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सच्चे मोती की चमक बिखेरती पर्ल

३ मार्च २०११

यह 122 बच्चों का घर है. सुबह से लेकर शाम तक यहां बच्चों और किशोरों की खिलखिलाहट, उनकी आवाज गूंजती रहती है. अमृतसर में यह घर इन बच्चों की प्यारी दीदी पर्ल का है.

तस्वीर: Pearl Jesra

पर्ल जसरा के आईवीई संगठन में 4 से 17 साल तक के 122 बच्चे अमृतसर की झुग्गी बस्तियों से आते हैं. इनमें से कई अनाथ हैं, कई बच्चे सिर्फ मां के साथ, तो कई सिर्फ पिता के साथ पल रहे हैं. पर्ल ने डॉयचे वेले के साथ बातचीत में बताया, "कई परिवारों में आठ नौ बच्चे हैं, कई बच्चे मजदूरी करते हैं. परिवार इतने गरीब हैं कि बच्चे स्कूल जाते ही नहीं और अगर गए तो बीच में ही छोड़ देते हैं."

कुपोषण का शिकार

4 से 16 साल के बच्चों के पसंद की जगह यह स्कूलतस्वीर: Pearl Jesra

पर्ल जसरा बताती हैं, यहां आने वाले बच्चों में खून की भारी कमी होती है. बड़ी होती लड़कियों को गंभीर महिला रोग होने लगते हैं. उनके शरीर में खून की इतनी कमी होती हैं कि कभी कभी वह बेहोश हो जाती हैं.

बच्चे हर परेशानी, खुशी, दुख को बांटने पर्ल दीदी के पास आते हैं और 24 साल की पर्ल उनकी हर परेशानी में उनके साथ होती हैं. महीने में एक बार इन बच्चों की डॉक्टर जांच करते हैं. कुपोषण, खून की कमी, कमजोरी से जूझ रहे इन बच्चों को डॉक्टर दवाईयां भी देते हैं. सभी 122 बच्चों का जन्मदिन मनाया जाता है. पर्ल कहती हैं, "इनके घरों में तो जन्मदिन जैसी कोई चीज ही नहीं. और लोग मेरे साथ जुड़ सकें इसलिए मैं दूसरे लोगों को कहती हूं कि आज इसका जन्मदिन है आप केक ले आएं. कोई कुछ और ले आता है. और उस बच्चे का जन्मदिन मन जाता है."

खेल खेल में पढ़ाईतस्वीर: Pearl Jesra

122 बच्चों का जन्मदिन मनाने वाली पर्ल का यूं तो बड़ा सा परिवार है लेकिन उन्होंने अपने माता पिता को तेरह साल की उम्र में खो दिया. शायद इसी खालीपन ने पर्ल को अपने जैसे बच्चों के जीवन में रोशनी भरने की ऊर्जा दी.

आईवीई चिल्ड्रन

कंकरों से लिखना सीखते बच्चेतस्वीर: Pearl Jesra

पर्ल ने 2002 में आईवीई चिल्ड्रन नाम की एक संस्था बनाई. पर्ल पुराने दिनों को याद करती हैं, "उन दिनों लोगों को मुझ पर भरोसा करने में दिक्कत होती थी क्योंकि मैं भी काफी छोटी थी. फिर मैं उन बच्चों में से किसी के घर जाती. उनके परिवार के दुख सुख में शामिल होती. धीरे धीरे बच्चों के माता पिता का मुझ पर विश्वास बढ़ा."

सच्चे मोती पर जैसे सूरज की किरणें पड़ें, ऐसी ही मधुर आवाज वाली पर्ल चाहती हैं कि उनका घर बच्चों की पसंदीदा जगह हो. "मैं चाहती हूं कि उन्हें यहां आना अच्छा लगे क्योंकि पढ़ाई के लिए वह लगातार आते रहें इसके लिए सबसे जरूरी है कि वह यहां आना पसंद करें. मैं उन्हें खूब कहानियां सुनाती हूं, उनकी बातें सुनती हूं, साझा करती हूं, फिर इस तरह से उन्हें समझाती हूं कि वह उनके लिए शिक्षा बन जाए."

कंकड से शंकर

बच्चों को पढ़ाने का पर्ल का तरीका भी मजेदार है. "मैं बजरी, लकड़ियां, आइसक्रीम की डंडियों, मॉडल क्ले, दाल के दानों से उन्हें गिनती सिखाती हूं. वह उससे अलग अलग आकृतियां बनाते हैं. पर्यावरण प्रदूषण और कागज को बचाने के लिए इससे अच्छा तरीका और क्या हो सकता है. फिर बच्चे जिस माहौल में लौटते हैं वहां उनके खेलने के लिए कुछ नहीं होता. तो वह मिट्टी, टहनी का इस्तेमाल कर पढ़ लिख सकते हैं."

आईवीई चिल्ड्रन के साथ 2011 में 200 बच्चे...तस्वीर: Pearl Jesra

अब तक करीब 40 बच्चे सरकारी स्कूलों में भर्ती किए गए हैं. हर साल मार्च के महीने में नई चुनौती पर्ल और उनकी संस्था के सामने होती है, बच्चों को स्कूल में भर्ती करवाना. इस साल मार्च में 200 बच्चे स्कूल में आएंगे. दो कमरे भी बनाए जा रहे हैं. जरूरतें बढ़ रही हैं और इन्हें पूरा करने के लिए संघर्ष भी.

पर्ल कहती हैं, "अक्सर हम उन लोगों से संपर्क करते हैं जो अमीर हैं, इन बच्चों से बेहतर स्थिति में हैं. अगर मैं इन बच्चों की हालत देख कर प्रेरित हुई हूं तो मेरे जैसे और भी लोग होंगे. अगर समाज जागरूक नहीं होता तो यह सब करने का मतलब नहीं है."

जाहिर है दुनिया में जहां मदद करने वाले भले लोग हैं वहीं बुरा भला कहने वाले भी. पर्ल भी इनके कोप से बची नहीं है. संघर्ष तगड़ा है लेकिन इन बच्चों के मुस्काते चेहरों से मिलने वाली खुशी भी कम नहीं.

रिपोर्टः आभा मोंढे

संपादनः एन रंजन

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