदड़ हुई जिसमें 2,300 विदेशी श्रद्धालु मारे गये. मरने वालों में ज्यादातर ईरानी लोग शामिल थे. इसके बाद ईरान के सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातोल्लाह खमेनेई ने कहा कि सऊदी शाही परिवार इस्लाम के सबसे पवित्र स्थलों की व्यवस्था संभालने लायक नहीं है.
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फिर टूटे रिश्ते
जनवरी 2016 में सऊदी अरब में एक प्रमुख शिया मौलवी निम्र अल निम्र को मौत की सजा दी गयी. उन पर सरकार विरोधी प्रदर्शन भड़काने के आरोप लगे. ईरान ने इस पर गहरी नाराजगी जतायी. ईरान में सऊदी राजनयिक मिशन पर हमले किये गये और सऊदी अरब ने ईरान से अपने राजनयिक रिश्ते तोड़ लिये.
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हिज्बोल्लाह एंगल
मार्च 2016 में लेबनान के शिया मिलिशिया गुट और ईरान के सहयोगी हिज्बोल्लाह को अरब देशों ने आतंकवादी करार दिया. इससे पहले हिज्बोल्लाह के प्रमुख ने सऊदी अरब पर शिया और सुन्नियों के बीच "नफरत भड़काने" का आरोप लगाया था.
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लेबनान पर 'पकड़'
नवंबर 2017 में लेबनान के प्रधानमंत्री साद हरीरी ने इस्तीफा दे दिया और कहा कि ईरान हिज्बोल्लाह के जरिए लेबनान पर अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है. पद छोड़ने के बाद हरीरी ने सऊदी अरब जाकर शाह सलमान से मुलाकात की.
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कतर संकट
इससे पहले जून 2017 में सऊदी अरब और उसके कई सहयोगी देशों ने कतर के साथ अपने रिश्ते तोड़ लिये. उन्होंने कतर पर ईरान से नजदीकी संबंध कायम करने और चरमपंथियों का समर्थन करने का आरोप लगाया.
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ट्रंप के साथ सऊदी अरब
अक्टूबर 2017 में सऊदी अरब ने कहा कि वह ईरान के मुद्दे पर अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की मजबूत रणनीति का समर्थन करता है. ट्रंप ने 2015 में ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर हुए समझौते को मंजूर करने से इनकार कर दिया.