सचिन बेहतर या ब्रैडमैन
१४ नवम्बर २००९1996 में जब डॉन ब्रैडमैन ने सचिन तेंदुलकर को पहली बार खेलते देखा तो स्तब्ध रह गए. पत्नी को बुलाया, बताया कि यह लड़का तो मेरे जैसा खेलता है. कहते हैं इसके बाद ब्रैडमैन ने अपने जीवन में सचिन की कोई पारी नहीं छोड़ी. वह कहते रहे कि सचिन शानदार बैट्समैन हैं और शेन वॉर्न के साथ उन्हें ख़ास तौर पर मिलने को भी बुलाया.
लेकिन सवाल पीछे छूट गया. बेहतर कौन. 1930 के दशक में जब शेयर बाज़ार अंकों के लिए तरस रहा था, तो स्टॉक ब्रोकर डोनाल्ड ब्रैडमैन ऑस्ट्रेलियाई स्कोरकार्ड पर बेतहाशा अंक जुटा रहे थे. उधर बाज़ार गिर रहा था, इधर ब्रैडमैन रनों का अंबार लगा रहे थे. हर पारी सैकड़े में ख़त्म होती थी. कभी कभी दोहरा और कभी कभी तिहरा सैकड़ा. 52 मैचों की 80 पारियों में 6996 रन. आख़िरी पारी में चार रन बन जाते तो औसत 100 का होता.
सचिन को देखें, तो वह इसके आस पास भी नहीं. 159 टेस्ट मैचों की 261 पारियों में 12,773 रन. औसत 55 के आस पास. लेकिन क्या ब्रैडमैन भी अगर 100 मैच और खेल लेते तो 100 के आस पास औसत बनाए रख पाते. बताना मुश्किल है. ब्रैडमैन के ज़माने में गेंदबाज़ों का आक्रमण कैसा था, यह भी देखने वाली बात है. आम तौर पर उस ज़माने में बड़े स्कोर बनते थे, बल्लेबाज़ों की तूती बोलती थी. गेंदबाज़ों का दबदबा था ही नहीं.
उस वक्त के दो चार बल्लेबाज़ों के नाम ज़ेहन में आ जाते हैं लेकिन कोई बॉलर ऐसा नहीं था, जिसने अपनी छाप छोड़ी हो. ब्रैडमैन बेशक़ बेमिसाल बल्लेबाज़ थे. क्रीज़ पर जमने के बाद उनका बल्ला जादू की छड़ी बन जाता था. वह क्रिकेट इतिहास के शायद इकलौते बैट्समैन हैं, जो बल्ला चलाने के बाद शॉट बदलने की महारत रखते थे. अगर क्रीज़ से दो मीटर बाहर निकल कर सीधे ड्राइव करने में उस्ताद थे, तो बैकफ़ुट पर स्टंप तक पहुंच कर पुल और कट कर दिया करते थे.
पांच फ़ुट पांच इंच के छोटे उस्ताद सचिन भी कम नहीं हैं. उनका बैकलिफ़्ट भले ही ब्रैडमैन की तरह न हो लेकिन क्रिकेट बुक्स के सभी रिकॉर्ड उनके पास ज़रूर मिलते हैं. हां, उन्हें बल्लेबाज़ी में ब्रैडमैन जितना आराम नहीं मिला. उन्हें दिग्गज बॉलरों के सामने खेलना पड़ा. वसीम अकरम से शेन वॉर्न तक और ग्लेन मैकग्रा से मुरलीधरन तक. भले ही क्रिकेट के इतिहास के सबसे महान गेंदबाज़ को सपने में सचिन आते हों लेकिन सच तो यह है कि सचिन के लिए भी इनकी गेंदें किसी बुरे सपने से कम नहीं साबित हुई हैं.
ब्रैडमैन बड़ी पारियों के उस्ताद थे. सचिन महान पारियों के बाज़ीगर हैं. ब्रैडमैन ने अपनी पारियों से अपनी टीम को जीत दिलाई. सचिन एक छोर पर चट्टान की तरह खड़े होते रहे और दूसरा छोर ताश के पत्तों की तरह ढहता गया. ब्रैडमैन को साथी बल्लेबाज़ों से ख़ूबसूरत साथ मिलता रहा. सचिन एक शानदार साथी बल्लेबाज़ के लिए तरसते रहे. ब्रैडमैन को सचिन की तरह दो तरह के क्रिकेट का सामना नहीं करना पड़ा. उन्हें एक दिन वनडे में झटपट रन बनाने और दो दिन बाद टेस्ट मैच के लिए ख़ुद को एडजस्ट करने की चुनौती नहीं मिली.
सही है कि डॉन ब्रैडमैन ने भी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट 20 साल तक खेला लेकिन इस दौरान वह क्रीज़ पर सिर्फ़ 80 बार उतरे. सचिन की बात करें तो सिर्फ़ वनडे में वह 425 बार बल्लेबाज़ी के लिए ग्राउंड पर उतर चुके हैं. टेस्ट मैचों में 261 बार. क्या किसी बल्लेबाज़ के लिए 686 पारियां खेल कर 50 से ज़्यादा औसत बनाए रखना मामूली बात है. क्या यह करिश्मा नहीं. क्या दोनों ही तरह के खेल में 40 से ज़्यादा शतक बना लेना आसान है. शक़ है कि ब्रैडमैन ऐसा कर पाते.
हां, ग्राउंड के अंदर और बाहर उनके बर्ताव की तुलना बड़ी दिलचस्प होती. सर का ख़िताब पाने वाले इकलौते ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटर और किसी ख़िताब से ऊपर उठ चुके सचिन तेंदुलकर एक जैसे सरल और सुलझे हुए इनसान हैं. दोनों ही ख़ुशमिज़ाज और मृदुभाषी. ऊंचा बोलना तो जैसे किसी ने सीखा ही नहीं. 1930 के दशक में जब क्रिकेट के इतने आधुनिक उपकरण नहीं थे, तब भी किसी ने ब्रैडमैन पर अंगुली नहीं उठाई और पिछले 20 साल में जब क्रिकेट ने तमाम आधुनिकताओं को ख़ुद में समेट लिया है और हर कोने कनखे में कैमरे फ़िट हो गए हैं, तब भी सचिन पर किसी की अंगुली उठाने की हिम्मत नहीं हुई.
ब्रैडमैन और सचिन की तुलना दरअसल बेमानी है. दोनों अपने काल के महान क्रिकेटर हैं और दोनों एक दूसरे के प्रशंसक. ऐसे में भला इस सवाल का जवाब कहां मिल सकता है कि सचिन बेहतर या ब्रैडमैन...