सऊदी अरब में क्राउन प्रिंस अत्याधुनिक रोबोटों से लैस एक मेगासिटी बनाना चाहते हैं लेकिन दूसरी तरफ आम लोग घरों के लिए तरस रहे हैं.
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पेशे से सरकारी नौकर आमेर अल गामदी का एक ही सपना है कि वह किफायती दामों में अपना एक घर खरीद पाएं. गामदी और उनकी जैसी आर्थिक स्थिति वाले 12 लाख लोगों का अपना घर खरीदने का सपना तभी साकार होगा जब क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के सुधारों का फायदा सिर्फ अमीरों को नहीं, बल्कि आम लोगों को भी हो.
गामदी की उम्र 35 साल है और उन्हें 2,670 डॉलर के आसपास महीने की सैलरी मिलती है. लेकिन इसका बड़ा हिस्सा उस लोन को चुकाने में चला जाता है जो उन्होंने अपनी शादी करने और कार खरीदने के लिए लिया था. अब गामदी और उनकी पत्नी हनान के तीन बच्चे हैं और बचत करना उनके लिए बहुत मुश्किल होता है. ऐसे में, मकान खरीदने का तो सवाल ही नहीं उठता है.
सऊदी अरब में एक अमेरिकी प्रॉपर्टी कंसल्टेंसी के प्रमुख इब्राहिम अलबुलोशी बताते हैं कि सऊदी शहरों में 250 वर्ग मीटर के एक घर की कीमत 1.86 लाख से 2.26 लाख डॉलर के बीच है. यह खाड़ी देशों में कम आमदनी वाले किसी परिवार की सालाना सैलरी का लगभग दस गुना है.
ये घर है या टॉयलेट
यहां है टॉयलेट और रसोई एक साथ
क्या आप रसोई के साथ टॉयलेट शेयर करने के बारे में सोच सकते हैं. शायद नहीं. लेकिन हांगकांग में आज यह नजारा हकीकत बन चुका है. जगह की कमी ने लोगों की जिंदगी दूभर कर दी है.
तस्वीर: Benny Lam & SoCo
खाना बनाने की जगह
यहां टॉयलेट और चॉपिंग बोर्ड की दूरी में फासला बेहद ही कम है. तस्वीर में नजर आ रहा है कि कैसे चावल बनाने का कुकर, टीपॉट और किचन के दूसरे बर्तन टॉयलेट सीट के पास पड़े हुए है. हांगकांग के कई अपार्टमेंट में रसोई और टॉयलेट ऐसे ही एक साथ बने हुए हैं.
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किचन और बाथरूम
कैनेडियन फोटोग्राफर बेनी लेम ने हांगकांग में बने ऐसे अपार्टमेंट और यहां रह रहे लोगों की तस्वीरों को अपने कैमरे में कैद किया. इन तस्वीरों की सिरीज "ट्रैप्ड" के तहत एक गैरलाभकारी संस्था द सोसाइटी फॉर कम्युनिटी ऑर्गनाइजेशन (एसओसीओ) के साथ तैयार किया गया है. यह संस्था हांगकांग में गरीबी उन्मूलन और नागरिक अधिकारों के लिए काम करती है.
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जगह की कमी
75 लाख की आबादी वाले हांगकांग में अब जगह की कमी होने लगी है. यहां घरों की कीमतें आकाश छू रही हैं. प्रॉपर्टी के मामले में हांगकांग दुनिया का काफी महंगा शहर है. कई लोगों के पास इस तरह से रहने के अलावा कोई विकल्प ही नहीं बचा है. और शायद, लोगों ने भी ऐसे रहना सीख भी लिया है.
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अमानवीय स्थिति
एसओसीओ के मुताबिक, हांगकांग की जनगणना और सांख्यिकी विभाग की रिपोर्ट बताती है कि करीब दो लाख लोग ऐसे ही 88 हजार छोटे अपार्टमेंट में अपना जीवन गुजार रहे हैं. स्वयं को ऐसी स्थिति में ढालने के लिए लोगों को काफी मशक्कत करनी पड़ती है.
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दोगुनी कीमत
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक हांगकांग के प्रमुख इलाकों में साल 2007 से 2012 के बीच अपार्टमेंट की कीमत दोगुनी हो गई. इन छोटे-छोटे कमरों में रहने वालों कई लोग कहते हैं कि उन्हें यहां जाने से डर भी लगता है. वहीं कुछ कहते हैं कि उनके लिए यहां रहना इसलिए मुश्किल है क्योंकि उनके पास यहां सांस लेने के लिए खुली हवा भी नहीं होती.
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एक गद्दे का घर
अपने एक गद्दे के अपार्टमेंट में एक किरायेदार टीवी देखते हुए. यहां कम आय वालों के पास ऐसे रहने के अलावा कोई और विकल्प ही नहीं है. अब इन लोगों ने ऐसे रहना सीख लिया है. भले ही वे इस जगह खड़े होकर न तो अंगड़ाई ही ले पाते हो या न ही सुस्ता पाते हों. लेकिन यहां रहते-रहते इन लोगों की कॉकरोच और खटमल से दोस्ती जरूर हो जाती है.
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पिंजरा या ताबूत
फोटोग्राफर लैम दो साल तक हांगकांग के ऐसे ही गरीब इलाके को कैमरे में कैद करते रहे हैं. इन इलाकों में गरीब और अमीर के बीच की खाई बहुत गहरी है. इन फ्लैट्स को अकसर पिंजरे और ताबूत की संज्ञा दी जाती है. जो होटल, मॉल्स, टॉवर वाले चमचमाते हांगकांग का चौंकानेवाला चेहरा उजागर करता है.
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सरकारी मशीनरी
रहने का यह तरीका लोगों की मानसिक स्थिति पर भी बुरा असर डालता है. हालांकि कई लोग सालों से ऐसे ही यहां गुजर-बसर कर रहे हैं. सरकारी प्रक्रिया के तहत घर मिलने में यहां औसतन पांच साल का समय लगता है. लेकिन यह इंतजार एक दशक तक बढ़ना बेहद ही आम है.
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मानवीय गरिमा का अपमान
संयुक्त राष्ट्र मानता है कि ऐसे पिंजरों और ताबूत के आकार वाले घरों में रहना, मानवीय गरिमा के विरुद्ध है. हालांकि हांगकांग सरकार कहती है कि साल 2027 तक यहां करीब 2.80 लाख नए अपार्टमेंट बनाए जाएंगे. एसओसीओ कहता है कि जो लोग इन अमानवीय स्थितियों में रहने के लिए मजबूर हैं उनके लिए इस बीच भी कदम उठाए जाने चाहिए. (अयू पुरवानिग्से)
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सऊदी राजधानी रियाद में रहने वाले गादमी कहते हैं, "मैंने कोशिश की थी कि मेरा एक रिश्तेदार मेरा लोन चुका दे और मुझे बैंक से नया लोन लेने के लिए डाउन पेमेंट भी दे दे, लेकिन ब्याज बहुत ही ज्यादा है और मैं पहले ही इतना दे रहा हूं."
सऊदी अरब दुनिया में तेल का सबसे बड़ा निर्यायक है. ज्यादा समय नहीं बीता है जब पेट्रोल की दौलत से अमीर हुए सऊदी अरब में सरकार लोगों को बड़ी सुविधाएं देती थी. टैक्स लगभग ना के बराबर लिया जाता था. लेकिन तेल के दामों में आई गिरावट ने सऊदी अरब की आमदनी पर बड़ा असर डाला और देश की अर्थव्यवस्था डगमगाने लगी.
ऐसे में वित्तीय अनुशासन और किफायत की जरूरत बढ़ गई. इसीलिए क्राउन प्रिंस अर्थव्यवस्था में कई सुधार ला रहे हैं और तेल पर उसकी निर्भरता को कम कर रहे हैं. हालांकि पश्चिमी मीडिया की रिपोर्टों के मुताबिक खुद क्राउन प्रिंस ने फ्रांस में 30 करोड़ डॉलर का एक महल और 50 करोड़ डॉलर की एक नौका खरीदी है.
सऊदी अरब में बढ़ती जनसंख्या ने भी घरों की किल्लत को बढ़ाया है. सऊदी अरब की जनसंख्या 2017 में 3.25 करोड़ हो गई. 2004 से तुलना करें तो इसमें 44 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. राजधानी रियाद का आकार भी बढ़ रहा है.
पानी पर तैरते घरों में रहना चाहेंगे..
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सऊदी आवास मंत्री का कहना है कि वह अगले पांच साल के भीतर 10 करोड़ डॉलर के निवेश से दस लाख घर तैयार करने की योजना बना रहे हैं. पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के आधार पर बनने वाले इन घरों के लिए दक्षिण कोरियाई और चीन के साथ समझौते किए गए हैं. अमेरिकी कंपनियों ने भी इस बारे में अपनी दिलचस्पी दिखाई है.
मंत्रालय का कहना है कि 2020 तक 60 प्रतिशत सऊदी लोगों के पास अपने घर होंगे. लोन को आसान बनाने के लिए मंत्रालय स्थानीय बैंकों के साथ भी काम कर रहा है. अभी लगभग पांच लाख लोग मंत्रालय की आवास एजेंसी सऊदी रियल इस्टेट डिवेलपमेंट फंड की वेटिंग लिस्ट में है. यह एजेंसी लोगों को घर खरीदने के लिए बिना ब्याज लोन मुहैया कराती है. गामदी 2011 से इस वेटिंग लिस्ट में है और उन्हें जल्द किसी अच्छी खबर की उम्मीद नहीं है. उन्होंने अपनी पत्नी से भी नौकरी तलाशने को कहा है. लेकिन उन्हें एक फूड फैक्ट्री से जो नौकरी का ऑफर आया उसमें सिर्फ साढ़े तीन हजार रियाल (933 डॉलर) की सैलरी ऑफर की गई, जो उनकी छोटी बेटी को नर्सरी में रखने और आने जाने पर ही खर्च हो जाएगी.
दो छतों वाला घर
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वहीं, 30 वर्षीय इंजीनियर सलमान अल-शेदूखी की महीने की आमदनी 15,000 रियाल (4000 डॉलर) है. वह भी अकसर सोचते हैं कि क्या उन्हें सरकार की तरफ से बनाए जाने वाले किफायती घरों में से कोई एक घर मिलेगा. वह कहते हैं, "बैंक से अगर आप नौ लाख रियाल का घर खरीदने के लिए लोन देते हैं तो आपको लगभग उसका दोगुना चुकाना पड़ता है. इसका मतलब है कि बीस साल तक मुझे अपनी सैलरी का आधा हिस्सा बैंक को देने पड़ेगा."
पैसे बचाने के लिए वह अपनी पत्नी और दो बेटियों के साथ अपने पिता के घर में रह रहे हैं. लेकिन कुछ साल पहले शादी के लिए लिया गया कर्ज अब भी उनके सिर पर चढ़ा हुआ है. एक सरकारी सलाहकार संस्था शूरा काउंसिल आवास मंत्रालय पर तेजी से काम ना करने का आरोप लगाती है जिससे आम लोगों को किफायती दामों पर घर नहीं मिल रहे हैं. इसी के कारण हाल के सालों में मंत्रालय के कई अधिकारियों को हटाया भी गया है.
एके/आईबी (रॉयटर्स)
ये ऐसे घर ये वैसे घर
ये ऐसे घर ये वैसे घर
आपने ऐसे घर शायद ही देखे हों. यूरोप के ये घर अजीब भी हैं और गजब भी. देखिए...
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रेल का डिब्बा
उत्तर पश्चिमी जर्मनी के मार्ल में फोटोग्राफर जोड़े वनेसा स्टालबाउम और मार्को स्टेपनियाक का घर रेल के डिब्बों से बना है. ये डिब्बे 1970 के दशक के दौरान इस्तेमाल किए जाते थे.
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सच में रेल का डिब्बा
रहना वैसा ही लगे, जैसा रेल के डिब्बे में लगता है इसके लिए वनेसा और मार्को ने डिब्बे में कई चीजों को अपने लिए इस्तेमाल कर लिया है. जैसे कि लेटर ट्रे को अब कटलरी बना लिया गया है.
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ग्रीनहाउस
यह ग्रीनहाउस है जर्मनी के ड्रेसडेन में. यहां मोनिका और थॉमस रहते हैं. वह इस घर में पिछले 20 साल से रह रहे हैं.
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ग्रीनहाउस में क्या है
घर के अंदर ही नर्सरी है. ग्रीनहाउस में ग्राहक भी आते हैं और पौधे ले जाते हैं. घर के अंदर नर्सरी है या नर्सरी के अंदर घर, बस वही जानते हैं जो इसमें रहते हैं.
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अनाज भंडार
नीदरलैंड्स के द हेग का यह घर एक पुराना अनाज भंडार था. आर्किटेक्ट यान कोर्ब्स ने इसे दोमंजिला घर बना दिया. सिर्फ 13 वर्गमीटर में बेडरूम, किचन, बाथरूम सब है.
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भंडार में कैसा लगता है
यान यह संदेश देना चाहते थे कि सस्ते और पर्यावरण के अनुकूल घर बनाना संभव है. इसलिए उन्होंने हर चीज रीसाइकल की है. उन्होंने बस अग्नि सुरक्षा यंत्र खरीदे हैं. बाकी सब पुरानी चीजों से बना है.
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बुलबुला
इस घर में कोई कोना ही नहीं है. बुलबुलों में कोना नहीं होता ना. घर में कई गोल इमारतें हैं जिनमें फ्रांस के जोएल उनाल का घर है. दक्षिण फ्रांस के आर्डेश इलाके में 1970 से बना यह घर स्टील और कंक्रीट से बना है.
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बुलबुले का अहसास
यह घर बनाने में उनाल और उनकी पत्नी को 36 साल लगे हैं. घर का हर कमरा दूसरे से जुड़ा है. ज्यादातर फर्नीचर खुद बनाया गया है. 2010 में इस घर को फ्रांस की राष्ट्रीय इमारत घोषित किया गया.
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बंकर
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जर्मन शहर जीगेन के इस बंकर में गोलाबारी से बचने के लिए 800 लोग तक छिप जाते थे. अब इसे अपार्टमेंट्स में तब्दील कर दिया गया है. बंकर की मोटी-मोटी दीवारों में खिड़कियां भी हैं.
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बंकर का बस नाम बचा है
70 साल तक बंकर बस बंद रहा. लेकिन अब यहां सब खुला-खुला है, घर जैसा. इसमें आठ अपार्टमेंट हैं. एक पेंटहाउस भी है, विशाल छत वाला. और युद्ध के अंधियारे की सारी यादों को मिटा दिया गया है.