सऊदी अरब 54 हजार रोहिंग्या लोगों को निकालना चाहता है
१८ जनवरी २०२१डीडब्ल्यू के साथ एक हालिया इंटरव्यू में बांग्लादेश के विदेश मंत्री एके अब्दुल मोमेन ने कहा था कि बांग्लादेश सऊदी अरब में रहने वाले कुछ रोहिंग्या लोगों को कानूनी दस्तावेज मुहैया करा सकता है.
रोहिंग्या मुसलमानों का संबंध म्यांमार के पश्चिमी प्रांत रखाइन से है. लेकिन म्यांमार उन्हें अपना नागरिक नहीं मानता. अपने साथ भेदभाव और दमन से बचने के लिए बहुत से रोहिंग्या लोगों ने दूसरे देशों में शरण ली है. इनमें सबसे ज्यादा लोग बांग्लादेश में रहते हैं.
लगभग 40 साल पहले सऊदी अरब ने दसियों हजार रोहिंग्या लोगों को लिया था. सितंबर 2020 में सऊदी अरब ने कहा था, "अगर बांग्लादेश इन शरणार्थियों को अपना पासपोर्ट जारी करता है तो इससे बहुत मदद होगी क्योंकि सऊदी अरब नागरिकता विहीन लोगों को अपने यहां नहीं रखता."
सऊदी अरब में रहने वालो रोहिंग्या लोगों के पास किसी देश की नागरिकता नहीं है. यहां तक कि शरणार्थियों के जो बच्चे सऊदी अरब में पैदा हुआ हैं और अरबी भाषा बोलते हैं, उन्हें भी सऊदी अरब की नागरिकता नहीं दी गई है.
बांग्लादेश भी रोहिंग्या लोगों को अपना नागरिक नहीं मानता है. इसलिए कई विशेषज्ञ कहते हैं कि विदेश मंत्री मोमेन का यह बयान उनके देश को मुश्किल में डाल सकता है कि बांग्लादेश कुछ रोहिंग्या को पासपोर्ट दे सकता है. इससे रोहिंग्या लोगों की वापसी के लिए म्यांमार से होने वाली वार्ता पर असर पड़ सकता है.
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मुश्किल फैसला
मोमेन ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा था, "हमने इस बारे में सऊदी अधिकारियों से बात की है और उन्हें भरोसा दिलाया है कि हम उन लोगों के पासपोर्ट रिन्यू कर देंगे जो बांग्लादेश से सऊदी अरब गए."
विदेश मंत्री ने बताया कि बहुत सारे रोहिंग्या लोगों ने बांग्लादेशी अधिकारियों को रिश्वत देकर पासपोर्ट हासिल किए थे. उन्होंने कहा, "2001, 2002 और 2006 में बहुत से रोहिंग्या लोग बांग्लादेशी पासपोर्ट पर सऊदी अरब गए. कुछ भ्रष्ट अधिकारियों ने उन्हें ये पासपोर्ट जारी किए."
लेकिन बांग्लादेशी विदेश मंत्री ने साफ कहा कि उनका देश इन शरणार्थियों के बच्चों की कोई जिम्मेदारी नहीं लेगा. उन्होंने कहा, "ये रोहिंग्या 1970 के दशक से बांग्लादेश में नहीं रह रहे हैं. उनके बच्चों की पैदाइश और परवरिश दूसरे देशों में हुई. उन्हें बांग्लादेश के बारे में कुछ नहीं पता. उनकी परवरिश अरब लोगों की तरह हुई है."
मोमेन का कहना है कि सऊदी अरब सारे रोहिंग्या लोगों को वापस नहीं भेजना चाहता, "जिन लोगों को सऊदी नागरिकता मिल गई है, वे वहीं रहेंगे."
सऊदी अरब में लगभग तीन लाख रोहिंग्या लोगों को पहले ही वर्क परमिट मिल गया है. जिन 54 लोगों को सऊदी अरब वापस भेजना चाहता है, उनमें से ज्यादातर के पास बांग्लादेश से सऊदी अरब आते हुए बांग्लादेशी पासपोर्ट था या फिर उन्हें सऊदी अरब में मौजूद बांग्लादेशी कंसुलेट से पासपोर्ट मिला.
कौन ले जिम्मेदारी?
ढाका स्थित रिफ्यूजी एंड माइग्रेटरी मूवमेंट नाम की संस्था के कार्यकारी निदेशक सीआर अबरार कहते हैं कि अगर इन लोगों के पास बांग्लादेशी पासपोर्ट हैं तो उनकी जिम्मेदारी बांग्लादेश को लेनी चाहिए. लेकिन शरणार्थियों की वापसी के लिए जिस तरह से सऊदी अरब बांग्लादेश पर दबाव बना रहा है, वह उसकी भी निंदा करते हैं.
वह कहते हैं, "बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था इतनी मजबूत नहीं है. फिर भी उसने इन लोगों को लेकर बहुत हिम्मत दिखाई है. सऊदी अरब को बांग्लादेश पर और दबाव नहीं डालना चाहिए."
अबरार कहते हैं कि रोहिंग्या लोग आर्थिक कारणों से प्रवासी नहीं बने हैं, "वे एक प्रताड़ित समुदाय हैं. सऊदी अरब को यह बात समझनी चाहिए."
बांग्लादेश की मुश्किल
अबरार कहते हैं कि अगर बांग्लादेश सऊदी अरब से रोहिंग्या लोगों को ले लेता है तो इससे इन शरणार्थियों की वापसी के लिए म्यांमार से हो रही बातचीत में बांग्लादेश का रुख कमजोर होगा. उनका मानना है, "म्यांमार इस बात का फायदा उठाने की कोशिश करेगा और बांग्लादेश पर दबाव डालेगा कि वह और ज्यादा रोहिंग्या लोगों को अपनी नागरिकता दे."
अमेरिका की इलिनॉय स्टेट यूनिवर्सिटी में राजनीति शास्त्र पढ़ाने वाले अली रियाज कहते हैं कि यह बांग्लादेश के लिए एक मुश्किल परिस्थिति है. लेकिन वह इस बात को नहीं मानते कि सऊदी अरब वाले मुद्दे की वजह से म्यांमार के साथ होने वाली वार्ता में बांग्लादेश के रुख पर कोई असर होगा.
रियाज ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "ये दोनों अलग अलग मुद्दे हैं. कुछ रोहिंग्या लोगों को नागरिकता देने का यह मतलब नहीं है कि बांग्लादेश सारे रोहिंग्या लोगों को अपना लेगा."
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