ट्रंप प्रशासन ने सऊदी अरब को परमाणु तकनीक देने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. अब अमेरिकी संसद में सवाल उठ रहे हैं कि जिस देश पर मामूली हथियारों के मामले में भरोसा नहीं कर सकते, उस पर परमाणु मामलों में भरोसा करना सही है?
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अमेरिका के ऊर्जा मंत्री रिक पेरी ने अमेरिकी कानून निर्माताओं को बताया कि अमेरिकी कंपनियों ने सऊदी अरब को परमाणु ऊर्जा प्रौद्योगिकी बेचने से जुड़े जो छह आवेदन दिए थे उन्हें अब मंजूरी मिल गई है. पेरी ने सीनेट की आर्मड सर्विस कमेटी को बताया कि ऊर्जा विभाग ने जनवरी 2017 से लेकर अबतक करीब 37 परमाणु आवेदनों को मंजूरी दी है, जिनमें से नौ मध्य पूर्व से हैं. इसके अलावा छह सऊदी अरब से तो दो जॉर्डन से जुड़े हैं.
संसदीय समिति की बैठक के दौरान पेरी से पूछा गया कि क्या ये आवेदन 2 अक्टूबर के बाद मतलब अमेरिकी अखबार में काम करने वाले सऊदी पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या के बाद दिए गए हैं. इस पर पेरी ने अपने जवाब में कहा कि उन्हें एकदम सटीक डाटा नहीं पता है.
अमेरिका में डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन पार्टी के सांसद सऊदी अरब को परमाणु प्रौद्योगिकी दिए जाने को लेकर अपनी चिंताए जताते रहे हैं. कानून निर्माताओं को डर है कि कहीं अमेरिकी तकनीक की मदद से सऊदी परमाणु हथियार विकसित न कर ले. हालांकि जो मंजूरी दी गई है उसके तहत कंपनियां परमाणु संयंत्रों में परमाणु ऊर्जा पैदा करने से जुड़ी सभी प्रारंभिक तैयारियां कर सकती हैं, लेकिन उन्हें रवाना नहीं कर सकती.
अमेरिकी सांसदों से बातचीत में रिक पेरी ने ये भी कहा कि अगर अमेरिका सऊदी अरब को पार्टनर नहीं बनाता है तो हो सकता है कि वह असैनिक न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी के लिए रूस और चीन का दामन थाम ले. वहीं डेमोक्रेटिक सीनेटर ब्रेड शेरमन ने ट्रंप प्रशासन पर कानून के खिलाफ जाने का आरोप लगाया है. दरअसल अमेरिकी कंपनियां कानून के मुताबिक ऐसे किसी भी देश को परमाणु तकनीक नहीं दे सकती हैं जिसने शांतिपूर्ण उपयोग सुनिश्चित करने के लिए अमेरिका के सेक्शन 123 के नियमों को नहीं अपनाया हो.
शेरमेन ने कहा, "अगर आप किसी देश पर मामूली हथियारों के मामले में भरोसा नहीं सकते तो उस पर परमाणु हथियारों के मामले में कैसे भरोसा किया जा सकता है." इस बीच अमेरिका के गवर्नमेंट एकाउंटिबिलिटी ऑफिस ने साफ किया है कि वह अमेरिका और सऊदी अरब के बीच हुए समझौते की जांच करेगी. रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक सांसदों ने अमेरिकी संसद की जांच एजेंसी में जांच के लिए एक याचिका दायर की थी.
सऊदी अरब के बाद भारत खरीद रहा है सबसे ज्यादा हथियार
दुनिया में हथियारों की होड़ लगातार बढ़ रही है. स्टॉकहोम के इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिपरी) के मुताबिक भारत दुनिया में हथियारों का दूसरा सबसे बड़ा खरीदार है.
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अमेरिका के हथियार
स्वीडन की इस संस्था के मुताबिक पिछले पांच सालों के दौरान बेचे गए हथियारों का एक तिहाई अमेरिका से आया. सिपरी के मुताबिक 2009-2013 के मुकाबले 2014-2018 में दुनिया में हथियारों की खरीद-फरोख्त करीब आठ फीसदी तक बढ़ गई है. इसमें अमेरिका का हिस्सा 30 से 36 फीसदी तक बढ़ गया. 98 देशों को हथियार बेचने वाला अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा आर्म एक्सपोर्टर बन गया है.
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भारत नहीं पीछे
सऊदी अरब दुनिया का सबसे बड़ा हथियार आर्म इम्पोर्टर देश बन गया है. अमेरिका से हथियार लेने में सऊदी सबसे आगे हैं साथ ही कुल वैश्विक आयात में इसका हिस्सेदारी करीब 12 फीसदी की है. हथियारों को खरीदने के मामले में सऊदी अरब के बाद भारत का दूसरा स्थान है. कुल ग्लोबल इम्पोर्ट में तकरीबन 9.5 फीसदी हिस्सा भारत का है.
तस्वीर: AP
रूस भी आगे
अमेरिका के बाद दुनिया को हथियार बेचने के मामले में रूस का दूसरा स्थान है. रूस करीब 48 देशों को हथियार बेचता है. भारत अपने आधे से अधिक हथियार रूस से लेता है. इसके बाद इस्राएल और अमेरिका का नंबर आता है. रूस से अधिकतर एक्पोर्ट भारत, चीन और वियतनाम जैसे एशियाई देशों को किया जाता है.
अमेरिका के अलावा, सऊदी अरब को ब्रिटेन और फ्रांस भी बड़ी मात्रा में हथियार उपलब्ध कराते हैं. सऊदी के अलावा मध्य एशियाई देशों में मिस्र, संयुक्त अरब अमीरात और इराक भी हथियारों की खरीद में सबसे आगे हैं. अमेरिका की ओर से बेचे गए हथियारों में कॉम्बेट एयरक्राफ्ट, शार्ट रेंज क्रूज, बैलिस्टिक मिसाइल और तमाम तरह के बम शामिल हैं. अमेरिका के आधे से अधिक हथियार मध्य एशियाई देशों ने खरीदे हैं.
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75 फीसदी हिस्सा
सिपरी के मुताबिक अमेरिका, रूस, फ्रांस, जर्मनी और चीन कुल 75 फीसदी हथियार बेचते हैं. वहीं सऊदी अरब, भारत, मिस्र, ऑस्ट्रेलिया और अल्जीरिया दुनिया के तकरीबन एक तिहाई हथियारों को खरीदते हैं. 2009-2013 के मुकाबले 2014-2018 में रूस के आर्म्स एक्सपोर्ट में करीब 17 फीसदी की कमी आई है. इसका एक बड़ा कारण भारत और वियतनाम की ओर से हथियार खरीद में आई कमी को माना गया है.
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चीन के हथियार
चीन दुनिया के 53 देशों को हथियार बेचता है लेकिन इसका ट्रेड वॉल्यूम ज्यादा नहीं है. हालांकि पाकिस्तान अपने कुल हथियारों का दो-तिहाई हिस्सा चीन से इम्पोर्ट करता है. चीन दुनिया में हथियारों का छठा सबसे बड़ा इम्पोर्टर है. पिछले कुछ सालों में अपने हथियारों को तैयार कर अब चीन ने आयात कम कर लिया है. वहीं ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया और वियतनाम चीन से राजनीतिक कारणों के चलते हथियार नहीं लेते हैं.