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सऊदी निवेश से बढ़ेंगी पाक की मुश्किलें

एस खान, इस्लामाबाद
३ अक्टूबर २०१८

पाकिस्तान की नई सरकार ने कहा है कि सऊदी अरब चीन-पाकिस्तान आर्थिक कोरिडोर प्रोजेक्ट में अरबों डॉलर का निवेश कर सकता है. यह बात ईरान को कतई पसंद नहीं आ सकती जो हमेशा सऊदी अरब के हर कदम को शक की नजर से देखता है.

Saudi-Arabien Imran Khan, Premierminister Pakistan & König Salman
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/Saudi Press Agency

पाकिस्तान गंभीर आर्थिक संकट में फंसा है और वह सऊदी अरब से मदद मांग रहा है. पिछले दिनों सऊदी अधिकारियों की एक टीम ने पाकिस्तान का दौरा भी किया, ताकि तेल और खनिज के क्षेत्र में निवेश के समझौतों पर हस्ताक्षर हो सकें. स्थानीय मीडिया की रिपोर्टों में कहा गया है कि कोशिश चीनी 'वन बेल्ट वन रोड' परियोजना को पाकिस्तान के ग्वादर से ओमान और सऊदी अरब के रास्ते अफ्रीका तक ले जाने की है.

चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 2015 में चीन-पाकिस्तान आर्थिक कोरिडोर (सीपैक) परियोजना के तहत पाकिस्तान में 60 अरब डॉलर का निवेश करने का एलान किया था. लेकिन पाकिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता के चलते सीपैक के बहुत से प्रोजेक्ट ठीक से लागू ही नहीं हो पाए.

अब पाकिस्तान में नई सरकार बनने के बाद चीन लगातार नजर बनाए हुए है कि पाकिस्तान की सरकार सीपैक को लेकर क्या कदम उठाती है. चीन और पाकिस्तान इसमें किसी तीसरे देश को शामिल करने के बारे में तो एकमत हैं, लेकिन चीन अब भी पाकिस्तान को इस बात के लिए तैयार कर सकता है कि कुछ निश्चित देशों को इसमें शामिल ना किया जाए.

कुछ विश्लेषकों का मानना है कि सऊदी अरब को इस परियोजना में शामिल कर पाकिस्तान अपने पड़ोसी देश ईरान को नाराज कर सकता है. सऊदी अरब पश्चिमी बलूचिस्तान के जिस इलाके में निवेश कर रहा है, उसकी सीमाएं ईरान और अफगानिस्तान से लगती हैं.

इसके अलावा सऊदी अरब पश्चिमी देशों का अहम सहयोगी है. ऐसे में चीन के नेतृत्व में किसी आर्थिक परियोजना में उसकी भागीदारी बदलते भूराजनैतिक परिदृश्य को लेकर कई सवाल पैदा करती है. ईरान कभी नहीं चाहेगा कि सऊदी अरब उसकी सीमा के नजदीक आ बैठे.

पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की सरकार में पोत और जहाजरानी मंत्री रहे मीर हासिल खान बिजेंजो कहते हैं, "ग्वादर ईरान के चाबहार पोर्ट के नजदीक है. इसके अलावा वहां से रेको डिग परियोजना भी दूर नहीं है. यह परियोजना ईरान के सिस्तान बलूचिस्तान प्रांत की राजधानी जाहेदान के करीब चल रही है. वहां सुन्नी चरमपंथी भी सक्रिय हैं. ऐसे में ईरान को ग्वादर पोर्ट में सऊदी अरब के निवेश से क्यों दिक्कत नहीं होगी."

बिजेंजो कहते हैं कि ईरानी सीमा के नजदीक सऊदी अरब की मौजूदगी से इलाके में सांप्रदायिक संघर्ष तेज हो सकता है. वह बताते हैं, "मौजूदा सरकार सऊदी अरब को ग्वादर के करीब ला रही है. अब से पहले कट्टरपंथी सुन्नी वहाबी देश सऊदी अरब को ईरानी सीमा के इतने नजदीक आने का कभी मौका नहीं मिला था. इससे ईरान नाराज हो सकता है." बिजेंजो को इस बात पर भी आपत्ति है कि इमरान खान की सरकार ने बिना किसी सलाह मशविरे के सीपैक के कुछ प्रोजेक्ट सऊदी अरब को सौंपने का फैसला कर लिया.

पिछले महीने पाकिस्तानी मीडिया की रिपोर्टों में यह भी कहा गया कि चीन इस बात से नाराज है कि नई सरकार सीपैक परियोजना पर सवाल उठा रही है. दरअसल पाकिस्तान के वाणिज्य मंत्री अब्दुल रजाक दाउद ने कहा था कि जब तक सीपैक की सभी परियोजनाओं की समीक्षा न हो जाए, उन्हें रोक दिया जाना चाहिए.

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दूसरी तरफ, सत्ताधारी पाकिस्तान तहरीक ए इंसाफ पार्टी के नेता खुर्रम शेर जमान कहते हैं कि वे सीपैक के खिलाफ नहीं हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "हमने सीपैक पर यूटर्न नहीं लिया है. वित्त मंत्री ने बजट में कुछ बदलाव किए हैं ताकि हम सीपैक की कुछ परियोजनाओं का अध्ययन और समीक्षा कर सकें. लेकिन इसका यह मतबल नहीं है कि सरकार इसे रद्द कर रही है. सीपैक पाकिस्तान और उसके भविष्य के लिए बहुत अहम है."

लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि अगस्त में सत्ता संभालने वाली इमरान खान की सरकार संकेत दे चुकी है कि वह चीन को सीपैक में फ्रीहैंड नहीं देगी. पाकिस्तानी विश्लेषक अयूब मलिक ने डीडब्ल्यू को बताया, "वाणिज्य मंत्री अपने देश के कारोबारी तबके का प्रतिनिधित्व करता है. उन्होंने असल में पाकिस्तानी उद्योगपतियों की चिंताओं को उठाया है जो पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था पर चीन के मजबूत होते नियंत्रण से चिंतित हैं."

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