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सऊदी अरब में कोड़े मारने की सजा खत्म

२५ अप्रैल २०२०

सऊदी अरब की अदालतों के आदेश पर दी जाने वाली कोड़े मारने की सजा की लंबे समय से मानवाधिकार संगठन निंदा करते आये हैं. इस सजा को अब खत्म कर दिया गया है.

Saudi-Arabien Al-Wadschh Rotes Meer
तस्वीर: Imago Images/Danita Delimont/A. Pavan

सऊदी अरब ने कोड़े मारने की सजा को खत्म कर दिया है. देश के मानवाधिकार आयोग ने शनिवार को इसकी घोषणा की. आयोग ने इसे इसे देश के राजा और उनके बेटे के शुरू किये गए सुधार कार्यक्रम में "आगे की ओर बढ़ाया गया एक बड़ा कदम" कहा. सऊदी अरब की अदालतों के आदेश पर दी जाने वाली कोड़े मारने की सजा की लंबे समय से मानवाधिकार संगठन निंदा करते आए हैं. कभी कभी दोषियों को सैकड़ों कोड़े मारे जाते हैं.

हालांकि मानवाधिकार समूहों का यह भी कहना है कि प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की देख रेख में होने वाले कानूनी सुधारों की वजह से देश में सरकार से असहमति के दमन में कोई कमी नहीं आई है. मौत की सजा अभी भी मौजूद है और उसका इस्तेमाल भी शासन के खिलाफ उठने वाली आवाजों को शांत करने के लिए होता है.

मानवाधिकार आयोग का कहना है कि इस नए सुधार के के बाद अब किसी भी अपराधी को कोड़े मारने की सजा नहीं सुनाई जाएगी. आयोग के अध्यक्ष, अवाद अल-अवाद ने कहा, "यह निर्णय इस बात की गारंटी है कि जिन अपराधियों को पुराने कानून के तहत कोड़े मारने की सजा सुनाई जा सकती थी, उन्हें अब उसकी जगह से जुर्माना या जेल की सजा होगी."

इसके पहले अदालतों को यह अधिकार थी कि वे कई तरह के जुर्म के दोषी पाए जाने वालों को कोड़ों की सजा सुना सकती थीं. इनमें विवाह के बाहर यौन संबंध और शांति को भंग करने से ले कर हत्या जैसे जुर्म शामिल हैं. भविष्य में जजों को जुर्माना, जेल की सजा या समाज सेवा जैसे विकल्पों में से चुनना होगा. 

तस्वीर: picture-alliance/empics

बीते वर्षों में कोड़े मारने की सजा का सबसे चर्चित मामला था सऊदी ब्लॉगर रइफ बदावी का. उसे 2014 में इस्लाम का "अपमान" करने के आरोप में 10 साल जेल और 1,000 कोड़े मारे जाने की सजा सुनाई गई थी. उसके अगले साल बदावी को यूरोपीय संसद का सखारोव मानवाधिकार पुरस्कार दिया गया था.

कुछ ही दिनों पहले एक और मामले की वजह से सऊदी अरब के मानवाधिकार रिकॉर्ड पर काफी चर्चा हुई. तब जाने माने एक्टिविस्ट अब्दुल्लाह अल-हामिद का दिल का दौरा पड़ने से हिरासत में ही निधन हो गया था. वे 69 वर्ष के थे और सऊदी सिविल एंड पोलिटिकल राइट्स एसोसिएशन के संस्थापक सदस्य थे. उन्हें मार्च 2013 में 11 साल जेल की सजा सुनाई गई थी. एमनेस्टी इंटरनेशनल के अनुसार उन्हें सऊदी के शासक के प्रति "राजनिष्ठा तोड़ने, उपद्रव भड़काने" और देश की सुरक्षा भंग करने का दोषी माना गया था.

सऊदी अरब के मानवाधिकार रिकॉर्ड की आलोचना तब से बढ़ गई है जब से जून 2017 में राजा सलमान ने अपने बेटे राजकुमार मोहम्मद को युवराज और सिंहासन का उत्तराधिकारी बनाया. युवराज ने महत्वाकांक्षी आर्थिक और सामाजिक सुधार शुरू किये हैं, जिनमें महिलाओं को गाड़ी चलाने से लेकर राज्य में खेल और मनोरंजन के कार्यक्रम की इजाजत देना शामिल हैं.

क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमानतस्वीर: picture-alliance/dpa/AP Photo/Pool/P. Golovkin

हालांकि अक्टूबर 2018 में इस्तांबुल स्थित सऊदी वाणिज्य दूतावास के अंदर पत्रकार जमाल खशोगी की नृशंस हत्या और उसके बाद सऊदी के अंदर विरोध करने वालों पर अत्याचारों ने अर्थव्यवस्था और समाज के आधुनिकीकरण की राजकुमार की शपथ को धूमिल कर दिया है. 

एमनेस्टी ने कहा है कि पिछले साल सऊदी अधिकारियों ने 148 लोगों की जान ले ली थी. संगठन का कहना है, "सऊदी अरब में जिस तरह से मौत की सजा का इस्तेमाल बढ़ रहा है, वो खतरनाक है. सऊदी में मौत की सजा को अपने राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ एक हथियार की तरह भी इस्तेमाल किया जाता है." सऊदी के समर्थन वाले कंपनियों के एक समूह, ने हाल ही में इंग्लिश प्रीमियर लीग के फुटबॉल क्लब न्यू कासल यूनाइटेड को खरीदने की बोली लगाई है. इस समूह में राजकुमार मोहम्मद भी शामिल हैं और इसकी वजह से भी सऊदी अरब के मानवाधिकार रिकॉर्ड की फिर से अंतरराष्ट्रीय समीक्षा हुई है.

प्रीमियर लीग को फैसला लेना पड़ेगा कि उसके नए मालिक उन मानकों पर खरे उतारते हैं या नहीं जो उसके मालिकों और डायरेक्टरों के टेस्ट में हैं. एमनेस्टी ने चेतावनी दी है कि जब तक प्रीमियर लीग इस डील की अनुमति देने का औचित्य विस्तार से समझा ना ले तब तक उसकी अपनी प्रतिष्ठा पर खतरा है. आलोचकों का आरोप है कि सऊदी अरब "स्पोर्ट्स वाशिंग" करता है, यानी सरकार खेलों का इस्तेमाल अपने मानवाधिकार रिकॉर्ड से ध्यान हटाने के लिए करती है.

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