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सड़कों पे पर्दे, पर्दों पे वर्ल्ड कप

१८ फ़रवरी २०११

क्रिकेट हो या फुटबॉल, वर्ल्ड कप के दौरान लोग मिल कर मैच का मजा उठाना पसंद करते हैं. ऐसे में अगर बड़ी स्क्रीन मिल जाए तो इंसान मैच के टिकट न मिलने का गम भी भूल जाता है.

तस्वीर: AP

ढाका में क्रिकेट वर्ल्ड कप के दौरान शहर में जगह जगह स्क्रीन देखी जा रही हैं. पूरे शहर में 6x6 मीटर की कुल 14 स्क्रीन लगीं हैं, जिन पर लोग 19 फरवरी से वर्ल्ड कप के सभी 49 मैच देख सकेंगे. ढाका में इस तरह की स्क्रीन पहली बार लग रही हैं, लेकिन कुछ देशों में तो अब लोग बगैर बड़ी स्क्रीन के वर्ल्ड कप की कल्पना भी नहीं कर सकते. इनका चलन शुरू हुआ जर्मनी से.

जर्मनी में लोग फुटबॉल के वैसे ही दीवाने हैं जैसे भारत में क्रिकेट के. जब जर्मनी मैच जीतता है तो सड़कों पर वही शोर होता है जो भारत के मैच जीतने पर सुना जाता है. लेकिन मैच के दौरान सडकों पर भारत की तरह सन्नाटा नहीं छाता, बल्कि लोग तो मैच देखने के लिए सड़कों पर ही उतर आते हैं. घर बैठ कर टीवी पर मैच देखने में वो मजा कहां जो सड़कों पर लगी विशाल स्क्रीन पर दोस्तों के साथ हाथों में बीयर की बोतल लिए देखने में है.

तस्वीर: dapd

स्कूलों और अस्पतालों में भी 'पब्लिक-व्यूइंग'

हालांकि यह चलन बहुत पुराना नहीं है. जर्मनी में 2006 में जब फीफा फुटबॉल वर्ल्ड कप हुआ तभी से इस चलन की शुरुआत हुई. इसे नाम दिया गया 'पब्लिक-व्यूइंग'. दरअसल आयोजन समिति को यह बात समझ में आ गई थी कि मैच के टिकट हाथों हाथ बिक जाएंगे और क्योंकि हर कोई स्टेडियम में जा कर मैच नहीं देख पाएगा इसलिए लोग निराश हो जाएंगे. तब बर्लिन और फ्रैंकफर्ट समेत 12 शहरों में स्क्रीन लगाई गईं, ताकि पूरे देश में लोग खेल का आनंद ले सकें. स्क्रीन केवल सार्वजनिक जगहों पर ही नहीं, बल्कि स्कूलों, अस्पतालों और यहां तक कि चर्च में भी लगाए गए.

'पब्लिक-व्यूइंग' में मेले जैसा माहौल बन सके इसलिए खाने पीने के स्टॉल लगाने की इजाजत भी दी गई. बड़ी स्क्रीन पर मैच दिखाने का आइडिया हिट हो गया और 2010 के वर्ल्ड कप में भी 'पब्लिक-व्यूइंग' की धूम छाई रही. यहां तक कि डिक्शनरी में भी इस नए शब्द को जगह मिल गई. अमेरिका समेत यूरोप के कई देशों में अब 'पब्लिक-व्यूइंग' का चलन चल पड़ा है. यूरोपियन चैम्पियनशिप में भी वर्ल्ड कप जैसी ही रौनक रहती है.

मैच के लिए करो जेब हल्की

बर्लिन के ब्रांडनबुर्गर गेट के पास भी मैच के दौरान कई स्क्रीन लगती हैं. 2006 में यहां इतने लोग आए कि सड़क का नाम ही 'फैन माइले' यानी फैन्स की सड़क पड़ गया. पिछले साल यहां करीब 20 लाख लोगों ने मैच देखा. यह सड़क वैसी ही है जैसे राजधानी दिल्ली में इंडिया गेट के पास है. वहां खड़े हो कर क्रिकेट वर्ल्ड कप देखने का भी अपना ही मजा होता है. भले ही वर्ल्ड कप के मैच बांग्लादेश के साथ साथ भारत में भी होने हैं, लेकिन भारत सरकार ने इस सम्बन्ध में कोई रुचि नहीं दिखाई है.

भारत में 'पब्लिक-व्यूइंग' का चलन धीरे धीरे लोकप्रिय हो रहा है, लेकिन वहां लोगों को इसका लुत्फ उठाने के लिए जेब हल्की करनी पड़ रही है. क्योंकि वहां ये स्क्रीन केवल सिनेमा घर, रेस्तरां या पब में ही देखी जा रही हैं. दिल्ली, मुंबई समेत कई बड़े शहरों में सिनेमा घर खास तौर से बड़े पर्दे पर मैच दिखा रहे हैं तो उसकी भारी कीमत भी वसूल रहे हैं. कई जगह लोग अपने दोस्तों के साथ पूरा पूरा पब भी बुक कर रहे हैं. कई दफ्तरों में बॉस अपने कर्मचारियों का दिल जीतने के लिए ऐसे नुस्खे अपनाने की सोच रहे हैं.

'पब्लिक-व्यूइंग' न होने का फायदा टीवी कंपनियां भी उठा रही हैं. वर्ल्ड कप के चलते बड़े, फ्लैट स्क्रीन टीवी के विज्ञापन बढ़ गए हैं और इनकी बिक्री भी. शायद अगले वर्ल्ड कप तक भारत सरकार भी आम आदमी का दिल जीतने के लिए इस बारे में कुछ सोचे.

रिपोर्ट: ईशा भाटिया

संपादन: वी कुमार

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