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सड़क पर किसके भरोसे महिलाएं

२८ फ़रवरी २०१४

भारत में कड़े कानून के बावजूद महिलाओं के खिलाफ यौन अपराध कम नहीं हुए हैं. सड़कों पर भी महिलाओं के साथ छेड़खानी और बलात्कार की घटनाएं होती हैं. बेहतर निगरानी और सक्रियता से इन अपराधों को रोका जा सकता है.

तस्वीर: Reuters

रात के पौने नौ बज रहे थे. हैदराबाद के एक मॉल से 22 वर्षीया कंप्यूटर इंजीनियर घर जाने के लिए टैक्सी ढूंढ रही थी. कुछ देर के बाद उसे एक टैक्सी मिलती है. बिना किसी शक शुबहा के वह सवार हो जाती है. उसे पता नहीं था कि वह किस जाल में फंसने जा रही है. कुछ देर बाद टैक्सी के ड्राइवर ने दरवाजा लॉक कर दिया और शहर से बाहर जंगल की तरफ गाड़ी तेजी से भगाने लगा.

टैक्सी में पहले से एक और शख्स था. दोनों ने महिला को बांधकर चार घंटे तक बलात्कार किया. इसके बाद महिला को उसके घर छोड़ते हुए टैक्सी ड्राइवर ने पुलिस के पास न जाने की धमकी दे डाली. घटना पिछले साल की है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक भारत में साल 2012 में बलात्कार के 25,000 मामले सामने आए. करीब आधे यौन दुराचार के मामले टैक्सी, बस और ऑटोरिक्शा में हुए.

सड़क पर कम नहीं खतरे

महिला इंजीनियर से बलात्कार के एक महीने पहले ही दिल्ली की एक अदालत ने दिल्ली बलात्कार कांड की निर्भया से बलात्कार के मामले में चार दोषियों को फांसी की सजा सुनाई थी. दिल्ली के चर्चित बलात्कार कांड के बाद सरकार ने न्याय समिति बनाई थी, समिति ने सार्वजनिक परिवहन में बदलाव के सुझाए दिए. इस साल जनवरी में भारत सरकार ने समिति के सुझाए कुछ सलाहों को लागू करने की योजना तैयार की है.

सरकार ने 1405 करोड़ रुपये के शुरुआती फंड के साथ सभी सार्वजनिक परिवहन में जीपीएस ट्रैकर, सीसीटीवी कैमरे और इमरजेंसी फोन कॉल सुविधा देनी की योजना बनाई है. इसे 10 लाख से ज्यादा आबादी वाले शहरों में लागू किया जाएगा. योजना महिला सुरक्षा पर निर्भया कोष का हिस्सा है. मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति के मुताबिक, "यह योजना सूचना प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल से महिलाओं को हिंसा से बचाने के लिए सुरक्षा और संरक्षण में सुधार लाने के मकसद से तैयार की गई है."

चेन्नई में वकील और सामाजिक कार्यकर्ता कीर्ति जयकुमार के मुताबिक, "महिलाओं के लिए सड़कों को सुरक्षित करने की दिशा में यह पहला कदम हो सकता है. इससे महिलाओं को दोहरा फायदा होगा. उनके लिए जगहें सुरक्षित होंगी साथ ही महिलाओं के लिए रोजगार के अवसर खुलेंगे. क्योंकि निगरानी के काम के लिए भी लोगों की जरूरत पड़ेगी." जयकुमार सुझाव देती हैं कि सरकार को इन वीडियो रिकॉर्डिंग के अध्ययन के लिए मजबूत कार्यबल बनाना चाहिए. देश में खराब निगरानी उपकरण और पुलिस की ढीली सतर्कता हमेशा से ही सुरक्षा को लेकर चिंता का विषय है.

बड़े शहरों में भी असुरक्षित महिलाएंतस्वीर: picture alliance/AP Photo

सोच में बदलाव की जरूरत

पापुलेशन फर्स्ट की प्रोग्राम डायरेक्टर एएल शारदा का मानना है कि तेजी से बढ़ती आबादी और शहरों के विस्तार किसी भी सतर्कता और निगरानी तंत्र की सफलता के लिए एक बड़ी बाधा पैदा कर सकते हैं. शारदा कहती हैं कि जब तक सरकार शहरी विकास को नियंत्रित नहीं करती है, सड़क पर महिलाओं के खिलाफ हिंसा में कमी की संभावना नहीं है. शारदा की दलील है कि सड़कें सुरक्षित करने का मतलब यह नहीं है कि कुछ गाड़ियां स्मार्ट बना दी जाएं.

वे कहती हैं, "महिलाओं के लिए सड़कें सुरक्षित करना का मतलब है कि वह दिन या रात किसी भी समय आत्मविश्वास के साथ बाहर जा सकें. इसको करने के लिए बेहतर शासन, बेहतर पुलिसिंग और महिलाओं के लिए बेहतर समुदाय आधारित समर्थन प्रणाली की जरूरत होगी. इन चीजों के बिना आप हालात नहीं बदल सकते हैं."

शारदा मुंबई का उदाहरण देती हैं जहां हाल के दिनों में सड़क पर महिलाओं के खिलाफ हिंसा में बढ़ोतरी हुई है. शारदा का कहना है कि मुंबई में सरकार ने करीब हर चौराहे पर सीसीटीवी कैमरे लगाए हैं. लेकिन उनमें से ज्यादातर या तो खराब क्वालिटी के हैं या फिर काम नहीं करते. शारदा कहती हैं कि पुलिस की गश्त भी इतनी कम है कि दिनदहाड़े महिलाओं के साथ छेड़छाड़ और उन पर हमले होते हैं. शारदा का कहना है कि उपकरण सही तरीके से काम कर रहे हैं या नहीं इसको देखने के लिए कोई तंत्र नहीं है. मुंबई स्थित डॉक्यूमेंट्री मेकर और कार्यकर्ता संध्या पुष्पपंडित का कहना है चाहे लोकल ट्रेन हो या मेट्रो महिलाओं के खिलाफ हिंसा के दिल दहला देने वाले मामले सामने आए हैं. पुष्पपंडित का कहना है कि ट्रेनों में ना तो इमरजेंसी कॉल की सुविधा है और ना ही अलार्म बटन है. वहीं शारदा का मानना है कि सिर्फ कानून बनाने से कुछ नहीं होगा समाज को अपनी सोच भी बदलनी होगी.

एए/एजेए (आईपीएस)

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